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अमेरिकी डॉलर ने प्रमुख मुद्राओं को छोड़ा पीछे, जानिए रुपया का क्‍या है हाल

नई दिल्‍ली (New Delhi) । अमेरिकी डॉलर (Dollar) इस साल की शुरुआत से लगातार मजबूत होता जा रहा है। अमेरिकी मुद्रा (US currency) ने प्रमुख मुद्राओं को पीछे छोड़ दिया है। इन मुद्राओं के मुकाबले डॉलर लगातार बढ़त हासिल कर रही है। जिसे लेकर नीति-निर्माता अपने-अपने देश की अर्थव्यवस्था पर इसके असर को लेकर परेशान हैं। मिंट ने वैश्विक वित्तीय बाज़ार के सबसे महत्वपूर्ण मूल्य संकेतों में से एक पर नजर डालकर इसकी वजह तलाशने की कोशिश की है।

ताकत कहां से मिल रही
किसी मुद्रा को मजबूत तब माना जाता है जब वैश्विक विदेशी मुद्रा बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले उसका मूल्य बढ़ जाता है। छह प्रमुख मुद्राओं के समक्ष डॉलर के प्रभाव को आंकने वाला आईसीई यूएस डॉलर इंडेक्स बीते चार महीनों में अब तक लगभग चार फीसदी ऊपर चढ़ चुका है। हालांकि, यह अभी भी 2000 के दशक की शुरुआत में देखे गए उच्चस्तर से कुछ दूर है। इस वर्ष लगभग हर प्रमुख मुद्रा के मुकाबले डॉलर में बढ़त हुई है, यह असामान्य मजबूत प्रवृत्ति डॉलर की प्रधानता को दर्शाती है।


मजबूत होने का कारण
डॉलर के मजबूत होने का प्राथमिक कारण यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों को 20 साल के उच्चतम स्तर पर रखा हुआ है क्योंकि मुद्रास्फीति अभी भी दो फीसदी के अपने लक्ष्य से ऊपर है। केंद्रीय बैंक ने इस महीने की शुरुआत में लगातार छठी बैठक के लिए मानक ब्याज दरों को 5.25 – 5.50% पर अपरिवर्तित छोड़ दिया।

उच्च ब्याज दरों का मतलब है कि ट्रेजरी बांड जैसी अमेरिकी संपत्तियां दुनिया के अधिकांश देशों की तुलना में बेहतर रिटर्न देती हैं – और इसमें जोखिम लगभग शून्य है। अमेरिकी इक्विटी बाजार भी अबतक के सबसे उच्चतम स्तर पर कारोबार कर रहे हैं। इन वजहों से अमेरिका में विदेशी फंड प्रवाह तेजी से बढ़ गया है।

बाकी दुनिया पर क्या असर
मजबूत डॉलर का मतलब है कि सौदा करने वाली दूसरी तरफ की मुद्रा कमजोर हो रही है। ब्लूमबर्ग द्वारा ट्रैक की गई 150 मुद्राओं में से दो-तिहाई मुद्राएं इस साल डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं, जिनमें यूरो, रुपया और युआन भी शामिल हैं। वैश्विक व्यापार डॉलर पर आधारित होने से इनकी आयात लागत बढ़ जाती है। तेल जैसी प्रमुख वस्तुओं की कीमत डॉलर में होती तय है, जिससे आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ जाता है।

भारत के लिए इसके मायने
भारत अपना 85% कच्चा तेल आयात करता है, इसलिए कमजोर रुपया देश के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। रिजर्व बैंक रुपये को सहारा देने के लिए डॉलर बेचता है, लेकिन इसके पास इस काम के लिए सीमित ताकत है। 26 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार तीसरे सप्ताह घटकर 637.922 बिलियन डॉलर रह गया।

मजबूत डॉलर से डॉलर में ऋण वाली कंपनियों पर असर पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपना बकाया चुकाने के लिए रुपये में अधिक भुगतान करना पड़ता है। हालांकि, मजबूत डॉलर से निर्यातकों का राजस्व और मार्जिन बढ़ता है।

भविष्य को लेकर नजरिया
मजबूत मुद्रास्फीति और श्रम बाजार के आंकड़ों के मद्देनजर अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने फेडरल रिजर्व द्वारा जल्द ही ब्याज घटाने की संभावनाओं को कम कर दिया है। निवेशक 2024 में ब्याज दर में केवल 50 आधार अंकों की कटौती की उम्मीद कर रहे हैं, जबकि वर्ष की शुरुआत में 150 आधार अंक घटाने का अनुमान लगाया गया था। विभिन्न देशों में संघर्ष और तनाव बढ़ने से अमेरिकी डॉलर को बल मिला है। इसके अनुरूप जानकारों का कहना है कि कम से कम इस इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही तक डॉलर अपनी बढ़त को बरकरार रख सकता है।

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