आचंलिक

स्कूलों में खेल मैदान ही नहीं तो कैसे बजेगी आठवीं घंटी

  • शासकीय एवं निजी स्कूलों में नहीं है खेल मैदान
  • अव्यवस्थाओं से जूझ रहे क्षेत्र के कई स्कूल

सिरोंज। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्कूलों में खेल को अनिवार्य किया गया है, लेकिन स्कूलों में यदि मैदान ही न हो तो खेल कहा होगा। तहसील के स्कूलों में कुछ ऐसे ही हाल है। प्राथमिक से हाईस्कूल तक के स्कूलों में अधिकांश स्कूल मैदान विहीन है। आलम ये है कई नौनिहालों को ढंग का स्कूल तक नसीब नहीं हो रहा है। कुछ स्कूलों ने मैदान के नाम पर संस्थानों के आसपास खाली पड़े मैदानों को खेल मैदान बता दिया है। अफसर भी आंख बंद कर कागजी खानापूर्ति कर मान्यता दे देते हैं। अफसरों का दावा है कि नियमों जमीन जांची जाती है यदि क्षेत्रफल निर्धारित मिलता है तो मान्यता देनी होती है। इसमें खेल मैदान के लिए स्पष्ठ क्षेत्रफल जाहिर नहीं है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो सिरोंज तहसील में 461 प्राथमिक एवं मिडिल स्कूल संचालित है जिनमें से करीब 172 स्कूलों में खेल मैदान ही मौजूद नहीं है। इसके अलावा शासकीय हाई और हायर सेकेंडरी के 30 स्कूल संचालित है। जिनमें से छह स्कूलों में खेल ग्राउंड एवं बिल्डिंग ही मौजूद नहीं है। वही 62 निजी स्कूल है जिनमें से अधिकांश में खेल मैदान मौजूद नहीं है। वहीं निजी हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी के कई संस्थान मैदान बताते हैं लेकिन कागजों में ही। जबकि केंद्र सरकार फिट इंडिया अभियान के तहत बच्चों को खेल से जोडऩे के लिए तरह-तरह के अभियान चला रही है इसके विपरीत प्रशासन की उदासीनता के चलते बच्चों को खेल मैदान उपलब्ध ही नहीं हो पा रहे हैं।

दो कमरे में हाई स्कूल
खेल मैदान तो दूर की बात है गुलाबगंज के हाई स्कूल की बिल्डिंग ही नहीं है स्थिति यह है कि दो कमरे में एक से लेकर 10 तक की कक्षाएं संचालित हो रही हैं। जब हाई स्कूल जैसे विद्यालय के लिए बिल्डिंग ही नहीं है तो खेल मैदान की कल्पना करना ही अतिशयोक्ति होगी। यह स्थिति सिर्फ गुलाबगज स्कूल की ही नहीं है ऐसे अनेक शासकीय विद्यालयों में कहीं बिल्डिंग नहीं है तो कई खेल मैदान नहीं है जिसकी वजह से बच्चे खेलों से वंचित रह रहे हैं। जिसके कारण केंद्र सरकार की मंशा पर पानी फिरता दिखाई पड़ रहा है। शासकीय विद्यालयों के अलावा यदि निजी विद्यालयों की बात करें तो उनकी स्थिति और बद से बदतर है।


क्या है नियम

  • 2020 के पहले से संचालित संस्था के लिए: हाईस्कूल के लिए मान्यता जिला शिक्षा विभाग से मिलती थी। अब जिला शिक्षा विभाग की अनुशंसा पर संयुक्त संचालक कार्यालय से मंजूरी की प्रक्रिया होती है। विद्यालय भवन 4000 वर्गफीट में होना अनिवार्य है। इसमें 2000 वर्गफीट का खुला मैदान तथा 2000 वर्गफीट में भवन होना चाहिए। इस प्रकार हायर सेकंडरी के लिए 5600 वर्गफीट स्थल होना चाहिए। इनमें भी 2600 वर्गफीट में भवन तथा तीन हजार वर्गफीट खुला मैदान होना चाहिए।
  • 20 मार्च 2020 के बाद: नए हाईस्कूल के लिए 21780 वर्गफीट जमीन तथा हायर सेकेंडरी कक्षा वाले विद्यालय के लिए 43560 वर्ग फीट जमीन होना आवश्यक है। पहले 100 रुपये के स्टाप पर किरायानामा को मान्य किया जाता था अब पंजीकृत किरायानामा विद्यालय समिति के नाम का होना अनिवार्य किया गया है।
  • नियम से आंख मिचौली: मान्यता संबंधी नियम में खेल मैदान का जिक्र है लेकिन इसका क्षेत्रफल कितना होना चाहिए इस बारे में कोई उल्लेख स्पष्ठ नहीं है। राजपत्र में खेल मैदान दो खेलों के लिए उपयुक्त होने की बात कहीं गई है। निजी स्कूल संचालक इसी नियम का लाभ लेते हैं। आवश्यक क्षेत्रफल दिखाते हैं लेकिन उसे मैदान के लिए उपयोग नहीं करते हैं।
  • कागजों में कॉलम पूरे, हकीकत में शून्य : निजी विद्यालयों को नवीन मान्यता प्राप्ति अथवा नवीनीकरण के समय शिक्षा विभाग द्वारा दिया जाने वाला एक फार्म भरना होता है, जिसमें विद्यालय की संपूर्ण जानकारी फार्मेट होता है। इसमें विद्यालय भवन के साथ संसाधन आदि के बारे में जानकारी दर्ज करनी होती है। कई निजी स्कूल संचालक मान्यता प्राप्ति के समय इन कालम को तो कूटरचित ढंग से पूरा कर देते हैं। लेकिन हकीकत में संसाधन उनके पास होते नहीं है और उनके इस घालमेल अफसर करते हैं, जिन्हें इन विद्यालयों के निरीक्षण की जिम्मेदारी दी जाती है।

इनका कहना है
मान्यता संबंधी गाइडलाइन के मुताबिक स्कूलों के पास भूमि का क्षेत्रफल होना आवश्यक है। इस संबंध में जिला शिक्षा विभाग से टीम निरीक्षण करने भी आती हैं। निरीक्षण के दौरान परिसर की सुविधाएं देखी जाती है जिसके आधार पर मान्यता दी जाती है।
ओमप्रकाश रघुवंशी, बीआरसी सिरोंज।

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