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Punyathithi: मन्ना डे यानि प्रबोध चंद्र डे, पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर बनाया संगीत में मुकाम

नई दिल्ली। मन्ना डे (mann dey) वो नाम है, जो हमेशा सबके दिलों में जिंदा रहेगा। उनके गानों की आवाज जब भी कानों में पड़ती है तभी सारे गानें दीमाग में आने लगते हैं। मन्ना डे भारत के लिए अनमोल रत्न हैं और रहेंगे। 24 अक्टूबर 2013 को मन्ना डे को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। बॉलीवुड के दिग्गज कलाकारों के लिए अपनी आवाज देने वाले लीजेंड्री प्लेबैक सिंगर मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को हुआ था। मन्ना डे का असली नाम प्रबोध चंद्र डे था।

भारतीय संगीत जगत के इत‍िहास में कई सारे सिंगर्स ने अपनी गाय‍िकी से सभी का ध्यान आकर्षित किया। बॉलीवुड की बात करें तो 40-50 के दशक से ही एक से बढ़कर एक संगीतकारों और गायकों ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराना शुरू कर दिया। बॉलीवुड में लाइट सॉन्ग्स का चलन ज्यादा था और कभी-कभी कुछ ही गाने ऐसे थे जो सेमी क्लासिकल हुआ करते थे। उस समय जब भी कोई ऐसा गाना आता जिसे रफी, किशोर और मुकेश जैसे सिंगर्स भी ना गा पाते तो उसे मन्ना डे से गवाया जाता था। बॉलीवुड के इतिहास में क्लासिकल की बहुत मजबूत पकड़ रखने वाला एक सिंगर जिसने कई सारे स्टेरियोटाइप को बदला और इंडस्ट्री में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया। मन्ना डे की पुण्यतिथि पर बता रहे हैं उनके जीवन के कुछ पहलुओं के बारे में।

मन्ना डे के बारे में कहा जाता है कि जब कोई गाना उस समय की शानदार तिकड़ी किशोर, रफी और मुकेश नहीं गा पाते थे तो उसे मन्ना डे से गवाया जाता था और मन्ना डे अपनी दमदार आवाज से उस गाने को अमर कर देते थे। मोहम्मद रफी के दुनियाभर में जितने दीवाने हुए शायद ही किसी दूसरे सिंगर के हुए हों। मगर इसके बाद भी जब रफी से पूछा जाता कि आप का फेवरेट सिंगर कौन है तो वे सिर्फ मन्ना डे का नाम ही लेते। रफी ने तो ये तक कह दिया था कि एक दौर ऐसा था जब वे सिर्फ मन्ना डे के ही गाने सुनना पसंद करते थे।

पहले के जमाने में कुछ बड़े एक्टर्स ने अपने सिंगर्स फिक्स कर लिए थे जिनसे वे गाने गवाते थे। जैसे कि राज कपूर और मनोज कुमार सिर्फ मुकेश के लिए गाना पसंद करते थे। ऐसे ही दिलीप कुमार और शम्मी कपूर अपने गाने रफी साहब से गवाते थे और राजेश खन्ना-अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज सुपरस्टार्स के गाने किशोर कुमार के पाले में आते थे। मगर मन्ना डे के साथ ऐसा नहीं था। वे राजेश खन्ना से लेकर महमूद तक के लिए गाने गाते थे।

करियर को लेकर थी दुव‍िधा
करियर की शुरुआत में मन्ना डे जरा कन्फ्यूज थे कि उन्हें करियर में आगे क्या करना है। मन्ना डे के पिता चाहते थे कि वे वकील बनें। मगर मन्ना डे संगीत में करियर बनाना चाहते थे और बहुत दुविधा में रहने के बाद उन्होंने अपने मन की सुनी और संगीत में आगे बढ़ने की ठानी। वे राजेश खन्ना के बहुत बड़े फैन थे। उन्होंने तमाम इंटरव्यू पर ये बात कुबूली थी कि उन्हें पर्दे पर राजेश खन्ना का अंदाज काफी भाता है। उनका ऐसा मानना था कि ऑन स्क्रीन किसी गाने पर राजेश खन्ना जैसे एक्ट करते हैं वैसे कोई भी नहीं कर सकता।

मन्ना डे साहब ने अपने करियर में कई सारे लाइट और सेमी क्लासिकल गाने गाए और उनकी खास बात ये थी कि वे हर तरह के गाने गाते थे। उनकी विविधता सभी को चकित कर देती थी। सिंगर ने पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई, केतकी गुलाब जूही, तू प्यार का सागर है, एक चतुर नार, अई यई यो अई यई यो, आओ ट्विस्ट करें, तुझे सूरज कहूं या चंदा, ये रात भीगी भीगी, जिंदगी कैसी है पहेली, नदियां चले चले रे धारा, ए भाई जरा देख कर चलो और कसमें वादे प्यार वफा जैसे सुपरहिट गानें गाए। उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के सम्मान से नवाजा गया। 24 अक्टूबर, 2013 को मन्ना डे का निधन हो गया।

 

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