नई दिल्ली. इस साल भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की कोवैक्सीन (Covaxin) को बड़े ज़ोर-शोर से लॉन्च किया गया था। दावा किया गया था कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ये वैक्सीन बेहद कारगर साबित होगी। इसमें कोई शक नहीं कि ये वैक्सीन बेहद असरदार है, लेकिन वैक्सीन की बेहद कम सप्लाई के चलते ये देश की ‘नंबर वन वैक्सीन’ बनने की रेस में काफी छूट गई है। वजह एक नहीं, कई हैं। वैक्सीन बनाने की जटिल प्रक्रियाएं, बिखरी हुई उत्पादन इकाइयां, सेफ्टी ज़ोन की कमी और कुशल कर्मचारियों की किल्लत। ये कुछ ऐसे कारण है जिसने कोवैक्सिन को पीछे छोड़ दिया है।
आपको याद होगा इस साल 4 जनवरी को भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक डॉ। कृष्णा एल्ला ने एक वर्चुअल प्रेस ब्रीफिंग में कहा था कि कंपनी 2021 में 70 करोड़ खुराक बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। उम्मीद थी कि भारत के पहले स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सिन देश में बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान (vaccination campaign) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। लेकिन ये भारत का सबसे महंगा टीका निकला। इतना ही नहीं इनका स्टॉक भी बेहद सीमित है। इस बीच ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कोविशील्ड देश की नंबर वन वैक्सीन बन गई।
वैक्सीन के ताज़ा आंकड़े
वैक्सीन के आंकड़ों पर नज़र डालें तो देश में अब तक 81 करोड़ टीके लग चुके हैं। इसमें कोविशील्ड की हिस्सेदारी 88।4% फीसदी है। यानी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अब तक 71.50 करोड़ से अधिक खुराक की आपूर्ति की है। जबकि देश को कोवैक्सिन की अब तक सिर्फ 9.28 करोड़ की डोज़ मिली है, यानी सिर्फ 11.5% की हिस्सेदारी। भारत को अब तक स्पुतनिक-V की 8.90 लाख खुराक मिली है।
वैक्सीन सप्लाई की भारी कमी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भारत बायोटेक ने शुरुआत में हर महीने 90 लाख खुराक का उत्पादन किया, जिसे मई तक बढ़ाकर 2 करोड़ खुराक कर दिया जाएगा। कंपनी अभी तक अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकी है। अब भारत बायोटेक (biotech) ने वादा किया है कि वो सितंबर में कोवैक्सिन की 3.5 करोड़ खुराक और अक्टूबर में 5 करोड़ डोज़ की सप्लाई करेगा। CNBC-TV18 के साथ एक इंटरव्यू में डॉ. एला ने कहा था, ‘हम दूसरी कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं। अगर ये सभी हमारी उम्मीद के मुताबिक काम करते हैं तो हम साल के आखिर तक 10 करोड़ के आंकड़े तक पहुंच जाएंगे।’
अब सवाल उठ रहे हैं कि सरकार की ओर लगातार मदद के बावजूद भारत बायोटेक आखिर क्यों लगातार अपने मिशन में फेल हो रही है। आईए एक नज़र डालते हैं इन वजहों पर…
इनएक्टिव वैक्सीन बनाना मुश्किल चुनौती
डॉ एला ने बताया था कि इनएक्टिव वैक्सीन बनाना दुनिया में सबसे मुश्किल काम है। और ये वैक्सीन भी इस फॉर्मूले पर आधारित है। दूसरे एक्सपर्ट्स भी इस तर्क का समर्थन करते हैं। एक सार्वजनिक क्षेत्र की वैक्सीन निर्माता, जिसने कोवैक्सिन के निर्माण के लिए भारत बायोटेक के साथ गठनबंधन किया है उनके मुताबिक इसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरण बाहर से मंगाने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘छह महीने पहले, हमने एक ऑर्डर दिया था जो 45 दिनों में डिलीवर हो गया था। अभी, उसी उपकरण की डिलीवरी के लिए कम से कम छह से आठ महीने की आवश्यकता होती है।’
काम करने वाले एक्सपर्ट की कमी
ऐसे वैक्सीन जो लाइव वायरस से बनाई जाती है वहां एक्सपर्ट और सेफ्टी की जरूरत पड़ती है। स्टाफ को बायोसेफ्टी लेवल-3 और 4 में रहना होता है। एक एक्सपर्ट ने बताया, ‘वैक्सीन इंडस्ट्री बेहद छोटा है। यहां सिर्फ 7-8 प्रमुख कंपनियां है। टैलेंट पूल इन कंपनियों के बीच जॉब शिफ्ट करता रहता है। अभी, हर कोई विस्तार कर रहा है और अपने कर्मचारियों को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।’ इसके अलावा अच्छी सैलरी न मिलने के चलते भी लोग नहीं मिल रहे हैं। डॉ एला ने भी सीएनबीसी-टीवी18 को बताया था कि उनकी कंपनी को काम करने वाले अच्छे लोग नहीं मिल रहे हैं। कोवैक्सीन को बनाने के लिए 200 से ज्यादा टेस्ट करने पड़ते हैं।
वैक्सीन बनाने की लंबी प्रक्रिया
एक्सपर्ट के मुताबिक इनएक्टिव वैक्सीन तैयार करना दुनिया में सबसे मुश्किल काम है। कोवैक्सीन इसी कैटेगरी में आती है। भारत बायोटेक के मुताबिक कोवैक्सीन को बनाने से लेकर रीलीज़ करने में करीब 120 दिन लगते हैं। वायरस के साथ कई तरह के केमिकल ट्रीटमेंट किए जाते हैं। जबकि कोविशिल्ड वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया काफी अलग और थोड़ा कम जटिल है।
वीरो सेल्स को तैयार करना मुश्किल
Covaxin के निर्माण के लिए वेरो कोशिकाओं की आवश्यकता होती है, जो एक अफ्रीकी हरे बंदर के किडनी से मिलती है। इसके बाद भी ढेर सारी प्रक्रिया होती है।