नई दिल्ली। हर साल फाल्गुन मास (Falgun month) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है, जिसके अगले दिन होली (Holi) खेलने की परंपरा है. इस साल 13 मार्च 2025 को होलिका दहन किया जाएगा, जबकि 14 मार्च 2025 को पूरे भारत में होली मनाई जाएगी.
बता दें कि बनमनखी अनुमंडल स्थित सिकलीगढ़ धरहरा आज भी उस दिन का जीवंत गवाह है.जब हिरण्यकश्यप का वध यहीं हुआ था और वरदान के बावजूद होलिका जलकर भस्म हो गई थी. पूर्णिया जिला अंतर्गत सिकलीगढ़ धरहरा स्थल भगवान नरसिंह(Lord Narasimha) के अवतार स्थल के रूप में विख्यात है. यहां के वासिंदों के लिए गर्व का विषय है कि प्रेम व भाईचारे की होली बनमनखी की देन है जो सम्पूर्ण भारत (India) में हिन्दुओं का पावन पर्व है.
इतिहास के पन्नों में जिक्र
गुजरात (Gujarat) राज्य के पोरबंदर में विशाल भारत मंदिर है. उस मंदिर में आज भी यह अंकित है, भगवान नरसिंह का अवतार स्थल, सिकलीगढ़ धरहरा, बनमनखी, जिला पूर्णिया, बिहार है.
सिकलीगढ़ धरहरा में भगवान नरसिंह का 4 एकड़ में एक विशाल मंदिर परिसर बना हुआ है. जिसका निर्माण हाल के ही बीते वर्ष हुआ है. वहीं मंदिर परिसर में प्राचीन जमाने का एक भवन है जो खंडहर में तब्दील हो गया है. वहीं खंडर में आज भी देखा जा सकता है कि प्राचीन जमाने के अवशेष पत्थर और अन्य सामग्री मिली है.
वहीं मंदिर कंस्ट्रक्शन के दौरान हाल ही के दिनों में एक बहुत बड़ा घैला मिला है. जो लगभग 200 लीटर पानी भरने वाला घैला है. जो प्राचीन जमाने का प्रतीत हो रहा है. वहीं, परिसर के अंदर एक प्राचीन स्तंभ भी मिला है. जिसको लेकर ऐसी धारणा है कि यह स्तंभ उस चौखट का हिस्सा है, जहां राजा हिरण्यकश्यप का वध हुआ. यह स्तंभ 12 फीट मोटा और करीब 65 डिग्री पर झुका हुआ है.
पौराणिक कथा
प्राचीन मान्यता के अनुसार, भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान नरसिंह ने सिकलीगढ़ की पावन भूमि पर अवतार लिया. कहा जाता है कि राजा हिरण्यकश्यप (King Hiranyakashyapa) राक्षसों का राजा था. उसका एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था. वह भगवान विष्णु का परम भक्त था. राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था. जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु का भक्त है तो उसने प्रह्लाद को रोकने का काफी प्रयास किया लेकिन तब भी प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति कम नहीं हुई. यह देखकर हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की किंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. हिरण्यकश्यपु की एक बहन थी-होलिका.
उसे वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका से कहा. होलिका प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर गई, किंतु भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा से हवन से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई. उसी तरह हिरण्यकश्यप को वरदान था कि न जमीन, न आकाश, न घर, न बाहर कोई नर या जानवर उसे कोई नहीं मार सकेगा. तब भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर वरदान को बिल्कुल विपरीत कर दरवाजे के चौखट पर नरसिंह स्वरूप में जंघे पर रख कर उसका वध किया. तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में होली का त्योहार मनाया जाने लगा है जिसकी शुरुआत सिकलीगढ़ धरहरा, बनमनखी पूर्णिया से हुई है ऐसी मान्यता है. जिसका हिन्दू ग्रन्थों में आज भी जिक्र है.
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