राजस्थान में कांग्रेस सरकार को बचाने और बागी नेता सचिन पायलट और उनके समर्थकों की पार्टी में वापसी सुनिश्चित कर दिग्गज कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि पार्टी लीडरशिप को संकट से निकालने के उनके स्किल क्यों जबरदस्त और जरूरी हैं.
जब भी कांग्रेस के लिए समस्या पैदा होती है, सभी की निगाहें पटेल पर टिक जाती हैं. साल 2004 और 2014 के बीच कई दलों के साथ गठबंधन में दो बार यूपीए सरकार को सही तरीके से चलाने में उनकी अहम भूमिका रही. वह अभी भी कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण वातार्कार हैं, जो उन्होंने मध्य प्रदेश में पार्टी के बुरे अनुभव के बाद राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराने के BJP के प्रयासों को असफल करके साबित किया. कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता खोने के छह महीने के भीतर दूसरा राज्य नहीं खोना चाहती थी और इसलिए अपने दिग्गज नेता के बातचीत की स्किल पर भरोसा जताया.
सचिन पायलट के मामले में वह कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे, जिन्होंने तत्कालीन राजस्थान के उपमुख्यमंत्री की बगावत के पहले दिन चार विधायकों की वापसी कराने में कामयाबी हासिल की थी. राज्यसभा सदस्य पटेल ने पार्टी के बागियों के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व (लीडरशिप) किया और राज्य सरकार को बचाने के लिए अशोक गहलोत का समर्थन किया. यह लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी गई. कांग्रेस की कानूनी टीम ने इसे अदालतों में लड़ा, गहलोत ने अपने विधायकों पर पकड़ बनाए रखी, और साथ ही कुछ भाजपा विधायकों पर जीत हासिल करने की कोशिश की.
पार्टी के एक नेता ने कहा कि पटेल की स्टाइल ने लड़ाई में जुटे गुटों के बीच रास्ता बनाने में मदद की. वह पार्टी में अलग-अलग आवाजें उठा सकते हैं और फिर भी बड़े राजनीतिक ऑपरेशन करते हुए पर्दे के पीछे रह सकते हैं. पार्टी के खास लोगों का कहना है कि पायलट खेमे में ‘ट्रोजन हॉर्स’ भी मौजूद थे जो कांग्रेस नेतृत्व के साथ लगातार कॉन्टैक्ट में थे. एक बार जब पायलट खेमे ने बातचीत शुरू की, तो कांग्रेस ने पहला कदम राजस्थान पुलिस SOG के उनके खिलाफ लगाए गए राजद्रोह के आरोपों को हटाने के लिए उठाया था.
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