
नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) को मंगलवार को अवगत कराया गया कि विभिन्न राज्यों में मतदाता सूची (voter list) के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए निर्वाचन आयोग (Election Commission) द्वारा ‘तेजी से शहरीकरण’ और ‘लगातार प्रवास’ जैसे दिए गए कारण ‘टिकाऊ नहीं’ हैं और किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में संशोधन करने का उसका अधिकार उसे पूरे भारत में ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। सुनवाई के अंतिम क्षणों में, पीठ ने वकील प्रशांत भूषण की उस दलील पर कड़ा संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने आयोग को ‘निरंकुश’ बताया था।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने ये मजबूत दलीलें पेश कीं।
पीठ ने कई राज्यों में निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची में चल रहे गहन पुनरीक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगातार तीसरे दिन सुनवाई जारी रखी।
सिंघवी ने कहा, ‘यदि कारण समान हैं, तो उनका तार्किक संबंध होना चाहिए। शहरीकरण कई वर्षों से चल रहा है। कोई क्षेत्र कब ग्रामीण से ‘शहरी’ और फिर पूरी तरह शहरी हो जाता है? तेज शहरीकरण… (एसआईआर के लिए) कोई आधार नहीं हो सकता।’
भूषण ने एसआईआर के फैसले को ‘अभूतपूर्व’ बताते हुए कहा, ‘पहली बार मतदाता सूची एकदम नए सिरे से तैयार की जा रही है। यह एक नए सिरे से शुरू की गई तैयारी है, कोई विशेष संशोधन नहीं।’
उन्होंने इस प्रक्रिया में की गई जल्दबाजी पर सवाल उठाया और जमीनी कर्मचारियों पर दबाव को ’30 बीएलओ द्वारा आत्महत्या’ की खबरों के साथ जोड़ा। उन्होंने एक मीडिया पड़ताल का भी हवाला दिया, जिसमें बताया गया है कि ‘एसआईआर के बाद भी पांच लाख से ज्यादा ‘डुप्लीकेट’ मतदाता बचे हुए हैं’। उन्होंने कहा कि कई लोग मानते हैं कि आयोग ‘तानाशाह’ की तरह काम कर रहा है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हमें ऐसे व्यापक बयान नहीं देने चाहिए, जो दलीलों में शामिल नहीं हैं… कृपया खुद को दलीलों तक ही सीमित रखें।’
सिंघवी ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग को विशेष संशोधन करने का अधिकार है और इसके लिए भी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए विशिष्ट कारण की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि संबंधित नियमों में वर्णित शब्द ‘किसी भी’ निर्वाचन क्षेत्र की व्याख्या लापरवाही से नहीं की जानी चाहिए और इसका अर्थ ‘सभी निर्वाचन क्षेत्र’ तो कतई नहीं होता है। उन्होंने यह भी कहा, ‘यहां जो किया जा रहा है, वह कानून का (घोर) उल्लंघन है।’ सिंघवी ने आगे कहा कि केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए ‘गहन संशोधन’ लागू नहीं किया जा सकता।
वकील अश्विनी उपाध्याय ने पश्चिम बंगाल में ब्लॉक स्तर के अधिकारियों पर कथित हमलों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘अधिकारी इसका ध्यान रखेंगे। चिंता न करें।’ पीठ गुरुवार, 4 दिसंबर को सुनवाई फिर से शुरू करेगी और भूषण अपनी दलीलें पेश करेंगे।
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