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कैसे शुरू हुई ईरान-इजराइल के बीच दुश्मनी? जानें टकराव की पूरी कहानी

नई दिल्ली: ईरान और इजराइल (Iran and Israel) के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. ईरान कभी भी इजराइल पर हमला बोल सकता है. हमले के लिए ईरान की सेना अपने सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई (Supreme Leader Ayatollah Ali Khamenei) की मंजूरी का इंतजार कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 48 घंटे काफी अहम हैं. मिडिल ईस्ट के इन दोनों देश के बीच लंबे समय से टकराव रही है. करीब चार दशकों से दोनों देशों के बीच छद्म युद्ध चल रहा है. दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवाद चल रहा है. आज हम आपको इजराइल और ईरान के बीच शुरू हुए संघर्ष की पूरी कहानी (whole story of Iran and Israel conflict) बताएंगे.

ईरान और इजराइल के बीच टेंशन को लेकर वैसे तो कई वजहें हैं, लेकिन इनमें तीन-चार अहम मुद्दे हैं. पहली बात तो ये है कि मिडिल ईस्ट के इन दोनों देशों के बीच लंबे वक्त से वैचारिक मतभेद रहे हैं. दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक और ऐतिहासिक मतभेद भी रहे हैं. दोनों देशों के बीच समय-समय पर हितों का टकराव भी देखने को मिला है. इजराइल दावा करता रहता है कि उसके खिलाफ लड़ने वाले समूहों को ईरान समर्थन देता रहा है. दूसरी ओर ईरान का दावा है कि इजराइल ने अपने सीक्रेट मिलिट्री ऑपरेशन की वजह से उसकी सेना के कई कमांडरों को निशाना बनाया है.


जब इन दोनों देशों से एक दूसरे पर हुए हमलों के बारे में सवाल किया जाता है तो दोनों इनकार करते हैं. ईरान इजराइल पर आरोप मढ़ता है तो इजराइल ईरान पर आरोप लगाते रहता है. तनाव की वजह से दोनों देश अलग-अलग समूहों का समर्थन करते हैं. ईरान सीरिया का समर्थन करता है. इसके साथ-साथ लेबनान के एक समूह हिजबुल्लाह की मदद भी करता है. दूसरी ओर इजराइल सीरिया का विरोध करता है और हिजबुल्लाह समूह को तो देखना भी नहीं चाहता है.

इजराइल और ईरान के बीच दुश्मनी की शुरुआत 1979 में हुई. ईरान की क्रांति के दौरान इजराइल के सहयोगी कहे जाने वाले ईरान के शाह को गद्दी से बेदखल कर दिया गया. ईरान के शाह को बेदखल किए जाने के बाद देश में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना हुई. इसके बाद अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी को ईरान के सर्वोच्च नेता की गद्दी सौंपी गई. अयातुल्ला रूहोल्लाह के समय से ही ईरान का रुख इजराइल विरोधी होने लगा था. दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव देखने को मिलने लगा. यहीं से दोनों देशों के बीच में तनाव की शुरुआत हुई.

ईरान से तनाव शुरू होने के बाद इजराइल की पूरी कोशिश खुद को सक्षम बनाने की रही. यही वजह है कि इजराइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध करता रहा है. इजराइल को इस बात का डर सताता है कि अगर ईरान को परमाणु हथियार मिल गए तो यह उसके लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. हालांकि, ईरान बार-बार कहता है कि वो परमाणु से जुड़ी तकनीक का इस्तेमाल केवल बिजली बनाने जैसी शांतिपूर्ण चीजों के लिए कह रहा है. एक दूसरे का कट्टर विरोधी होने की वजह से इजराइल को ईरान की बात पर एकदम भरोसा नहीं है.


सन 1979 में ईरानी क्रांति के बाद ईरान और इजराइल के बीच तनाव इस कदर बढ़ गए थे कि दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी कड़वाहट आ गई थी. स्थिति ऐसी हो गई थी कि ईरान ने इजराइल के साथ अपने सभी राजनयिक और वाणिज्यिक संबंधों को तोड़ दिया था. दोनों देशों के बीच यह तनाव करीब 1990 तक जारी रहा. करीब 11 साल तक दोनों देशों की ओर से एक दूसरे को कमजोर करने और नुकसान पहुंचाने की कई कोशिशें की गईं.

इसके बाद 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया. दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया था कि इसका असर मिडिल ईस्ट के बाकी देशों पर पड़ने लगा था. 2006 के लेबनान युद्ध में ईरान ने उसका समर्थन किया जबकि इजराइल उसके विरोध में था. हाल के कुछ सालों में ईरान ने इराक, पाकिस्तान, सीरिया समेत अपने गुट के कई देशों को पिछले दरवाजे से समर्थन देता रहा जिसकी वजह से इजराइल और उसके बीच में तनाव और गहरा होता चला गया.

मौजूदा वक्त में दोनों देशों के बीच तनाव के पीछे सीरिया के दमिश्क में एक ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हुआ हमला है. इस हमले में ईरानी सेना इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के सात बड़े अफसरों की मौत हुई है. हमले के बाद ईरान बौखला गया. ईरान को शक है कि ये हमले के पीछे इजराइल का हाथ है. हालांकि, इजराइल ने अभी तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन उसने इसका खंडन भी नहीं किया है. दमिश्क में हुए हमले के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई चेतावनी देते जवाबी कार्रवाई की बात कह चुके हैं.

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