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चीन की ‘गुब्बारा’ चाल, तोड़ के लिए भारत रहे तैयार

– कमलेश पांडेय

अमेरिका में अपनी ‘ जासूसी गुब्बारा’ चाल पर मात मिलने से चीन आहत है। यह अलग बात है कि प्रमुख देशों की निगरानी क्षमताओं का परीक्षण करने के चीन के ‘जासूसी गुब्बारा’ उड़ाने के अभियान की अमेरिका ने हवा निकाल दी। अमेरिकी हवाई क्षेत्र में घुसे इस गुब्बारे को अमेरिकी वायुसेना ने अपनी मिसाइल से मार गिराया है। चीन कह रहा है कि यह उसका असैन्य मानव रहित यान था। चीन ने इसे मार गिराने पर अमेरिका से कड़ा विरोध जताया है। चीन ने अमेरिका को अंजाम भुगतने की धमकी दी है।


इस घटनाक्रम का संदेश स्पष्ट है। अमेरिका ने साहसिक कदम उठाकर दुनिया के सामने अपनी सम्प्रभुता की रक्षा को लेकर नजीर पेश की है। साथ ही चीन को स्पष्ट संकेत दिया है कि उसकी तकनीक दुनिया में अव्वल है। उससे किसी का भी बच निकलना सम्भव नहीं है। देखा जाए तो इससे वैश्विक पटल पर चीन के नापाक इरादों की कलई एक बार फिर खुल गई। इससे भारत को भी सबक लेने और अतिशय सावधानी बरतने की जरूरत है। वास्तव में, चीन के मौसम अनुसंधान विमान को जासूसी गुब्बारा समझकर अमेरिका के मार गिराये जाने के कुछ खास रणनीतिक मायने हैं। इन्हें समय रहते ही समझ जाने में सभी देशों की भलाई है।

घटनाक्रम यह है कि 28 जनवरी को अलास्का, 30 जनवरी को कनाडा और 31 जनवरी को अमेरिका के हवाई क्षेत्र मोंटाना में चीन का विशाल जासूसी गुब्बारा देखे जाने से हड़कंप मच गया। इसका आकार तीन बसों के बराबर था। यह गुब्बारा पांच दिन तक अमेरिका के हवाई क्षेत्र में रहा। इस पर बरीक नजर रखी गई। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन ने अपनी संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित करने को तत्काल कदम उठाए। इस बीच अमेरिकी रक्षा एजेंसियां इस जासूसी गुब्बारे की पड़ताल करके इसे निपटाने में जुट गईं।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सूचना मिलते ही इसे जमीन पर किसी को नुकसान पहुंचाए बिना मार गिराने का आदेश दिया। इसके बाद चार फरवरी को इसे दक्षिण कैरोलाइना में अमेरिकी तट से लगभग 9.65 किलोमीटर दूर अटलांटिक महासागर के ऊपर मार गिराया गया। इसका मलबा दक्षिण कैरोलाइना में मिरटल बीच के पास गिरा और 11 किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया। बताया जाता है कि इसमें कनाडा ने भी पूरा सहयोग किया। अब इस मलबे को समेटने का प्रयास अमेरिकी सेना कर रही है। इसका मकसद यह है कि गुब्बारे के माध्यम से एकत्र की गई संवेदनशील सूचनाओं का नष्ट कर दिया जाए। वैसे भी अमेरिका इसका मलबा चीन को लौटाने से इनकार कर चुका है।

विशेषज्ञों की मानें तो चीन ने यह जासूसी गुब्बारा अमेरिका की निगरानी क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए उड़ाया था। हालांकि, चीन इससे इनकार कर चुका है। प्रतिरक्षात्मक तौर पर उसका कहना है कि अमेरिका ने उसके असैन्य मानवरहित यान को बल प्रयोग गिराकर अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन है। इसकी प्रतिक्रिया में वह आगे कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखता है। बताया जा रहा है कि चीन का गुब्बारा मौसम अनुसंधान पोत था, जो तेज हवाओं के कारण अमेरिकी नभ क्षेत्र में प्रवेश कर गया था। अब दुनिया की निगाह चीन के आगामी स्वाभाविक कदम पर टिकी है।

मेरे विचार से भारत को इस घटनाक्रम से सबक लेते हुए चीन के मुकाबले अपने शोध-अनुसंधान को उच्चस्तरीय बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि चीन अमेरिका से ज्यादा भारतीय महत्वाकांक्षाओं के लिए बाधक और खतरा साबित हो सकता है। यह बात किसी से छिपी हुई भी नहीं है।

संभव है कि जल और थल पर इस तरह की जासूसी करते रहने का आदी हो चुका चीन, भारतीय नभ (आकाश) क्षेत्र में भी इस तरह की जासूसी कर चुका हो। और उसे हमारे टोही तंत्र पकड़ने में नाकामयाब रहे हों। इसलिए अमेरिकी तकनीक को हासिल करने का प्रयास करते हुए भारत को अब आगे से अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है।

गौरतलब है कि अमेरिका को विश्व का सुपर पावर समझा जाता है। अमेरिका की जगह लेना चीन की दशकों पुरानी हसरत है। इसलिए वह असीम सैन्य क्षमता व आर्थिक शक्ति हासिल करने को लालायित रहता है। इसी कड़ी में वह तरह तरह के अनुप्रयोग करता रहता है। पहले रूस भी यही सोच रखता था, लेकिन 1990 के दशक में उसके यह अरमान टूट गए। इसलिए अब वह चीन को आगे करके अमेरिका को बर्बाद करने की कूटनीति पर अमल कर रहा है। कुछ कूटनीतिज्ञ कहते हैं कि अमेरिका भारत को आगे करके चीन को प्रत्यक्ष और रूस को अप्रत्यक्ष हानि पहुंचाने की सोच रखता है। हालांकि, भारतीय कूटनीति की परिपक्वता अक्सर अमेरिकी सोच पर भारी पड़ जाती हैं। ऐसा इसलिए कि भारत रूस का मित्र है। भारत, चीन को अपना दुश्मन नम्बर 1 समझता है, लेकिन रूस और अमेरिका दोनों को साधकर बेलगाम चीन को नाथने की मंशा रखता है। इसमें वह अबतक सफल प्रतीत होता आया है।

सच कहा जाए तो वैश्विक पटल पर पहले अमेरिका और रूस के बीच और अब उसकी चीन के बीच तनातनी चल रही है। इस वजह से शेष दुनिया के सभी देशों, आर्थिक और सैन्य गुटों के आर्थिक और सामरिक हित निकट भविष्य में प्रभावित होने के आसार बढ़ रहे हैं। इससे कोई गुटनिरपेक्ष देश भी अछूता नहीं बचने वाला है।

इसलिए सभी देशों को तकनीकी दक्षता हासिल करते हुए अपनी आर्थिक और सैन्य रणनीति को आधुनिक बनाने की पहल करनी चाहिए, ताकि मौका पड़ने पर वे एक दूसरे के काम आ सकें, या फिर मनोनुकूल गुट में शामिल हो जाना चाहिए, ताकि उनकी सम्प्रभुता पर पहले ईराक और अब यूक्रेन जैसी आंच कभी न आए। वहीं, सीरिया, अफगानिस्तान और ताईवान आदि के घटनाक्रमों से भी सभी कमजोर देशों को सबक लेनी चाहिए।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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