नई दिल्ली: भारत के कुल व्यापार के 2033 तक 6.4 परसेंट की सीजीआर के साथ बढ़कर सालाना 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. बीसीजी की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. इसके पीछे एक बड़ी वजह ऐसी कंपनियां है, जो चीन की जगह भारत से सप्लाई के बारे में सोच रही हैं.
भारत में सरकार मैन्युफैक्चरिंग को लगातार बढ़ावा दे रही है, भारत के पास बड़ी तादात में ऐसा वर्कफोर्स है जिनकी लागत कम है, इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से सुधार किया जा रहा है, इससे भारत की स्थिति मजबूत हो रही है. नतीजतन, भारत विदेशी निवेश और व्यापार सहयोग के लिए एक पसंदीदा डेस्टिनेशन बनता जा रहा है. अगले दशक तक अमेरिका के साथ भारत का व्यापार दोगुने से अधिक होने का अनुमान है, जो 2033 तक 116 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा. यह दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच गहरे होते राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को दर्शाता है, खासकर डिफेंस और टेक्नोलॉजी के सेक्टर में.
इसके अलावा, यूरोपीय यूनियन, आसियान और अफ्रीका के साथ भी व्यापार 80 परसेंट तक बढ़ है. खासतौर पर, जापान और मर्कोसुर जैसे देशों के साथ भारत का व्यापार लगभग दोगुना होने का अनुमान है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के साथ इसका व्यापार तीन गुना से अधिक होने वाला है. इसके अलावा, रूसी हाइड्रोकार्बन के बढ़ते आयात के चलते रूस के साथ व्यापार में भी उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है.
इतना ही नहीं, भारत, तुर्की और अफ्रीका के साथ यूरोप के व्यापार में भी तेजी आने की उम्मीद है. इससे ग्लोबल सप्लाई चेन में भारत की स्थिति मजबूत होगी. इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, फार्मास्यूटिकल्स और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में यूरोपियन यूनियन के साथ भारत का व्यापार मजबूत होगा. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद से आर्थिक तनाव बढ़ता जा रहा है. इसके चलते भारत संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी निवेश को लेकर सतर्क है और इसे किसी बड़े बिजनेस पार्टनर की तलाश है.
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