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आखिर क्‍यों ठुकराया गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी का संगठन में नंबर 2 बनने का ऑफर ?

नई दिल्ली । इंदिरा गांधी के साथ अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने कांग्रेस (Congress) में नंबर दो की हैसियत से काम करने से इनकार कर दिया है. आजाद राज्यसभा (Rajya Sabha) जाना चाहते थे, लेकिन सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने उनको ये मौका देने से इनकार कर दिया. हालांकि राज्यसभा के उम्मीदवार घोषित करने से पहले सोनिया गांधी ने आजाद को बुलाकर उनसे बात की और अपना इरादा जाहिर कर दिया.

सूत्रों के मुताबिक इस बातचीत में सोनिया गांधी ने राज्यसभा की कोई बात नहीं की बल्कि उनसे कहा कि क्या आप संगठन में नंबर दो की हैसियत से काम करेंगे? इस सवाल के जवाब में आजाद ने कहा कि आज पार्टी चलाने वाले युवा और उनके बीच एक जेनरेशन गैप आ गया है. हमारी सोच और उनकी सोच में अंतर है इसलिए वो उनके साथ काम करने के इच्छुक नहीं हैं. आजाद पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे हैं और उनको अस्पताल में भर्ती भी करवाना पड़ा था.


आज़ाद से दूरी क्यों?
दरअसल पार्टी ने युवा नेतृत्व उभारने की दिशा में काम करते हुए पार्टी की अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष इमरान प्रतापगढ़ी को राज्य सभा भेजने का फैसला किया. ये फैसला राहुल गांधी का था. सोनिया गांधी ने हामी भर दी. इमरान युवा भी हैं और अल्पसंख्यक भी, इसलिए पार्टी ने एक तीर से दो निशाने साधे. दो अल्पसंख्यकों को टिकट नहीं दे सकते थे इसलिए आजाद को संगठन में समायोजित करने की बात सोनिया गांधी ने कही थी.

समीकरण बिगड़ने का डर
आजाद के राज्य सभा जाने से कांग्रेस के नेतृत्व का समीकरण भी बिगड़ जाता. फिलहाल मल्लिकार्जुन खड़गे नेता विपक्ष हैं, ये पद पहले आजाद के पास ही था. आजाद के रिटायर होने के बाद ही खड़गे को नेता विपक्ष बनाया गया. सोनिया गांधी को डर था कि अगर आजाद की सदन में वापसी हुई तो वरिष्ठता के आधार पर उनको ही नेता विपक्ष बनाना पड़ता. क्योंकि एक बार नेता विरोधी दल रह लेने के बाद उनका खड़गे के अंडर में काम करना मुश्किल होता. जिसकी वजह से फ्लोर मैनेजमेंट में समस्या खड़ी होती और आपस में तकरार होती.

आज़ाद का रोल
आजाद फिलहाल पार्टी के कार्यसमिति के सदस्य है और सोनिया गांधी को सलाह देने वाली राजनीतिक मामलों की कमेटी के सदस्य भी हैं. पिछले कुछ दिनों से आजाद पार्टी के काम में बहुत दिलचस्पी भी नहीं ले रहे हैं. एक सूत्र के मुताबिक उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में आजाद ने कमेटी की बैठकों में तीन दिन में महज कुछ वाक्य ही कहे या सुझाव दिए. भूपेंद्र हुडा के राहुल गांधी के साथ समझौते को बाद हरियाणा में हर फेरबदल के बाद हुडा अब जी 23 में उतने सक्रिय नहीं रहे. सिब्बल ने भी पार्टी छोड़ दी. वासनिक और विवेक तंखा को राज्य सभा मिल गयी जिसकी वजह से इस ग्रुप के नेता का तौर पर आजाद की अहमियत या यूं कहें ताकत बहुत कम हो गई है. सही मौका देख कर पार्टी ने भी उनको राज्यसभा न भेजने और संगठन में काम करने का ऑफर दे दिया.

आज़ाद पर सस्पेंस
हालांकि सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी ने आजाद को उनका स्पेसिफिक रोल नहीं बताया कि वो नंबर दो की हैसियत कैसे पाएंगे. क्या उनको उपाध्यक्ष बनाया जाएगा या वर्किंग प्रेसिडेंट या फिर संगठन महासचिव,ये भी एक वजह थी कि आजाद ने सोनिया गांधी के ऑफर में दिलचस्पी नहीं दिखाई. अब सबकी निगाहें आजाद के अगले कदम पर हैं. कई दशकों से कांग्रेस के लिए काम करने वाले आजाद से जब बिहार की एक क्षेत्रीय पार्टी ने राज्य सभा भेजने की पेशकश की तो आजाद ने ये कहकर उसे ठुकरा दिया कि अब उनका आखिरी समय इसी झंडे के नीचे ही बीतेगा.

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