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किंग्सवे से राजपथ और अब कर्तव्य पथ, जानें दिल्ली की इस सड़क की पूरी कहानी

नई दिल्ली। दिल्ली का ऐतिहासिक राजपथ अब कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा। आज नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC) ने इस पर मुहर लगा दी। अब गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्तव्य पथ का उद्घाटन करेंगे। इस दौरान वह इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति का अनावरण भी करेंगे।

कर्तव्य पथ का दायरा रायसीना हिल्स पर बने राष्ट्रपति भवन से शुरू होता है और विजय चौक, इंडिया गेट, फिर नई दिल्ली की सड़कों से होते हुए लाल किले पर खत्म। इन्हीं सड़कों पर हर 26 जनवरी पर गणतंत्र दिवस की परेड होती है। करीब साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी के इस रास्ते के इतिहास में जाएं तो पहले इसे किंग्सवे और फिर राजपथ के नाम से जाना जाने लगा था।

पहले जानिए किंग्सवे की कहानी
इसकी कहानी 1911 से शुरु होती है। तब दिल्ली दरबार में शामिल होने के लिए किंग जॉर्ज पंचम भारत आए थे। ये वही समय था जब कोलकाता की जगह दिल्ली को भारत (ब्रिटिश शासन) की राजधानी बनाने की घोषणा हुई थी। इसलिए अंग्रेजों ने किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में इस जगह का नाम किंग्सवे रखा था। किंग्सवे नाम सेंट स्टीफेंस कॉलेज के इतिहास के प्रोफेसर पर्सिवल स्पियर ने दिया था। किंग्सवे का मतलब ‘राजा का रास्ता’ होता है।

प्रो. पर्सिवल ने केवल किंग्सवे ही नहीं, बल्कि दिल्ली की कई सड़कों का नामकरण करवाया था। कहा जाता है कि अकबर रोड, पृथ्वीराज रोड, शाहजहां रोड आदि नाम उन्हीं की सलाह पर रखे गए थे। पर्सिवल स्पियर सेंट स्टीफेंस कॉलेज में 1924-1940 तक पढ़ाते थे। सेंट स्टीफेंस कॉलेज छोड़ने के बाद वह ब्रिटिश सरकार के भारत मामलों के उप-सचिव बन गए थे। उन्होंने भारत छोड़ने के बाद इंडिया, पाकिस्तान एंड दि वेस्ट (1949) ,ट्वाइलाइट ऑफ दि मुगल्स (1951), दि हिस्ट्री ऑफ इंडिया (1966) समेत कई किताबें लिखीं।

किसने किया था इस सड़क का निर्माण?
इसे इडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर ने बनाया था। ये दोनों ब्रिटिशकाल में भारत के मशहूर आर्किटेक्ट माने जाते थे। इन दोनों ने दिल्ली की इमारतों और सड़कों को बनाने का काम सरदार नारायण सिंह को दिया था। सरदार नारायण सिंह ने ही इसका ठेका लिया था। तब के हिसाब से नारायण सिंह ने बहुत ही मजबूत और किफायती सड़क बनाईं।

तब सड़कों के नीचे भारी पत्थर डाल दिए जाते थे, फिर रोड़ी और तारकोल से सड़कें बनती थीं। करीब बीस साल तक दिल्ली में सड़कों को बनाने का काम जारी रहा। आज भी दुनियाभर के शहरी इलाकों में बिटुमिनस (तारकोल) तकनीक से सड़कें बन रही हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल से सड़कें सस्ती और टिकाऊ बन जाती हैं और ध्वनि प्रदूषण भी नहीं फैलातीं।


फिर नाम बदलकर राजपथ हो गया
किंग्सवे के रूप में यह सड़क ब्रिटिश हुकूमत की शाही पहचान का प्रतीक थी। स्वतंत्रता के बाद 1955 में इसका नाम बदलकर राजपथ किया गया। जो एक तरह से किंग्सवे का ही हिन्दी अनुवाद था। आजादी के बाद प्रिंस एडवर्ड रोड को विजय चौक, क्वीन विक्टोरिया रोड को डॉ. राजेंद्र प्रसाद रोड, ‘किंग जॉर्ज एवेन्यू’ रोड का नाम बदलकर राजाजी मार्ग किया गया था। इन महत्वपूर्ण सड़कों के नाम अंग्रेजी ब्रिटिश सम्राटों के नाम पर थे।

क्यों बदला गया नाम?
प्रधानमंत्री मोदी ने इस साल अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में औपनिवेशिक सोच दर्शाने वाले प्रतीकों को समाप्त करने पर जोर दिया था। हालांकि, बीते आठ साल में कई नाम बदले जा चुके हैं। फिर वह शहरों के नाम बदलना हो या सड़कों और संस्थानों का नाम। इस बीच केंद्रीय राज्य मंत्री मिनाखी लेखी ने कहा कि राजपथ को अंग्रेजों ने बनाया, जिसका नाम किंग्सवे था। दूसरी तरफ जो सड़क थी वो जनपथ है, जिसे पहले क्वींसवे कहा जाता था।

क्वींसवे का नाम बदलकर तो जनपथ कर दिया गया, लेकिन राजपथ किंग्सवे का ही अनुवाद रहा। उन्होंने कहा कि जब देश को आजादी मिली तो हमने लोकतंत्र का रास्ता चुना, लेकिन इसके बाद भी नेता का भाव सेवक की बजाए शासक का रहा। अब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। ऐसे में औपनिवेशिक परंपरा को पीछे छोड़ते हुए अमृत काल में अपनी ही विरासत के साथ आजादी के 100 वर्ष पूरे होने की ओर बढ़ना ही ठीक है।

इनके भी बदले गए नाम
साल 2015 में रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया, जहां प्रधानमंत्री आवास है। साल 2015 में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड किया गया। साल 2017 में डलहौजी रोड का नाम दाराशिकोह रोड कर दिया गया। इसके अलावा 2018 में तीन मूर्ति चौक नाम बदलकर तीन मूर्ती हाईफा चौक कर दिया था।

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