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अफगान वार्ताः तालिबान से बात करने को क्यों तैयार हुआ भारत? जानिए वजह

दोहा। दोहा में आयोजित इंट्रा-अफगान डायलॉग में भाग लेकर भारत ने अफगानिस्तान के सभी पक्षों से बात करने की इच्छा जाहिर कर दी है, जिसमें तालिबान भी शामिल है। भारत इस फैसले से एक तरफ काबुल में शांति स्थापित करने में अपना योगदान देगा तो दूसरी तरफ यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए ना हो।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अफगान पक्षों के साथ आमने-सामने होने में भारत के रुख में कोई अस्पष्टता नहीं है, क्योंकि भारतीय प्रतिनिधिमंडल अफगान सरकार और तालिबान के साथ एक ही मेज पर बैठा। मेजबान देश कतर ने अफगान डायलॉग के सभी हितधारकों से बात करके यह संभव बनाया होगा।
समझा जाता है कि पाकिस्तान ने संबंधित पक्षों के सामने दोहा में भारतीय भूमिका को लेकर अपनी चिंता जाहिर की होगी, क्योंकि भारतीय भागीदारी अब केवल काबुल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नई दिल्ली अफगान शांति और सुलह प्रक्रिया में एक वैध हितधारक है। पिछले दशक में भारत तालिबान से बातचीत को लेकर अनिच्छुक था, लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर के उद्घाटन सत्र को संबोधित करने से यह अस्पष्टता समाप्त हो गई है और भारत दोनों पक्षों से बातचीत को तैयार है। एक अति-रूढ़िवादी सुन्नी आंदोलन, तालिबान नेतृत्व बोलन दर्रे के क्वेटा में स्थित है, और इसके उप नेता सिराजुद्दीन हक्कानी अभियुक्त हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व करते हैं। तालिबान नेता मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदज़ादा एक मौलवी है और हक्कानी विद्रोही समूह का दाहिना हाथ है।
अफगान सुलह के अमेरिकी प्रतिनिधि जालमे खालिजाद आज विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे और मोदी सरकार को अफगान शांति, चुनाव और भारत से उम्मीदों पर ब्रीफ करेंगे। पश्तून खालिजाद इस्लामाबाद होते हुए नई दिल्ली पहुंचे हैं।
उद्घटान भाषण में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान में युद्धरत दोनों पक्षों में सीजफायर की वकालत की और अफगानिस्तान सरकार व तालिबान प्रतिनिधिोयं से यह प्रतिबद्धता चाही कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए नहीं होने दिया जाएगा। गौरतलब है कि पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने खैबर और बोलान दर्रे में आतंकी ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए हैं।
भारत इस बात को समझता है कि अमेरिका 19 सालों के बाद अफगानिस्तान से निकलने की तैयारी में है और इस बात को लेकर चिंता है कि अमेरिका के काबुल से जाने के बाद हिंसा में वृद्धि हो सकती है, चुनाव के बाद यहां केवल 4,700 सैनिक रह जाएंगे। हालांकि, दोहा से सकारात्मक संकेत यही है कि अफानिस्तान सरकार और तालिबान प्रतिनिधि एक ही मेज पर मौजूद थे। इससे उम्मीद जगी है कि तालिबान चुनाव का रास्ता अपना सकता है अमेरिका के जाने के बाद काबुल पर सैन्य चढ़ाई नहीं करेगा।

 

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