विदेश

राष्‍ट्रपति जिनपिंग के अफ्रीका से किए ‘चीनी’ वादे पर बढ़ी कड़वाहट


चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Jinping of China) ने कहा था कि अफ्रीका महाद्वीप में कोरोना वैक्‍सीन लगाना, हमारी प्राथमिकता में होगा. इसके बाद इस महाद्वीप में बड़ी तादाद में मास्‍क, कोरोना टेस्टिंग किट्स और मेडिकल संबंधी उपकरण पहुंचाए गए थे. इसके लिए सरकारी मदद के अलावा जैक मा जैसे अरबपतियों ने दान भी किया था. लेकिन वैक्‍सीन अब तक नहीं पहुंची हैं और न ही अब चीन इस बारे में खुलकर कुछ बोल रहा है.

चीन के विदेश मंत्री वैंग यी ने भी अफ्रीकी देशों के दौरे पर होने के बावजूद इस बारे में चुप्‍पी साध रखी है. राष्‍ट्रपति के वादे और चीन सरकार की मदद को लेकर अफ्रीकी देशों को जो उम्‍मीद थी, अब उस पर अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर चर्चा हो रही है. वैंग अपना दौरा सेशल्‍स में समाप्‍त करेंगे जो पहला अफ्रीकी देश है जो अपने नागरिकों को वैक्‍सीन लगाने जा रहा है. यहां चीन की सिनोफार्म वैक्‍सीन के 50,000 डोज दान स्‍वरूप आए हैं.

यह दान, चीन नहीं बल्कि यूनाइटेड अरब अमीरात की ओर से मिला है. वह सेशल्‍स में व्‍यापारिक हितों का इच्‍छुक है. उसने चीन की कंपनी के लिए क्लिनिकल ट्रायल करने के बदले ये वैक्‍सीन हासिल किए हैं. यदि चीन से वैक्‍सीन नहीं आती हैं कि तो चीन के लिए यह बहुत मुश्किल भरा हो जाएगा. अभी तक चीन कहता आया है कि वह अफ्रीकी भाइयों के दुख-दर्द को साझा करता है. यदि अफ्रीकी कोरोना वायरस से ग्रस्‍त होते रहे तो वे अपनी सीमाओं में फंस जाएंगे जैसे कि लाखों लोग चीन में फंस गए थे.

उम्‍मीद जगाई पर राहत की वैक्‍सीन नहीं मिली
कोरोना से लड़ने के लिए पश्चिमी देशों ने तो वैक्‍सीन के लिए पहले ही कई इंतजाम कर रखे हैं, लेकिन उनके संबंध चीन से बेहतर नहीं हुए हैं. कोरोना वायरस के लिए जिम्‍मेदार चीन के लिए उनके मन में अभी नकारात्‍मक भाव हैं. व्‍यापार संघर्ष और मानव अधिकार मुद्दों के कारण भी चीन अलग-थलग पड़ गया है. ऐसे में उसे अफ्रीकी देशों से उम्‍मीद थी, कि वैक्‍सीन की मदद कर के वह उनसे अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भरोसा हासिल कर लेगा. ऐसे में चीन के राष्‍ट्रपति ने अफ्रीकी देशों को वैक्‍सीन देने में प्राथमिकता का वादा करके एक नई उम्‍मीद भी जगा दी थी.

इधर चीन के पास अपने राष्‍ट्रपति के शब्‍दों की लाज रखने के लिए पर्याप्‍त संसाधन मौजूद हैं. लेकिन वैक्‍सीन अभी तक अफ्रीकी देशों को नहीं भेजा गया है. चीन के सिनोफार्म वैक्‍सीन को देश में उपयोग करने की स्‍वीकृति पहले ही मिल चुकी है और चार अन्‍य कंपनियों के वैक्‍सीन क्लिनिकल ट्रायल के अंतिम दौर में हैं. उन्‍हें भी स्‍वीकृति जल्‍द मिल सकती है. वैक्‍सीन की खासियत है कि इन्‍हें अत्‍यंत कम तापमान पर रखना जरूरी नहीं है. इससे उनका परिवहन और दूसरे देशों को भेजा जाना आसान हो गया है.

आखिर चीन के विदेश मंत्री की चुप्‍पी क्‍यों?
इधर, चीन अपने लाखों नागरिकों को वैक्‍सीन लगा चुका है और उसने बीते जून में अफ्रीका के सरकारी कर्मचारियों को भी ट्रायल के तौर पर वैक्‍सीन लगाए थे ताकि चीन के नागरिक अफ्रीका में सुरक्षित होकर काम कर सकें. हालांकि अफ्रीका में चीन के वैक्‍सीन के तीसरे फेस के ट्रायल्‍स नहीं हुए. ये ट्रायल्‍स मध्‍य पूर्व (मिडिल ईस्‍ट) और दक्षिण अमेरिका में हुए. इससे दुनिया को आधुनिक वैक्‍सीन की जानकारी मिली. चीन अपने महत्‍वपूर्ण वैक्‍सीन डिप्‍लोमेसी के तहत दक्षिण चीन से इथियोपिया के बीच एयर ब्रिज बना चुका है तो उसने काहिरा में वैक्‍सीन निर्माण इकाई बनाना शुरू की है. जब दुनिया भर की निगाहें वैक्‍सीन को लेकर चीन के प्रयासों पर टिकी हुई है तब उसके विदेश मंत्री का खामोश रहना कई सवालों को जन्‍म दे रहा है.

अभी यह साफ नहीं है कि क्‍या अफ्रीका को चीन वाली वैक्‍सीन मिल सकेगी या नहीं? अगर मिलेगी तो किन शर्तों के साथ? इस बारे में लाइबेरिया के पूर्व मंत्री और वरिष्‍ठ योजनाकार डब्‍ल्‍यू जीयूदे मूर ने कहा कि ‘मुझे यह नहीं मालूम किसी भी अफ्रीकी देश को चीन की वैक्‍सीन के डिलेवरी मिल रही है. वैक्‍सीन दिए जाने को लेकर किए गए वादे झूठे हैं. अभी तक तो कोई टाइमटेबल तक नहीं हैं. अफ्रीका में वैक्‍सीन अभियान का लेकर पूछ गए सवालों पर चीन का विदेश मंत्रालय खामोश बैठा हुआ है. हालांकि दबाव बढ़ने पर सरकारी मीडिया ने इसका जवाब देते हुए था कि वैक्‍सीन की आड़ में राजनीतिक लाभ का कोई इरादा नहीं है. सरकारी मीडिया के अनुसार संकट के शुरू में चीन ने 148 मेडिकल वर्कर्स को 11 अफ्रीकी देशों में भेजा था.

अफ्रीका से रिश्‍ते सबसे बड़ी प्राथमिकता
वैंग ने नाइजीरिया, कांगो, बोत्‍स्‍वाना, तंजानिया और सेशल्‍स की यात्राएं कीं. यह एक तीस सालों से चली आ रही परंपरा है कि चीन का टॉप डिप्‍लोमेट साल का पहला दौरा अफ्रीका का ही करता है. यह साफ बताता है कि चीन के लिए अफ्रीका से रिश्‍ते रखना बहुत अहम है. अफ्रीका में केसों की संख्‍या उतनी नहीं रही जितनी अमेरिका या भारत में देखी गई.

इस महाद्वीप में 70,000 से कम मौते हुई हैं. जबकि भारत में 1,50,000 और इससे दोगुनी अमेरिका में मौतें हुई हैं. लाइबेरिया के पूर्व मंत्री मूर ने कहा कि अफ्रीकी देशों को वैक्‍सीन की सख्‍त जरूरत है. ये स्‍वास्‍थ्‍य के साथ साथ आर्थिक पक्ष के लिए भी जरूरी है. ये देश, चीन से या विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की कोवैक्‍स योजना के जरिए फ्री में उपलब्‍ध कराने की उम्‍मीद रखते हैं. इनसे सौदेबाजी में कोई लाभ नहीं होगा.

वहीं, वैश्विक स्वास्थ्य के लिए विदेश संबंधों पर बनी परिषद के एक वरिष्ठ साथी वरिष्‍ठ सदस्‍य यानझो उंग हुआंग ने कहा कि चीन की छवि को सुधारना चाहते हैं, साथ ही चीन के वैक्‍सीन का मार्केट शेयर भी बढ़ाना चाहते हैं. इसके अलावा खासतौर पर जहां चीन का रणनीतिक हित हो, वे वैक्‍सीन को एक रणनीति साधन के तरह इस्‍तेमाल करना चाहते हैं.

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