उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

गणेश उत्सव में मिट्टी की प्रतिमाएं देंगी पर्यावरण का संदेश

  • कोलकाता से आए कलाकार गंगा की मिट्टी, कानपुर के बाँस और पेड़ों की छाल और बैतूल की घास से बना रहे हैं मूर्तियाँ

उज्जैन। शहर की बंगाली कॉलोनी में कोलकाता से आए मूर्तिकार इन दिनों मिट्टी की आकर्षक गणेश प्रतिमाएँ बना रहे हैं। यह मूर्तियाँ बनने के बाद 5 हजार से 50 हजार तक की होगी। सिंधी कॉलोनी स्थित बंगाली कॉलोनी में कोलकाता से आए कलाकार गंगा की मिट्टी, बैतूल की घांस, कानपुर के बॉस, पेड़ों की छाल और पत्तियों से मूर्तियों का स्वरूप तैयार कर रहे हैं। कोलकाता से आए मूर्तिकार विजयपाल ने अग्रिबाण को बताया कि वह 21 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं उनके द्वारा मूर्तियों का निर्माण इको फ्रेंडली मिट्टी से किया जाता हैं। इनके द्वारा निर्माण की गई मूर्तियाँ मात्र 2 घंटे में ही पानी में घुल जाती हैं। मूर्तियाँ बनाने के लिए 4 महीने पहले ही तैयारी शुरू कर दी जाती है। मैं पहली बार उज्जैन में मूर्तियाँ निर्माण के लिए आया हूँ। मेरे साथ 8 कारीगर और हैं जो बंगाली मूर्तियों का निर्माण करते हैं।


हम ग्राहकों की मांग के ऊपर मूर्तियों का निर्माण करते हैं। जैसा ऑर्डर आता है वैसी मूर्ति बनाई जाती है। आपने बताया कि हम ऑयल पेंट का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हम कलर पेड़ों की छाल पत्तियों से बने हुए कलरों का उपयोग करते हैं। हमारे द्वारा बनाई गई प्रतिमा 5 हजार से 50 हजार रुपए तक की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है लेकिन फिर भी लागत और मेहनत के हिसाब से रुपया नहीं मिलता लेकिन संतुष्टि होती है। उज्जैन में 18 फीट तक प्रतिमा बनाने की अनुमति है। 14 से 15 फीट तक की प्रतिमा बनाई जाती हैं। 4 महीने में सवा सौ मूर्ति तक हम निर्माण कर देते हैं।

इन वस्तुओं से बनती है मूर्तियाँ
मूर्तियों के निर्माण के लिए स्ट्रक्चर जो निर्माण किया जाता है। कानपुर से आए बास से बनाया जाता है। बैतूल से धान की घास, नदी की मिट्टी, गंगा की मिट्टी, व्हाइट मिट्टी, डिस्टेम्पर पेंट का कलर कर उसे पूर्ण प्रतिमा का निर्माण किया जाता हैं। पर्यावरण की दृष्टि से देखते हुए ही मूर्तियों को बनाया जाता है।

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