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जोशीमठ संकट को लेकर केंद्र अलर्ट, आपदा से निपटने के लिए सरकार ने बनाई विशेष योजना

देहरादून (Dehradun)। उत्तराखंड (Uttarakhand) के जोशीमठ को भूस्खलन और भू-धंसाव क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद राहत और बचाव की कोशिशें तेज कर दी गई हैं। इस आपदा पर खुद पीएम मोदी (PM Modi) ने कमान संभाल ली है। प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) से फोन पर बात की और निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का सुझाव दिया। उन्होंने सीएम धामी से जोशीमठ से उजड़ चुके लोगों के पुनर्वास के लिए अब तक उठाए गए कदमों की भी जानकारी ली। पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री को जरूरी मदद देने का भी भरोसा दिया। वहीं केंद्र सरकार (central government) ने रविवार को कहा कि तात्कालिक प्राथमिकता लोगों की सुरक्षा करना है।

पीएमओ एक्टिव, केंद्रीय एजेंसियां कर रहीं मदद
इसके बाद पीएमओ ने उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की। पीएमओ ने बताया कि उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने जानकारी दी है कि केंद्रीय विशेषज्ञों के सहयोग से राज्य और जिले के अधिकारियों ने जमीनी स्तर पर स्थिति का आकलन किया है। आपदा में लगभग 350 मीटर चौड़ी भू-पट्टी प्रभावित हुई है। केंद्र सरकार की एजेंसियां और विशेषज्ञ भी जोशीमठ की स्थितियों से निपटने के लिए योजनाएं तैयार करने में उत्तराखंड सरकार की मदद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी इस घटना को लेकर चिंतित हैं।


विशेषज्ञों की टीम करेगी अध्ययन
पीएमओ ने बताया कि एनडीएमए, आईआईटी रुड़की, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान और केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों की एक टीम स्थितियों का अध्ययन करेगी और सिफारिशें देगी। अब सीमा प्रबंधन सचिव और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य सोमवार को उत्तराखंड का दौरा करेंगे और स्थिति का जायजा लेंगे। एनडीआरएफ की एक टीम और राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) की चार टीमें पहले ही जोशीमठ पहुंच चुकी हैं।

पीएम के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने की समीक्षा बैठक
उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने बैठक के दौरान पीएमओ को जमीनी स्थिति की जानकारी दी। जोशीमठ संकट (joshimath crisis) पर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने भी समीक्षा बैठक की। उन्होंने कहा कि प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों की सुरक्षा तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए। राज्य सरकार को प्रभावित लोगों के साथ निरंतर संचार स्थापित करना चाहिए। स्थिति और खराब होने से रोकने के लिए तत्काल प्रयास किए जाने चाहिए।

समयबद्ध पुनर्निर्माण योजना की जाए तैयार
पीएम मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने कहा कि जोशीमठ संकट के समाधान के लिए स्पष्ट समयबद्ध पुनर्निर्माण योजना तैयार की जानी चाहिए। इसकी निरंतर निगरानी की जानी चाहिए। जोशीमठ के लिए जोखिम के प्रति संवेदनशील शहरी विकास योजना भी विकसित की जानी चाहिए। विभिन्न केंद्रीय संस्थानों- एनडीएमए, एनआईडीएम, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, आईआईटी रुड़की, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान और केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों को उत्तराखंड प्रशासन के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

विशेषज्ञों के साथ मंथन
इस समीक्षा बैठक में कैबिनेट सचिव, केंद्र सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों के अलावा उत्तराखंड के मुख्य सचिव और राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भाग लिया। बैठक में जोशीमठ जिला के अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया। आईआईटी रुड़की, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के विशेषज्ञों ने भी इसमें भाग लिया।

जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा
इस बीच उत्तराखंड के मुख्य सचिव सुखबीर सिंह संधू ने जमीनी स्थिति का जायजा लेने के लिए रविवार को जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अशोक कुमार और मुख्यमंत्री की सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम के साथ संधू ने जमीन धंसने से बुरी तरह प्रभावित मनोहर बाग, सिंगधार और मारवाड़ी इलाकों का निरीक्षण किया। अधिकारियों ने कहा कि बड़ी दरारें वाले मकानों में रह रहे 13 और परिवारों को प्रशासन ने रविवार को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाए गए परिवारों की संख्या अब 68 हो गई है।

पहाड़ धंसने के कारणों का पता लगा रहे भूवैज्ञानिक
उत्तराखंड के मुख्य सचिव संधू ने कहा कि ऐसी स्थिति में किसी को कोई जोखिम नहीं उठाना चाहिए। निवासियों की सुरक्षा तात्कालिक प्राथमिकता है और यह सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन लगातार काम कर रहा है। भूवैज्ञानिक भूमि धंसने के कारणों का पता लगा रहे हैं। उनकी सिफारिशों के आधार पर जोशीमठ में जरूरी उपाय किए जाएंगे। मालूम हो कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को जोशीमठ का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि जोशीमठ संस्कृति, धर्म और पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।

लोगों से राहत केंद्रों में जाने की अपील
चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने राहत और बचाव प्रयासों के बारे में रविवार को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि शहर के भीतर विभिन्न स्थानों पर 229 कमरों की पहचान की गई है जिनमें 1,271 लोगों को ठहराया जा सकता है। 46 परिवारों को जरूरी घरेलू सामान खरीदने के लिए 5000 रुपये प्रति परिवार की दर से 2.30 लाख रुपये की अनुग्रह राशि के अलावा राशन किट वितरित की गई है। खुराना ने घर-घर जाकर क्षतिग्रस्त घरों में रहने वाले लोगों से राहत केंद्रों में जाने का अनुरोध किया।

एक हफ्ते से तेजी से धंस रही जमीन
वहीं गढ़वाल के आयुक्त सुशील कुमार ने कहा कि कम से कम 82 और परिवारों को जल्द से जल्द राहत केंद्रों में ले जाना होगा। कुमार जमीनी स्तर पर स्थिति की निगरानी करने वाली समिति के प्रमुख हैं। वह जोशीमठ में डेरा डाले हुए हैं। जोशीमठ में कुल 4,500 इमारतें हैं और इनमें से 610 में बड़ी दरारें आ गई हैं, जिससे वे रहने लायक नहीं रह गई हैं। एक सर्वेक्षण चल रहा है और प्रभावित इमारतों की संख्या बढ़ सकती है। जोशीमठ में काफी समय से जमीन धंसने का सिलसिला धीरे-धीरे चल रहा है, लेकिन पिछले एक हफ्ते में यह बढ़ गया है।

विशेषज्ञ बोले- यह गंभीर चेतावनी
विशेषज्ञों ने संरक्षण के लिए लघु और दीर्घकालिक योजनाएं तैयार करने का सुझाव दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन का धंसना मुख्य रूप से राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के कारण है और यह एक बहुत ही गंभीर चेतावनी है कि लोग पर्यावरण के साथ इस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं कि पुरानी स्थिति को फिर से बहाल कर पाना मुश्किल होगा।

सेटेलाइट तस्वीरों से भी अध्ययन
उत्तराखंड सरकार ने हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) और देहरादून स्थित भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस) से सेटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से जोशीमठ क्षेत्र का अध्ययन करने और फोटो के साथ विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का अनुरोध किया है। जोशीमठ में जमीन धंसने और घरों में दरारें पड़ने के मुद्दे पर गौर करने के वास्ते एक सेवानिवृत न्यायाधीश की अगुवाई में समिति बनाने और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में भी एक याचिका दायर की गई है।

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