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योगी मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण में भी नवोन्मेष

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय समझे जाने वाले योगी आदित्यनाथ ने दूसरी बार उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य की कमान संभाल ली है। दो उपमुख्यमंत्रियों समेत 18 कैबिनेट मंत्रियों, 14 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों और 20 राज्यमंत्रियों के साथ उन्होंने लखनऊ के भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम में पद और गोपनीयता की शपथ ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह समेत भाजपा की तमाम दिग्गज हस्तियां इस शपथ ग्रहण समारोह की साक्षी बनीं। 70 हजार से अधिक लोगों की उपस्थिति में यह शपथ ग्रहण समारोह हुआ।

यह भी अपनी तरह का रिकॉर्ड है। किसी भी राज्य में शपथ ग्रहण समारोह को लेकर इतने नवोन्मेष भी कभी नहीं हुए। काशी, मथुरा, अयोध्या समेत प्रदेश भर के देवालयों में तो भाजपाइयों ने पूजन-अर्चन किए ही, घंटा -घड़ियाल और शंख भी बजाए। यही नहीं, बुलडोजर तक की पूजा-आरती कर डाली। कुछ भाजपाई तो बुलडोजर पर चढ़कर ही शपथ ग्रहण समारोह देखने आए। नमामि गंगे के पदाधिकारियों ने काशी विश्वनाथ धाम के गंगा द्वार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की तस्वीर के साथ मां गंगा का दुग्धाभिषेक किया और आरती उतारी। लखनऊ में एक स्कूल के छात्रों ने योगी आदित्यनाथ को शुभकामना देने के लिए मानव शृंखला बनाई और इसे योगी से उम्मीदों का प्रतीक निरूपित किया गया।

वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ ने 47 मंत्रियों के साथ शपथ ली थी। तब भी उन्होंने मोहसिन रजा को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया था। इस बार मोहसिन रजा की जगह दानिश आजाद को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। योगी सरकार चाहती तो 10 मार्च को चुनाव नतीजे आने के एक-दो दिन बाद ही सत्ता की कमान संभाल सकती थी लेकिन 15 दिन उसने सहयोगियों के चयन को लेकर राजनीतिक मंत्रणा की। इस बीच उसने जहां पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन समेत 23 पूर्व मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया, वहीं कई नए चेहरों को अपने साथ भी लिया।

राजनीतिक और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से देखें तो योगी सरकार में इस बार अति पिछड़ा वर्ग के 18 मंत्री बनाए गए हैं। 10 राजपूतों को योगी मंत्रिमंडल में जगह दी गई है जबकि 8 ब्राह्मणों को मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया गया है। 7 दलितों और तीन जाटों और एक सिख को योगी मंत्रिमंडल में तरजीह मिली है। पांच महिलाओं बेबी रानी मौर्य, प्रतिभा शुक्ल, विजय लक्ष्मी गौतम, रजनी तिवारी और गुलाब देवी को मंत्री बनाया गया है। इसमें गुलाब देवी को छोड़कर चारों पहली बार मंत्री बनी हैं।

मंत्रिमंडल में 38 विधायकों, 9 विधान परिषद सदस्यों को स्थान मिला है जबकि पांच मंत्री अभी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। पूर्वांचल, पश्चिमांचल, बुंदेलखंड और अवध को साधने की हर संभव कोशिश की गई है। योगी मंत्रिमंडल में आईएएस और आईपीएस को तो महत्व दिया ही गया है, वकीलों को भी महत्व दिया गया है। श्रीकांत शर्मा, सतीश महाना और सिद्धार्थ नाथ सिंह को तरजीह न मिलना खलता जरूर है लेकिन चर्चा यह है कि भाजपा उनका बेहतर उपयोग करने की दिशा में विचार कर रही है।

पूर्वांचल से तीन कैबिनेट और छह राज्यमंत्री बनाकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसकी नजर वर्ष 2024 की तैयारी पर है और इस लिहाज से भी वह मंत्रियों के चयन में कोई जोखिम ले पाने की स्थिति में नहीं है। योगी-2 सरकार में राज्यमंत्री बनाए गए दानिश आजाद का कहना है कि भाजपा अपने हर कार्यकर्ता की मेहनत की कद्र करती है। यह मेरे जैसे साधारण कार्यकर्ता के लिए पार्टी शीर्ष नेतृत्व के भरोसे का प्रतीक है। इससे पहले भी भाजपा के शीर्ष नेताओं के स्तर पर कहा गया था कि भाजपा अपने हारे हुए प्रत्याशियों का भी बेहतर उपयोग करेगी। इसलिए उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है लेकिन जिस पूर्व मंत्री के आगे से सत्ता की थाल सरक गई, उस पर क्या बीत रही होगी, इसका आकलन करना सामान्य जन के बस का नहीं है।

यह सच है कि इस चुनाव के जरिये योगी सरकार ने कई कीर्तिमान बनाए हैं। उसमें एक यह भी है कि 1985 के बाद पहली बार लगातार दूसरी बार उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है। 35 साल पहले नारायण दत्त तिवारी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि नारायण दत्त तिवारी भी उत्तराखंड से थे और योगी आदित्यनाथ भी उत्तराखंड से हैं। दो दिन पहले उत्तराखंड में पुष्कर धामी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने दोबारा कमान संभाली है।

उत्तर प्रदेश सरकार के सामने चुनौतियां बहुत हैं। उसे युवाओं और किसानों की अपेक्षाओं पर तो खरा उतरना ही है। कोरोना काल में पटरी से उतर चुकी शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना है। डिफेंस कॉरिडोर को अंजाम तक पहुंचाना है तो शुरू की गई अनेक विकास परियोजनाओं को पूरा भी करना है। इस बार सरकार को सत्ता संचालन की मॉनिटरिंग अधिक मुस्तैदी से खुद करनी है। बृजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाकर योगी आदित्यनाथ ने विरोधी दलों को यह संदेश तो दे ही दिया है कि भाजपा में आने वाले दूसरे दल के नेताओं को भी पर्याप्त सम्मान मिलता है। सहयोगी दलों के हितों के स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के प्रति भाजपा अनवरत प्रतिबद्ध रहती है। बांह गहे की लाज की उसकी अपनी संस्कृति है और इसके लिए वह बड़े नुकसान की भी परवाह नहीं करती।

भाजपा ने इस मंत्रिमंडल के गठन के जरिये यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि उसके लिए परिवारवाद मायने नहीं रखता। जो जनसेवा की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा, उसके पर कतरने में पार्टी नेतृत्व एक पल भी जाया नहीं करेगा। योगी सरकार को मौजूदा समय भावुकता और धार्मिकता में गंवाने की बजाए प्रदेश के विकास अनुष्ठान में लगाना चाहिए। उसे उत्तर प्रदेश को सर्वोत्तम प्रदेश बनाना है तो ऐसे किसी भी प्रयोग से बचना होगा जो विपक्ष को चिढ़ाते नजर आएं। यह प्रदेश सबका है। जब हम सबका साथ, सबका विकास की बात करते हैं तो हमें सबका दिल भी जीतना होगा। बुलडोजर की आरती से यह लक्ष्य वैसे भी पूरा नहीं होगा। आरती उन लोगों की होनी चाहिए जो वाकई अपने काम को ही धर्म मानते हों। जिस तरह खास रणनीति के तहत मंत्रिमंडल का गठन किया गया है, उसी तरह खास रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश को हर सेक्टर में मजबूती देनी होगी। व्यवस्था के कमजोर कील-कांटों को हटाना होगा और योगी ही नहीं, उनके मंत्रिमंडल का हर मंत्री उपयोगी है, इस अवधारणा को सच करना होगा।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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