खरी-खरी

सीहोर में मौत का शोर…

मौत तो सबको आनी है… जीवन ही तो परेशानी है…अपने कर्म के बंधनों से लड़ते लोगों को बहलाना सबसे बड़ी बेमानी है… कौन है जो कलियुग में भी शिव को विषपान करा रहा है… टूटती आशाएं… बिखरा हुआ विश्वास… पीड़ाओं का एहसास और आभास मिटाने का दावा कर खुद शिव बना जा रहा है…जो भाग्य […]

खरी-खरी

देश है मजबूत… तो क्यों लोग देश छोडऩे को मजबूर

देश का खाते हैं… देश में नाम कमाते हैं… देश में पढ़ते हैं… देश में पलते-बढ़ते हैं… लेकिन जब कुछ बन जाते हैं… जिनके भविष्य संवर जाते हैं… वो देश छोडक़र चले जाते हैं… और उन्हें हम प्रवासी कहकर गले लगाते हैं… पिछले 11 सालों में 16 लाख लोगों ने इस देश की नागरिकता छोडक़र […]

खरी-खरी

परहेज नहीं परम्परा है यह मोदीजी…

जब देश आपको सुन रहा हो… समझ रहा हो… स्वीकार कर रहा हो… तब आपकी जिम्मेदारी बन जाती है कि आपकी भाषा में विनम्रता, विचारों में विवेक, ज्ञान की दूरदर्शिता और समाज और संस्कृति की परख होना जरूरी है… आप कटाक्ष करें… आप तंज भी कसे… आप सवाल भी दागे और जवाब भी मांगे, लेकिन […]

खरी-खरी

मोदीजी की पाठशाला…जो हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया… वो अपना आसमान खुद बनाता चला गया

दो दिन तक संसद में राहुल गांधी गुर्राए…अडानी के नाम पर चीखे-चिल्लाए…आरोप पर आरोप लगाए…मोदी अडानी के समीकरण बताए…जहां-जहां मोदी गए, वहां-वहां अडानी ने अनुबंध पाए…चंद सालों में अरबपतियों में शुमार होने की सरकारी मदद के किस्से सुनाए… लगा था प्रधानमंत्री आएंगे… अडानी पर साफगोई जताएंगे…लेकिन राजनीति के मंजे धुरंधर कूटनीति के चाणक्य…सोच से परे […]

खरी-खरी

हे मोहन… जरा हमारी भागवत पर भी नजर डालिये… जातियों की ऊंच-नीच की असली वजह तो जानिये…

नई भागवत कथा… संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी मोहनी शैली में नई भागवत सुनाते हुए समाज में ऊंची-नीची जाति बनाने का दोष पंडितों पर मढ़ते हुए कहा कि भगवान ने जातियों में कोई वर्ग भेद नहीं किया… यह सब किया धरा पंडितों का है और इससे समाज विभक्त हुआ… संघ प्रमुख की यह भागवत […]

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विकास नहीं विश्वास यात्रा निकालिए… खामोश रहकर नहीं जनता की आवाज बनकर दिखाइए

विधायक-पार्षद इसलिए चुने जाते हैं, ताकि लोग उनसे अपना दर्द साझा कर सकें… रोजमर्रा की परेशानियों का हल निकल सके… क्षेत्र का विकास जनता की जरूरतों की तर्ज पर हो सके… अधिकारियों की तानाशाही और कर्मचारियों की मनमानी पर लगाम लग सके… लेकिन जब जनता के द्वारा चुना गया व्यक्ति जनता की तरह ही असहाय […]

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कागज के फूल… खुशबू कहां से लाएंगे

अडानी ने खरबों गंवाए… हर दिन अमीरी में नीचे आए… अखबारों से लेकर चैनलों तक ने सुर गुंजाए… लेकिन अडानी ने क्या कमाया… क्या गंवाया… कागजों का पैसा था कागजों की कमाई और कागजों पर गंवाई… लेकिन उन करोड़ों देशवासियों का क्या जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई शेयरों के फर्जी उतार-चढ़ाव में लगाई… अडानी के सट्टेबाजी […]

खरी-खरी

और बनो पठान….

अक्ल के अंधे लगाते हैं, खुद के गले में फंदे… चले थे पठान का विरोध करने, बालीवुड की सफल फिल्म बना डाला… पहले ही हफ्ते अरबों का मालिक बना डाला… ऐसा लगा जैसे विरोधियों ने फिल्म की सफलता की सुपारी ली थी… जो नहीं जाना चाहते थे… कथानक से लेकर एक्शन-डायरेक्शन को समझना चाहते थे… […]

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बेचारा पाकिस्तान… जिंदा नाम… मुर्दा अवाम

उसके दर्द की दवा क्या है… जो दवा को भी दर्द का सामान बना डाले… सौंपी थी जिसे हंसती-खेलती भारत की धरती… उसे मौत और मुफलिसी का पाकिस्तान बना डाला… उस पर ना रोष ना आक्रोश आता है… लेकिन दया और करुणा से दिल भर जाता है, क्योंकि उस छोर पर वो लोग ही बसते […]

खरी-खरी

ग्लोबल-ग्लोबल सब करे लोकल समझे न कोय… जो लोकल का मान धरे तो ग्लोबल पीछे होय

गैरों पे करम…अपनों पे सितम… थोड़ा भी कर दो रहम तो लोकल ग्लोबल को मात देता नजर आएगा… मुख्यमंत्रीजी आपको दर-दर नहीं अपने ही दर पर पूरे प्रदेश का विकास नजर आएगा… संभावनाओं की सुर्खियां तो इस शहर में भी भरी पड़ी हैंं, लेकिन उनकी अपेक्षाएं आपके अपने अधिकारियों, नौकरशाहों और बाबुओं के पैरों तले […]