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नवरात्रि के सातवें दिन की देवी महागौरी की धार्मिक क‍था

October 24, 2020

महागौरी की कथा :

 नवरात्रि के आठवें दिन यानी दुर्गाष्टमी के दिन माता महागौरी की पूजन का विधान है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। राजा हिमावन के घर बेटी के रूप में जन्मी छोटी पार्वती ने बालपन से शिव को पाने के लिए कड़ी तपस्या की। इस तपस्या के बाद शिव उन पर प्रसन्न हुए और उन्हें स्वीकार किया। कड़ी तपस्या के ताप से माता महागौरी का शरीर काला हो गया और उस पर धूल मिट्टी जम गई। शिव ने उन्हें गंगाजल से नहलाया, तब मां का शरीर स्वर्ण के समान कांतिमय हो गया। मां तभी से महागौरी के नाम से जानी जाती है

नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।

इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाँये हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है।

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः |
महागौरी शुभं दद्यान्त्र महादेव प्रमोददा ||

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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