ब्‍लॉगर

शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाना आवश्यक

 

गिरीश्वर मिश्र

कोविड महामारी के चलते साल भर से ज्यादा हुआ कि जनता की जान सांसत में पड़ी हुई है और इस त्रासदी की महा गाथा का ओर-छोर पकड़ना मुश्किल होता जा रहा है। एक अंतहीन से लगने वाले महानाट्य की तरह इसकी कथा खिंचती जा रही है और सामने आने वाले नए एपीसोड में नए-नए क्षेपक आने के साथ नई-नई चुनौतियां आती जा रही हैं और समय पर जरूरी उपाय न कर सकने की कचोट और अव्यवस्था के कुचक्र राष्ट्रीय जीवन के स्थायी भाव से बन गए हैं। हमारी लोकतांत्रिक राजनीति कितनी स्वतन्त्रचेता है और क्या-क्या गुल खिला सकती है, इसका सभी प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। कहाँ तो जनता की सरकार जनता के लिए ही होनी चाहिए थी परन्तु प्रक्रियाओं के चलते राजनीति से सरोकार रखने वालों का अधिकांश समय चुनाव कराने , सरकार बनाने और उसे बचाए रखने की मुहिम चलाने में ही बीतता है। इस काम के लिए समय , साधन, ऊर्जा और शक्ति की कितनी आवश्यकता पड़ती है, यह आये दिन होने वाले चुनावों में, आन्दोलनों , और रैलियों में आसानी से देखी जा सकती है। कोविड महामारी के दौर में भी लगातार हुए विधानसभाई चुनाव में क्या कुछ हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। यह अवश्य विवादग्रस्त विषय है कि कोविड के संक्रमण के प्रसार में इसकी क्या और कितनी भूमिका रही है पर लोकतंत्र की स्थापना और रक्षा के लिए इसका महत्त्व स्वत: प्रमाणित है।

उत्तर प्रदेश की ग्राम सभाओं के लिए हुए चुनाव में कई सौ अध्यापकों की कोविड की बलि चढने और चुने हुए अनेक ग्राम प्रधानों के अकाल कालकवलित होने और पश्चिमी बंगाल में हिंसा की ताजा खबरें बहुत कुछ कह रही हैं। राजनीति और जन हित के बीच तालमेल बिठाना दिन प्रतिदिन कितना मुश्किल होता जा रहा है, यह इस बात से भी उजागर होता है कि महामारी के दौर में भी स्वास्थ्य से जुड़े हर मुद्दे पर आम सहमति और सहयोग विकसित नहीं हो पा रहा है। यह जरूर है कि समस्याओं के निदान और समाधान के लिए पारस्परिक दोषारोपण करने का ही काम बड़ी गंभीरता से लिया जा रहा है। हमें यह नहीं भूलना होगा कि पिछले दिनों प्रतिदिन चार लाख रोगी और लगभग चार हजार रोगियों की मृत्यु की दर बनी रही। इसी के साथ आक्सीजन , अस्पताल में बेड और दवा की अनुपलब्धता से उपजी अफरातफरी ने व्यवस्था की अभूतपूर्व नाकामी को दर्ज किया। दूसरी लहर में जन जीवन की जो जबर्दस्त हानि हुई, उसका पूरे समाज पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा। असुरक्षा, चिंता , अवसाद , बेरोजगारी , पारिवारिक विघटन, अनाथ बच्चों की समस्या आदि ने सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को कमजोर किया है। शिक्षा केन्द्रों के आनलाइन पठन- पाठन के चलते शिक्षा की प्रक्रिया पटरी से उतरती जा रही है, वहीं बहुत सारे संस्थान भी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। लोग मन मार कर जहान की जगह जान की चिंता कर रहे हैं और अदृश्य आकस्मिक हमला करने वाले कोरोना के भय से त्रस्त हुए जा रहे हैं।

कोविड विषाणु से उपजे रोग ( रोग संकुल !) की प्रकृति , उसका प्रकार , रोग का बढ़ने-घटने का तरीका अभी भी पूरी तरह से समझना शेष है। इसलिए उसका उपचार भी प्रकट लक्षणों की प्रकृति और तीव्रता को समझ कर किया जा रहा है। रोग के सामान्य , मध्यम और तीव्र लक्षणों को ध्यान में रख कर उपचार की हिदायत रेम्डेसिवर , जिंक और स्टेरायड जैसी दवाओं के उपयोग के विषय में सावधानी बरतने के सुझाव दिए जा रहे हैं । यह बात भी उल्लेखनीय है कि कोविड से निजात पाने के बाद स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की जटिलताएं भी पाई जा रही हैं, जिसके लिए निगरानी और दवा जरूरी है। कुल मिला कर कोविड संक्रमण एक लम्बी अवधि की स्वास्थ्य-चुनौती साबित हो रहा है। कोविड संक्रमण का प्रकोप अभी तक शहरों और महानगरों में ही फैला था। इस बार की दूसरी लहर में यह गावों और कस्बों में भी पाँव पसारने लगा है जहां स्वास्थ्य सुविधाएं अभी भी नगण्य हैं। गावों के स्वास्थ्य केंद्र डाक्टर , दवा और जरूरी उपकरण आदि के अभाव में बदहाल हैं।  साथ ही उन क्षेत्रों में कोविड के संक्रमण को ले कर नाना प्रकार की अफवाहें भी फैली हुई हैं। रोग की उपेक्षा , समय पर दवा न मिलना और स्वास्थ्य विरोधी पर्यावरण के चलते कोविड संक्रमण और काले फंगस आदि के रोगियों की संख्या भी इन क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही हैं। संक्रमण के लिए व्यापक सर्वेक्षण , परीक्षण , और रोग की उपस्थिति होने इलाज की व्यवस्था मुश्किल हो रहा है। इस पर जल्दी से जल्दी काबू पाना जरूरी है। इस दिशा में राज्य सरकारों को मुस्तैदी से काम करना होगा। विशेष रूप से टीकाकरण की सघन और प्रभावी योजना पर अमल करना होगा। 


कोविड संक्रमण के रोक थाम के लिए शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाना आवश्यक है। इसके लिए आदमी के शरीर में एंटी बाडी का होना बहुत जरूरी है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए टीकाकरण ही एक जबरदस्त उपाय है। अमेरिका और यूरोप के देशों में टीकाकरण की प्रभावी व्यवस्था तेजी से की और समाज के बड़े वर्ग को टीका लगाने में सफलता प्राप्त की और जन जीवन को सामान्य बनाना शुरू किया। उनकी जन संख्या कम थी और टीकाकरण युद्ध स्तर पर किया गया। भारत ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण काम किया और कोवैक्सिन नामक भारतीय टीका और ऑक्सफोर्ड के कोविशील्ड के भारत में उत्पादन का काम काफी पहले शुरू किया। कोविड की पहली लहर ख़त्म होने से टीका उत्पादन की तरफ ध्यान कम हुआ पर नई परिस्थिति में इन सुविधाओं को सुदृढ़ करते हुए बड़ी मात्रा में टीका उत्पादन का काम हो रहा है। रूसी टीका स्पुतनिक वी भी शीघ्र ही भारत में बनने लगेगा। साथ ही विदेश की माडर्ना , फाइजर जैसी कम्पिनियों से भी बात चल रही है। भारत की जनसंख्या की विशालता को देखते हुए टीका की खुराक की बहुत बड़ी मात्रा चाहिए और इसके लिए रख रखाव , परिवहन और चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित करना भी जरूरी है। भारत ने वरीयता के हिसाब से जन संख्या के विभिन्न वर्गों के लिए क्रमश: टीकाकरण की योजना पर काम शुरू किया। शुरू में आम जनता की रुचि कुछ ढुलमुल थी पर तीसरी लहर की भयावहता को देख कर लोग टीका के लिए आगे आने लगे हैं। दुर्भाग्य से राजनैतिक सुविधा और असुविधा के मद्दे नजर विभिन्न राज्यों ने टीकाकरण की प्रक्रिया को आगे बढाया। इस बीच राज्यों को विदेश से टीका प्राप्त करने की अनुमति दी गई पर ज्यादातर कंपनियों ने राज्यों को टीका देने में असमर्थता जाहिर की है। वे केन्द्रीय स्तर पर ही व्यापारिक समझौते की बात करना चाहती हैं। ऐसे में राजनैतिक मत भेदों को भुला कर टीकाकरण की एक राष्ट्रीय नीति सब को स्वीकार कर निर्बाध रूप से अमल में लानी होगी।

भारत की चुनौतियों का स्वरूप जटिल और आकार विशाल है। ऊपर से शिक्षा , आर्थिक संसाधन , आधार संरचना के क्षेत्र में अनेक सुधार जरूरी हैं। इनके लिए जनता के बेहतर स्वास्थ्य पहली जरूरत है। आज कोविड महामारी के दौर में व्यवस्था , नीति और उसके कार्यान्वयन में कई कमजोरियां उभर कर सामने आई हैं। जन गण मन में यही भाव गूंज रहा है कि जीवन रक्षा के इस यज्ञ में बिना किसी आग्रह या दुराग्रह के सभी हिस्सा लें, तभी गण तंत्र में स्पंदन हो सकेगा।

(लेखक सुप्रसिद्ध शिक्षाविद्, चिंतक व महात्मा गांधीअंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं)

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