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कोरोनाः पहले से अधिक सतर्कता की जरूरत

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– योगेश कुमार सोनी

हम अनलॉक-4 में प्रवेश कर रहे हैं। मेट्रो के साथ अन्य तमाम चीजों खुल रही हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के लगातार भयावह होते आंकड़े भयभीत कर रहे हैं। बीते शनिवार केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि जांच का आंकड़ा चार करोड़ के पार पहुंच गया जिसमें साढ़े सात लाख संक्रमित हैं। बीते एक महीने में संक्रमित होने की रिपोर्ट कम थी लेकिन पिछले पांच दिनों से मामले अचानक बढ़ गए। देश में कोरोना संक्रमण के आंकड़े में हर रोज बढ़ोतरी होने से चिंता का विषय बन गया। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पिछले चार दिनों से हर रोज एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। वहीं पचहत्तर हजार से ज्यादा लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं।

कुछ ऐसे राज्यों पर गौर करें तो जहां स्थिति नियंत्रण में नहीं आ रही। महाराष्ट्र में करीब दो लाख एक्टिव मामले हैं जिसमें लगभग चौबीस हजार लोगों की मौत हो चुकी है। राजधानी दिल्ली में चौदह हजार एक्टिव मामलों के साथ साढ़े चार हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। तमिलनाडु में 54 हजार मामले सामने आ चुके हैं और लगभग सात हजार लोगों की मौत हुई। असम में बीस हजार केस हैं लेकिन यहां मृत्यु के आंकड़े बहुत कम हैं, यहां तीन सौ लोगों की मौत हुई है। उत्तर प्रदेश में 52 हजार मामलों के साथ करीब 3200 लोगों की जान जा चुकी।

जनसंख्या के आधार पर सभी राज्यों की स्थिति एक जैसी है लेकिन सवाल यही है कि यदि सरकारें सिस्टम को संचालित न करें तो देश कैसे चले? कोरोना काल में प्रधानमंत्री ने अपनी सूझबझ से काफी समय निकाला। हिन्दुस्तान जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश को एक धारा में संचालित करना बेहद कठिन काम है लेकिन एक ही सूत्र से निर्वाह किया गया है। जनसंख्या के आधार पर अन्य देशों को अपेक्षा हमारे यहां स्थिति बेहतर तरीके से संभाला गया है जिसका परिणाम भी हमने देखा लेकिन पिछले पांच दिनों से हालात नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि अब हम लापरवाह होते जा रहे हैं। लोगों ने बाहर से आकर नहाना व बार-बार हाथ धोना या सैनेटाइजर का प्रयोग बंद कर दिया।

दरअसल रिकवरी रेट बेहतर आने से हम कोरोना को हल्के में ले रहे हैं। कम उम्र के बच्चे, बूढ़े व बीमार लोगों को अधिक एहतियात बरतने की जरूरत है। कोरोना का सबसे ज्यादा अटैक इन लोगों पर ही पड़ रहा है। अब हम किसी भी नियम-कानून का पालन करना व्यर्थ समझ रहे हैं जो भारी पड़ रहा है। दरअसल मामला यह है कि हम किसी भी मामले में जैसे ही आरामदायक स्थिति में आते हैं वैसे ही लापरवाही करना शुरू कर देते हैं।

हमें कुछ कार्य शासन-प्रशासन के डर या दिशा-निर्देश के अलावा स्वयं भी करने चाहिए। जिसमें हमारे या हमारे परिवार व समाज की सुरक्षा हो तो जरूर कर लेने चाहिए लेकिन लापरवाही व भेड़चाल से हमारा पुराना रिश्ता है। सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर कुछ भी नहीं देखा जा रहा और सैनेटाइजर का प्रयोग करना व्यर्थ समझने लगे। मास्क भी इसलिए पहन रहे हैं क्योंकि उसपर प्रशासन सख्त है और बिना मास्क के चालान काट दिया जाता है।

जब पूरी दुनिया कोरोना के रूप में एक अज्ञात व अदृश्य शत्रु से लड़ रही तो हमें समझ जाना चाहिए कि हमारे ऊपर कभी भी व कहीं भी वार हो सकता है। इसके अलावा दुर्भाग्य है कि इसकी वैक्सीन नहीं बनी। हालांकि रूस ने वैक्सीन को लांच कर दिया और उसके अनुसार उन्होंने कारगर दवाई बना ली लेकिन विश्वस्तर पर इसको पूर्णतः सत्यापित नहीं माना जा रहा। स्पष्ट है कि फिलहाल सुरक्षा ही बचाव है।

अनदेखी की वजह से हम दुनिया में तीसरे नंबर पर आ गए। अभीतक पहले स्थान पर अमेरिका है और दूसरे नंबर पर ब्राजील है। हालांकि इन दोनों देशों की जनसंख्या हमारे यहां से बहुत कम है लेकिन मानवीय क्षति तो एक इंसान के रूप में भी कष्ट देती है। हमारे देश में कई तरह की सोच के मनुष्य देखे जा सकते हैं। यदि किसी भी चीज पर सख्ती कर दी जाए तो सरकार की तानाशाही और यदि ढील दे दी जाए तो सरकार बेपरवाह।

बहराहल, देश की गाड़ी ट्रैक पर लाने के लिए सरकार देश को पूर्ण रूप से अनलॉक कर रही है। लेकिन अब हमें और सचेत रहने की जरूरत है चूंकि हर कदम पर जोखिम है और चलना भी जरूरी है। इस विचित्र स्थिति में हमें स्वयं भी जागरूक रहना है और अपने आसपास की दुनिया को भी समझाना है चूंकि इस मामले में हुई गलती अपने सिवाय कई लोगों पर भारी पड़ती है। जैसे शुरुआत में हम सभी चीजों को गंभीरता ले रहे थे, फिर से वैसी ही गंभीरता की जरूरत है। कठिन समय हमेशा समझदारी से निकलता है और उसके लिए जागरूक होना अनिवार्य है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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