भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

विधानसभा सत्र में पेश होगा आर्थिक सर्वेक्षण

भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा के 21 सितंबर से शुरू होने वाले सत्र में सरकार आर्थिक सर्वेक्षण प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी। इसके माध्यम से प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय, औद्योगिक व कृषि विकास दर के आंकड़े सामने रखे जाएंगे। इसके साथ ही वर्ष 2020-21 के लिए बजट अध्यादेश के स्थान पर वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा विनियोग विधेयक प्रस्तुत करेंगे। सरकार नगरीय निकाय चुनाव व्यवस्था में परिवर्तन के लिए संशोधन विधेयक लाएगी। इसके माध्यम से प्रदेश में एक बार फिर मतदाता ही सीधे महापौर और अध्यक्ष का चुनाव करेंगे।
प्रदेश में कोरोना संकट और सत्ता परिवर्तन से जुड़ी गतिविधियों के कारण विधानसभा का बजट सत्र नहीं हो पाया था। इसकी वजह से शिवराज सरकार को एक लाख 66 करोड़ रुपये से अधिक का लेखानुदान अध्यादेश के माध्यम से लाना पड़ा था।
उम्मीद थी कि मानसून सत्र तक स्थितियां सामान्य हो जाएंगी और विधिवत बजट प्रस्तुत होगा लेकिन कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुए सर्वसम्मति से सत्र को स्थगित रखने का निर्णय लिया गया। अब, 21 से 23 सितंबर तक चलने वाले विधानसभा सत्र में सभी जरूरी शासकीय कार्य संपादित किए जाएंगे। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इसमें बजट अध्यादेश के स्थान पर विधेयक लाया जाएगा। वहीं, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग आर्थिक सर्वेक्षण प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। इसमें प्रति व्यक्ति के साथ औद्योगिक सहित अन्य क्षेत्रों की विकास दर के बारे में आंकड़े सामने रखे जाएंगे। सत्र में पेट्रोल और डीजल पर एक-एक रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी के लिए किए गए वैट अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक प्रस्तुत होगा।
वहीं, श्रम कानून और मंडी अधिनियम में अध्यादेश के माध्यम से किए गए बदलाव के लिए श्रम और कृषि विभाग संशोधन विधेयक लाएंगे।
सरकार ने तय किया है कि नगर निगम के महापौर और नगर पालिका व परिषद के अध्यक्ष का चुनाव सीधे मतदाताओं से कराने के लिए प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को फिर से लागू करेगा। इसके लिए नगर पालिक अधिनियम में संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार हो चुका है। कमल नाथ सरकार ने अधिनियम में संशोधन करके चुने हुए पार्षदों में से ही महापौर और अध्यक्ष का चुनाव करने की व्यवस्था को लागू किया था हालांकि उस पर अमल के पहले ही कमल नाथ सरकार गिर गई।
सूत्रों का कहना है कि सरकार 89 आदिवासी विकासखंडों में अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए केंद्र की अनुमति मिलने पर साहूकारी अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव भी रख सकती है। सांसद और विधायकों को शीर्ष सहकारी संस्थाओं का अध्यक्ष और प्रशासक बनाने के लिए सहकारी अधिनियम में किए गए संशोधन के लिए भी विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा।

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