
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें साल 2000 के एक मामले में तत्कालीन सीबीआई संयुक्त निदेशक (Joint Director of CBI) नीरज कुमार (Neeraj Kumar) और इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडेय (Inspector Vinod Kumar Pandey) के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि कभी-कभी जांच करने वालों की भी जांच हो, ताकि जनता का भरोसा व्यवस्था में बना रहे।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस पी. बी. वराले की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के 26 जून 2006 के आदेश से साफ है कि दोनों अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में अनियमितता या गैरकानूनी कार्य किए और वे प्राथमिक दृष्टया अपराध के दोषी हैं। पीठ ने कहा, “शिकायतों और याचिकाओं से यह स्पष्ट झलकता है कि दोनों अधिकारी मिलीभगत में काम कर रहे थे। यह तथ्य जांच का विषय है कि विनोद कुमार पांडेय ने नीरज कुमार के कहने पर कार्रवाई की या दोनों ने मिलकर।”
विजय अग्रवाल ने आरोप लगाया था कि अधिकारियों ने उन्हें और उनके भाई को शिकायत वापस लेने के लिए धमकाया। शीश राम सैनी ने दस्तावेजों की जब्ती के दौरान प्रक्रियागत अनियमितता, डराने-धमकाने और अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाया। नीरज कुमार 2013 में रिटायर हुए, बाद में दिल्ली पुलिस आयुक्त भी रहे।
हाईकोर्ट ने माना था कि गाली-गलौज और धमकी जैसे आरोप गंभीर और असत्य नहीं लगते। हालांकि सीबीआई की प्रारंभिक जांच में कहा गया था कि आरोप प्रमाणित नहीं हैं। हाईकोर्ट ने साफ किया था कि इतनी गंभीर शिकायतों को सिर्फ प्रारंभिक जांच के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, “यदि अदालत को यह संतोष है कि संज्ञेय अपराध का मामला बनता है, तो उसके आदेश में दखल देने का कोई कारण नहीं है। न्याय केवल किया ही न जाए बल्कि होते हुए दिखाई भी दे। यही कानून का मूल सिद्धांत है।” अदालत ने कहा कि यह अपराध 2000 में हुआ और अब तक जांच शुरू नहीं हो पाई, यह न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को जांच सौंपी थी, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच दिल्ली पुलिस ही करेगी, लेकिन यह कार्य एसीपी से ऊपर के रैंक के अधिकारी को सौंपा जाएगा।
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