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Chandrayaan 3 : चंद्रयान-3 की 45 से 50 दिन की होगी यात्रा, जाने इस महामिशन की पूरी कहानी

नई दिल्‍ली (New Delhi) । 14 जुलाई 2023 की दोपहर 2:35 बजे चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) चंद्रमा की ओर उड़ान भरेगा. करीब 45 से 50 दिन की यात्रा के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास इसकी लैंडिंग होगी. चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर भेजने के लिए LVM-3 लॉन्चर का इस्तेमाल किया जा रहा है. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर (Satish Dhawan Space Center) के लॉन्च पैड 2 से होगी. चंद्रयान-3 मिशन के बारे में जानिए सबकुछ सिर्फ 10 सवालों में…

1. चंद्रयान-3 मिशन क्या है?
चंद्रयान-3 मिशन साल 2019 में गए चंद्रयान-2 मिशन का फॉलोअप मिशन है. जिसमें लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग और रोवर को सतह पर चलाकर देखा जाएगा.

2. चंद्रयान-2 से कैसे अलग हैं चंद्रयान-3?
चंद्रयान-2 में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर था. जबकि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर के बजाय स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल है. जरुरत पड़ने पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की मदद ली जाएगी. प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर को चंद्रमा की सतह पर छोड़कर, चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाता रहेगा. यह कम्यूनिकेशन के लिए है.


3. चंद्रयान-3 का मकसद क्या है?
ISRO वैज्ञानिक दुनिया को बताना चाहते हैं कि भारत दूसरे ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग करा सकता है. वहां अपना रोवर चला सकता है. चांद की सतह, वायुमंडल और जमीन के भीतर होने वाली हलचलों का पता करना.

4. चंद्रयान-3 में कितने पेलोड्स जा रहे हैं?
चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल में कुल मिलाकर छह पेलोड्स जा रहे हैं. पेलोड्स यानी ऐसे यंत्र जो किसी भी तरह की जांच करते हैं. लैंडर में रंभा-एलपी (Rambha LP), चास्टे (ChaSTE) और इल्सा (ILSA) लगा है. रोवर में एपीएक्सएस (APXS) और लिब्स (LIBS) लगा है. प्रोपल्शन मॉड्यूल में एक पेलोड्स शेप (SHAPE) लगा है.

5. कितने दिन काम करेगा चंद्रयान-3?
इसरो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडर-रोवर चंद्रमा पर एक दिन तक काम करेंगे. यानी पृथ्वी का 14 दिन. जहां तक प्रोपल्शन मॉड्यूल की बात है तो यह तीन से छह महीने तक काम कर सकता है. संभव है कि ये तीनों इससे ज्यादा भी काम करें. क्योंकि इसरो के ज्यादातर सैटेलाइट्स उम्मीद से ज्यादा चले हैं.

6. कौन सा रॉकेट ले जाएगा चंद्रयान को?
चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के लिए इसरो LVM-3 लॉन्चर यानी रॉकेट का इस्तेमाल कर रहा है. यह भारी सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में छोड़ सकता है. यह 43.5 मीटर यानी करीब 143 फीट ऊंचा है. 642 टन वजनी है. यह LVM-3 रॉकेट की चौथी उड़ान होगी. यह चंद्रयान-3 को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में छोड़ेगा. यानी 170×36500 किलोमीटर वाली अंडाकार कक्षा. इससे पहले इसे GSLV-MK3 बुलाते थे. जिसके छह सफल लॉन्च हो चुके हैं.

7. इस मिशन का सबसे कठिन हिस्सा कौन सा है?
लैंडर को चांद की सतह पर उतारना सबसे कठिन काम है. 2019 में चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग की वजह से मिशन खराब हो गया था. चंद्रयान-3 के लैंडर के थ्रस्टर्स में बदलाव किया गया है. सेंसर्स ज्यादा संवेदनशील लगाए गए हैं. लैंडिंग के समय वैज्ञानिकों की सांसें थमी रहेंगी.

8. कितने दिन बाद चांद पर लैंड करेंगे लैंडर-रोवर?
14 जुलाई 2023 की लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर 45 से 50 दिन के अंदर जब सॉफ्ट लैंडिंग करेंगे. इस दौरान 10 चरणों में मिशन को पूरा किया जाएगा.

9. दुनिया के कितने देश कर चुके हैं चांद पर लैंडिंग?
इससे पहले दुनिया के चार देश चांद पर चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास कर चुके है. कुल मिलाकर 38 बार सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया गया है. लेकिन सारे सफल नहीं हुए.

10. चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की सफलता दर कितनी है?
चार देशों द्वारा किए गए प्रयास में सॉफ्ट लैंडिंग की सफलता दर सिर्फ 52 फीसदी है. यानी सफलता की उम्मीद 50 फीसदी ही करनी चाहिए.

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