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बलूचों पर अत्याचार… UNHRC में बेनकाब हुआ पाकिस्तान, ईशनिंदा के आरोप में 700 लोग जेल में बंद

October 02, 2025

वाशिंगटन। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN) में एक बार फिर पाकिस्तान की पोल खुल गई। अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक विशेषज्ञ जोश बोवेस ने UNHRC के 60वें सत्र की 34वीं बैठक में पाकिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघनों और बलूचिस्तान में व्याप्त संकट पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में यूएनएचआरसी के इसी सत्र की बैठक के दौरान पाकिस्तान के जीएसपी+ दर्जे को लेकर यूरोपीय संघ की टिप्पणियों पर अपनी आशंकाएं व्यक्त कीं। बोवेस ने बलूचिस्तान के मुद्दों पर मानवाधिकारों की जवाबदेही मजबूत करने तथा समाधान के उपायों को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।

60वें सत्र को संबोधित करते हुए बोवेस ने पाकिस्तान की वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 158वें स्थान पर होने की ओर इशारा किया। उन्होंने 2025 के लिए यूएससीआईआरएफ की धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ईशनिंदा के आरोपों में 700 से ज्यादा लोग जेलों में बंद हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 300 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्शाता है। बलूच समुदाय पर हो रहे अत्याचारों को रेखांकित करते हुए उन्होंने बताया कि बलूच नेशनल मूवमेंट के मानवाधिकार विभाग ‘पांक’ ने 2025 की पहली छमाही में ही 785 लोगों के जबरन गुमशुदगी और 121 हत्याओं का रिकॉर्ड तैयार किया है। वहीं, पश्तून नेशनल जिरगा के अनुसार, 2025 में 4,000 पश्तून अभी भी लापता हैं।

अपने समापन वक्तव्य में बोवेस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग से पाकिस्तान में मानवाधिकार स्थिति की निगरानी को सशक्त बनाने की मांग की। उन्होंने आयोग से अनुरोध किया कि वह मद 8 के अंतर्गत यूरोपीय संघ के साथ सहयोगी तंत्र विकसित कर पाकिस्तान में मानवाधिकारों की निगरानी मजबूत करने पर विचार करे। जिनेवा में यूएनएचआरसी के 60वें सत्र के दौरान पाकिस्तान कई मोर्चों पर बेनकाब हो गया।

इससे पूर्व, मानवाधिकार कार्यकर्ता आरिफ आजाकिया ने भी पाकिस्तान में मानवाधिकार की दयनीय स्थिति पर चिंता प्रकट की थी। पाकिस्तान का जिक्र करते हुए उन्होंने बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में लंबे समय से जारी सैन्य अभियानों का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि इन इलाकों में न्यायेतर हत्याएं, जबरन गुमशुदगी और यातनाओं के मामले सामने आए हैं, तथा लापता लोगों के परिजन अक्सर विरोध प्रदर्शनों का सहारा लेते हैं।

आरिफ आजाकिया ने आगे कहा कि हजारों बलूच और पश्तून शांतिपूर्ण नागरिक राज्य की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा लापता कर दिए गए हैं। अक्सर सामूहिक कब्रें मिलती रहती हैं, जहां इन लापता लोगों के शव बरामद होते हैं। बलूच महिलाएं और बच्चे अपने लापता परिजनों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए विभिन्न शहरों में धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन राज्य के बल लाठीचार्ज कर इन महिलाओं और बच्चों को गिरफ्तार कर लेते हैं। डॉ महरंग बलूच भी उन तमाम व्यक्तियों में शामिल हैं, जिन्हें बिना किसी संपर्क के हिरासत में रखा गया है।

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