न जुबान है न दिमाग… लोग दो घुंट में बहक जाते हैं… यह तो बोतल गटक जाते हैं… फिर क्या बोल जाते हैं, उनके अपने सर खुजाते रह जाते हैं… मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह वैसे तो स्वभाव के सहज और दिल के साफ हैं… लेकिन दिल और दिमाग का कोई कनेक्शन ही नहीं है… पूरे देशभर के भाजपाइयों की तरह मोदीप्रेमी शाह बखान तो मोदी का कर रहे थे, लेकिन फिर किसको घसीट रहे थे यह न तो उनकी जुबान को पता था, न दिमाग को… लिहाजा सेना की सोफिया को बहन तो बनाया, लेकिन बहन को पाकिस्तान भिजवा डाला और उसमें भी ऐसे ऐल-फेल शब्दों का उपयोग कर डाला कि पूरा देश शरमाया… शाह पता नहीं किसकी ऐसी की तैसी कर रहे थे… ताली बजाने वालों को भी समझ में नहीं आया और वीडियो वायरल हुआ तो खुद को कटा-फटा पाया… मंच पर संस्कृति मंत्री रही महू की विधायक उषा ठाकुर भी बैठी थीं, लेकिन वो भी संस्कृति की धज्जियां उड़ती देख शाह और उनके डॉयलॉग पर ताली बजाती मंच से लेकर मजमे तक में बैठे रहे लोगों को ताकती रहीं… अब जंग में जीती बाजी भाजपा शब्दों से हारकर टोकरे भर-भरकर उलाहने, ताने और लानतें सुनते हुए शाह की शाही जुबान को कोस रही है और मंत्री को ठोंक रही है… पद जाने के डर से सहमे मंत्री सौ-सौ माफी की मिन्नतें कर रहे हैं, लेकिन सम्मान की मौत मिन्नतों से जिंदा होने से रही… इसीलिए मंत्री का संतरी बनना तय है… लेकिन जो समझते हैं वो जानते हैं कि यह पद का गुरूर था तो सुरूर का कसूर और इस सुरूर में वो कई बार अपनी बहकती जुबान का मातम मना चुके हैं…पहले एक बार पद तक गंवा चुके हैं, लेकिन सुरूर है कि मानता नहीं और मंत्री का पीछा त्यागता नहीं…कसूर मंत्री का भी कम है, कसूर तो उस बोतल का है, जिसे गंगाजल मानकर उनके चहेते साथ लिए घूमते रहे हैं और जहां मौका मिले मंत्री का कंठ गीला करते रहते हैं… फिर एक बार जो मंत्री नीलकंठ हुए तो भूतों की बरात ताली बजाती है और जुबान तांडव करने लग जाती है… वैसे भी मंत्री आदिवासी इलाके से हैं, जहां बोतल राज करती है… मजमा हो या महफिलें बोतल के बिना नहीं चलती हैं, लेकिन बोतल दिमाग पर चढ़ जाए… प्रदेश का जिम्मेदार नेता जुबान पर लगाम नहीं लगा पाए और लगाम तो दूर बोलते हुए इस घटियापन पर उतर आए कि हर लफ्ज से पूरा देश आहत नजर आए तो एक बात जरूरी हो जाती है कि भाजपा जैसी संवेदनशील और सुसंस्कृत कही जाने वाली पार्टी को अपने नेताओं को कहने-सुनने और बोलने का प्रशिक्षण भी देना चाहिए और प्रशिक्षण के बाद ही पद के लिए चयन करना चाहिए… वरना अपनी बनाई इमारत को उनके अपने ही ढहाते जाएंगे… मलबा भी आप उठाएंगे और मातम भी आप ही मनाएंगे…
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