
नई दिल्ली । नदियों (rivers) को आपस में जोड़ने से मानसून चक्र (monsoon cycle) एवं जैव विविधता (Biodiversity) पर दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इससे सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां भी खड़ी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है केन-बेतवा योजना, राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) के तहत कार्यान्वित की जा रही पहली योजना है।
इसके तहत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सूखे बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग 11 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के तहत लाने का प्रयास किया गया है। नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं के प्रति आगाह करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि इनसे प्रकृति के चक्र में जटिल समस्या उत्पन्न हो सकती है।
जिसका मानसून चक्र, जैव विविधता और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यमुना नदी एवं उसके बाढ़ के मैदानों के संरक्षण के लिए प्रयासरत यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा ने कहा कि नदी जोड़ने वाली परियोजनाओं के दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभावों की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि वे बहुत दूरगामी होंगे।
जब किसी नदी का पानी मोड़ा जाता है और वह समुद्र में मिल जाती है, नदी अपने साथ गाद भी ले जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, नदी जोड़ने वाली परियोजनाओं के पर्यावरण, सामाजिक, जलवायु संबंधी प्रभाव हो सकते हैं। इससे जैव विविधता पर प्रभाव पड़ेगा, आपदाओं पर प्रभाव पड़ेगा, जल विज्ञान पर प्रभाव पड़ेगा। केन-बेतवा को जोड़ने के लिए 23 लाख बड़े पेड़ काटे जाएंगे। केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्वसनीय आकलन किया जाना चाहिए।
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