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धीमी गति से चल रहा सरकार का विनिवेश प्लान, प्राइवेटाइजेशन की कतार में हैं ये कंपनियां

नई दिल्‍ली । सरकार (Government) का लक्ष्य अलग-अलग सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSE) में अपनी हिस्सेदारी की बिक्री के माध्यम से 65,000 करोड़ रुपये जुटाना है। हालांकि, निजीकरण (privatization) अभी भी धीमी गति से चल रहा है। आइए जानते हैं क्या है सरकार की विनिवेश योजना (disinvestment plan) और क्यों स्लो चल रहा विनिवेश प्लान…

केंद्र की विनिवेश योजना क्या है?
सरकार अपनी पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज (पीएसई) नीति के तहत, सरकार की योजना प्राइवेट निवेश के लिए सभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSU) को खोलने, गैर-रणनीतिक समझे जाने वाले क्षेत्रों से पूरी तरह से बाहर निकलने और कम से कम एक पीएसयू को उन क्षेत्रों में रखने की है जिन्हें वह स्ट्रेटेजिक मानते हैं। भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (BPCL), शिपिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया, एचएलएल लिमिटेड, बीईएमएल लिमिटेड, प्रोजेक्ट्स एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड, फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड सहित कई लाभ कमाने वाली कंपनियां प्राइवेटाइजेशन के लिए कतार में हैं। सरकार ने आईपीओ, एफपीओ या फिर कंपनियों की बिक्री के लिए प्रस्ताव के माध्यम से भी इक्विटी बेचने का टारगेट रखा है।


क्यो हो रही है देरी?
कोविड -19 महामारी के चलते सरकार की विनिवेश योजनाएं लेट चल रही है। कोरोना महामारी के दौरान वित्त वर्ष 2021-22 में स्ट्रेटेजिक बिक्री थम सी गई है। इस दौरान नौकरी छूटने के डर से विनिवेश को कर्मचारियों के विरोध का भी सामना करना पड़ा है। कई राज्य सरकारों ने भी निजीकरण का विरोध किया है। राज्य सरकारों और राज्य या केंद्र के स्वामित्व वाली संस्थाओं को इन पीएसयू कंपनियों के लिए बोली लगाने से रोक दिया गया है।

विनिवेश कितना जरूरी है?
विनिवेश सरकार के लिए अपने वित्तीय बोझ को कम करने के लिए जरूरी है। साथ ही जनता के लिए कंपनी की वैल्यू बढ़ाने की दिशा में अहम है। विनिवेश को अंडर-परफॉर्मिंग एसेट्स के मूल्य को अनलॉक करने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है। इस प्रकार, कुछ सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के माध्यम से, केंद्र घाटे में चल रही या खराब प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को चालू करने के लिए निजी क्षेत्र के निवेश की मांग कर सकता है। यह बदले में, आगे रोजगार सृजन में मदद करता है। हालांकि, पिछले कई वर्षों में विनिवेश के लिए निर्धारित लक्ष्यों को सरकार शायद ही कभी पूरा कर पाई है, जिससे राजकोषीय घाटे को संतुलित करने की सरकार की योजनाओं पर दबाव पड़ा है।

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