ब्‍लॉगर

विदेश नीतिः कुछ कमी, कुछ बढ़त

– डा. वेदप्रताप वैदिक

ऐसा लगता है कि तुर्की में चल रहा रूस-यूक्रेन संवाद शीघ्र ही उनका युद्ध बंद करवा देगा लेकिन इस मौके पर भारतीय विदेश नीति की कमजोरी साफ़-साफ़ उभरकर सामने आ रही है। जो काम भारत को करना चाहिए था, वह तुर्की कर रहा है। यह ठीक है कि तुर्की के अमेरिका और रूस दोनों से अच्छे संबंध हैं और वह नाटो का सदस्य भी है लेकिन इस समय अमेरिका और रूस के भारत के साथ जितने घनिष्ठ संबंध हैं, किसी देश के नहीं हैं। इसका प्रमाण तो यह ही है कि दोनों के विदेश मंत्री भारत आ रहे हैं, दोनों देशों के राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री से बात कर रहे हैं और दोनों महाशक्तियां भरपूर कोशिश कर रही हैं कि वे भारत को अपनी तरफ झुका लें लेकिन भारत अपनी तटस्थता की टेक पर मजबूती से टिका हुआ है।

संयुक्तराष्ट्र संघ में जब भी मतदान हुआ है, भारत ने न तो रूस के समर्थन में वोट डाला और न ही अमेरिका के समर्थन में। लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी साहस का परिचय उसने युद्ध बंद करवाने में नहीं दिया। फिर भी इस समय विदेश नीति के क्षेत्र में भारत काफी सक्रिय है। हर सप्ताह के दो-तीन दिन कोई न कोई विदेशी मेहमान भारत जरूर आ रहा है और भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी विदेश यात्राएं कर रहे हैं। रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव यदि नई दिल्ली आ रहे हैं तो अमेरिका ने अपने उप-सुरक्षा सलाहकार दलीपसिंह को भारत भेज दिया है ताकि भारत सरकार लावरोव के भुलावे में न फंस जाए। अमेरिका और नाटो राष्ट्रों की भरसक कोशिश है कि भारत किसी न किसी रूप में रूस की भर्त्सना करे और उस पर प्रतिबंधों को भी लागू करे लेकिन रूसी व्यापारिक प्रतिनिधि आजकल दिल्ली में बैठकर यह कोशिश कर रहे हैं कि भारत को बड़ी मात्रा में तेल कैसे बेचा जाए।

इस्राइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट भी भारत आने वाले थे लेकिन अस्वस्थता के कारण उनकी यात्रा अभी टल गई है। इस बीच बिम्सटेक की बैठक के लिए जयशंकर श्रीलंका पहुंचे हुए हैं। बिम्सटेक के सात देशों की बैठक को हमारे प्रधानमंत्री ने भी सम्बोधित किया है। ये सात देश अपना घोषणा पत्र तैयार कर रहे हैं और आपसी सहयोग का महत्वपूर्ण समझौता भी कर रहे हैं। दक्षेस के निष्क्रिय होने पर बिम्सटेक की सक्रियता विशेष स्वागत योग्य है। इस समय जयशंकर की यह श्रीलंका-यात्रा बहुत सार्थक और सामयिक सिद्ध हो रही है, क्योंकि श्रीलंका के अपूर्व आर्थिक संकट में भारत ने सीधी मदद की घोषणा की है और जाफना में चीनियों के प्रस्तावित तीन सौर-केंद्रों को अब भारत चलाएगा। श्रीलंका के साथ दो रक्षा-समझौते भी हुए हैं। इस मौके पर मिली भारतीय सहायता श्रीलंका को चीन का चंगुल ढीला करने का साहस भी प्रदान करेगी।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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