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इजराइल के बिना भी उसके सपने साकार करेगा अमेरिका, हो गई सऊदी से बात

डेस्क: 2020 में अब्राहम अकॉर्ड के तहत अमेरिका की मध्यस्ता में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को ने इजराइल के साथ संबंधों की स्थापना की थी. जिसके बाद चर्चा होने लगी थी कि सऊदी अरब भी जल्द ही इजराइल के साथ राजनयिक संबंध कायम कर लेगा. इसके प्रयास भी शुरू हुए और माहौल भी सकारात्मक बनने लगा. लेकिन गाजा में शुरू हुए इजराइली हमलों के बाद ये उम्मीद भी ठंडे बस्ते में चली गई. दरअसल, अमेरिका और सऊदी अरब एक बड़े मसौदे पर काम कर रहे थे, जिसके तहत मीडिल ईस्ट, यूरोप और साऊथ एशिया के बीच एक नया ट्रेड रूट बनाना, सऊदी अरब और अमेरिका के साथ-साथ क्षेत्र के दूसरे देशों से टेक्नोलॉजी शेयरिंग और सुरक्षा को लेकर समझौते शामिल थे.

अमेरिका और सऊदी के इस मसौदे में इजराइल भी शामिल था. सऊदी अरब इजराइल को मान्यता नहीं देता है, नतीजतन इस समझौते को हकीकत होने के लिए सऊदी अरब और इजराइल के बीच नॉर्मलाइजेशन होना जरूरी था. अमेरिका सालों से इस नॉर्मलाइजेशन डील के लिए सऊदी के साथ बातचीत कर रहा है. सऊदी लचीला होने लगा था लेकिन गाजा से जंग छिड़ने के बाद अब सऊदी अरब और अमेरिका ने इस समझौते को इजराइल बिना ही आगे बढ़ाने पर चर्चा की है. ये पेशकश रियाद द्वारा की गई है, इसके तहत अमेरिका-सऊदी सौदों को पूरा करने के लिए नेतन्याहू को साथ लेने की जरूरत नहीं होगी.


गाजा युद्ध के चलते बाइडेन प्रशासन जिस समझौते के लिए सऊदी से मांग कर रहा था, उसे सऊदी अभी तो पूरा नहीं करेगा. लेकिन सऊदी अरब के साथ एक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने और चीनी-रूसी प्रभाव को मध्य पू्र्व से दूर रखने के लिए प्लान-B को जरूर स्वीकार करेगा. हालांकि अपनी रियाद यात्रा के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन US-सऊदी समझौते को सऊदी-इजराइल नॉर्मलाइजेशन और फिलिस्तीनी राज्य की दिशा में प्रगति से जोड़कर दिखाने की कोशिश करते रहे.

ब्लिंकन की रियाद यात्रा का एक लक्ष्य US-सऊदी समझौतों को अंतिम रूप देना था, अमेरिका अधिकारी इसे लगभग पूरा बता रहे हैं. हालांकि उन्होंने ये साफ किया है कि अभी कोई अंतिम सफलता नहीं मिली है. बता दें कि इस वक्त बाइडेन खेमे में डगमगाहट के संकेत दिख रहे हैं. क्योंकि अभी तक अमेरिकी अधिकारी US-सऊदी डील को इजराइल-सऊदी नॉर्मलाइजेशन के बिना असंभव बताते आए हैं.

सऊदी अरब ये साफ करता आया है कि इजराइल के साथ वे तब तक संबंध नहीं बनाएगा जब तक वे 1967 की सीमाओं के आधार पर दो राष्ट्र समझौते को स्वीकार नहीं कर लेता है. सऊदी के इस ऑफर को स्वीकार करने के लिए इजराइल भी तैयार होता नहीं दिखा है. लेकिन 20 अक्टूबर को अमेरिका ने हमास के इजराइल पर हमला करने की वजह बताते हुए कहा था कि उन्हें लगता है कि हमास ने ये हमला सऊदी-इजराइल डील को रोकने के लिए किया है. बता दें कि हमास ने भी इस बात को अपने एक बयान स्वीकार किया था.

द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और सऊदी के बीच हो रही इस डील में न्यूक्लियर डील भी शामिल है. इस समझौते के बाद अमेरिका रियाद को यूरेनियम पाउडर को गैस में बदलने के लिए एक प्लांट बनाने की इजाजत दे सकता है. लेकिन सऊदी अरब को शुरू में अपने क्षेत्र में यूरेनियम गैस को बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जाएगी, जो कि परमाणु बम बनाने की क्षमता के विकास में अहम रुकावट है.

सऊदी क्राउन प्रिंस MBS पहले भी इस बात के संकेत दे चुके हैं कि अगर ईरान ने परमाणु बम बना लिया तो वे भी अपना परमाणु प्रोग्राम शुरू करेंगे. जानकार मानते हैं कि अमेरिका का सऊदी के इस प्रोग्राम में मदद करना वैसा ही जैसे अमेरिका का नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ सऊथ कोरिया को मदद करना. अमेरिका को चीन, रूस के बढ़ते प्रभाव के साथ साथ मध्य पूर्व में इजराइल के अलावा ईरान के तौर दूसरी परमाणु शक्ति बनने की चिंता है.

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