
नई दिल्ली । चीफ जस्टिस बीआर गवई(Chief Justice BR Gavai) का कहना है कि भारत का संविधान(Constitution of India) एक सामाजिक दस्तावेज(Social documents) है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान सत्ता का बैलेंस बनाने और लोगों का सम्मान बहाल करने के लिए जरूरी हस्तक्षेप करने का साहस भी रखता है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान यह दिखावा नहीं करता कि सभी समान हैं बल्कि वह इसके लिए कदम उठाने का साहस भी दिखाता है। न्यायमूर्ति गवई ने मंगलवार को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘प्रतिनिधित्व से कार्यान्वयन तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना’ विषय पर अपने संबोधन में नगरपालिका के एक स्कूल से लेकर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक अपनी यात्रा का उल्लेख किया।
लंदन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनियन एक संस्था है, जहां लोग विभिन्न औपचारिक विषयों पर परिचर्चा करते हैं। उन्होंने संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ बी आर आंबेडकर की भूमिका पर भी रोशनी डाली। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘कई दशक पहले, भारत के लाखों नागरिकों को ‘अछूत’ कहा जाता था। उन्हें बताया जाता था कि वे अपवित्र हैं। उन्हें बताया जाता था कि वे अपने लिए नहीं बोल सकते। लेकिन आज हम यहां हैं, जहां उन्हीं लोगों से संबंधित एक व्यक्ति देश की न्यायपालिका में सर्वोच्च पद धारक के रूप में खुलकर बोल रहा है। भारत के संविधान ने यही किया है।’
उन्होंने कहा कि संविधान नागरिकों को बताता है कि ‘वे अपने लिए बोल सकते हैं, समाज और सत्ता के हर क्षेत्र में उनका समान स्थान है।’ न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘संविधान महज एक कानूनी चार्टर या राजनीतिक ढांचा नहीं है। यह एक भावना है, जीवनरेखा है, स्याही से उकेरी एक मौन क्रांति है।’ उन्होंने कहा, ‘संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है, जो जाति, गरीबी, बहिष्कार और अन्याय की क्रूर सच्चाइयों से अपनी नजर नहीं हटाता। यह इस बात का दिखावा नहीं करता कि गहरी असमानता से ग्रसित देश में सभी समान हैं। इसके बजाय, यह हस्तक्षेप करने, पटकथा को फिर से लिखने, सत्ता को पुन:संतुलित करने और गरिमा बहाल करने का साहस करता है।’
उन्होंने कहा कि प्रतिनिधित्व के विचार को डॉ आंबेडकर के दृष्टिकोण में सबसे शक्तिशाली और स्थायी अभिव्यक्ति मिली। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मुख्य भाषण की शुरुआत उच्चतम न्यायालय में ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ तन्वी दुबे की परिचयात्मक टिप्पणियों से हुई और इसमें न्यायिक प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं समान प्रतिनिधित्व जैसे विषयों पर छात्रों के साथ बातचीत शामिल थी। प्रधान न्यायाधीश इस सप्ताह ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान संविधान और इसके स्थायी प्रभाव पर व्याख्यान दे रहे हैं और मुख्य अतिथि के तौर पर विभिन्न कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं।
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