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वक्फ बोर्ड पर भड़का हाईकोर्ट, सुनाया ऐतिहासिक फैसला, कहा- 600 परिवारों की भूमि हड़पना चाहते थे

October 11, 2025

कोच्चि । केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने शुक्रवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि केरल वक्फ बोर्ड (Kerala Wakf Board) द्वारा वर्ष 2019 में मुनंबम की विवादित संपत्ति (disputed property) को वक्फ घोषित करने का निर्णय “कानून के अनुरूप नहीं” था। न्यायमूर्ति एस.ए. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी.एम. की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एकल पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा गठित जांच आयोग को अवैध ठहराया गया था। यह मामला कई दशकों पुराना है।

600 परिवारों के बेघर होने का खतरा
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मुनंबम की यह भूमि मूल रूप से 404.76 एकड़ थी, जो अब समुद्री कटाव से घटकर करीब 135.11 एकड़ रह गई है। 1950 में सिद्दीक सैत नामक व्यक्ति ने यह भूमि फारूक कॉलेज को उपहार (Gift Deed) के रूप में दी थी। हालांकि, उस समय इस भूमि पर कई परिवार बसे हुए थे। बाद में कॉलेज ने इन परिवारों को भूमि के कुछ हिस्से बेच दिए, लेकिन बिक्री दस्तावेजों में इस संपत्ति को वक्फ भूमि नहीं बताया गया।

2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने इस भूमि को औपचारिक रूप से वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया, जिससे पहले हुए सभी भूमि सौदे अमान्य हो गए। इसके बाद लगभग 600 परिवारों को बेदखली का खतरा पैदा हो गया और उन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया।


राज्य सरकार ने बनाई जांच आयोग
प्रदर्शनों को देखते हुए केरल सरकार ने नवंबर 2024 में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सी.एन. रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। इस आयोग का उद्देश्य प्रभावित परिवारों की स्थिति और उनके अधिकारों की जांच करना था। लेकिन ‘वक्फ संरक्षण समिति’ के सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना था कि वक्फ संपत्तियों पर जांच आयोग गठित करने का अधिकार सरकार के पास नहीं है, क्योंकि यह अधिकार वक्फ अधिनियम के तहत केवल वक्फ बोर्ड को है।

एकल पीठ का फैसला और राज्य की अपील
17 मार्च को न्यायमूर्ति बेकु कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने आयोग के गठन के आदेश को रद्द कर दिया था। एकल जज ने यह राय दी थी कि आयोग को वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत पहले से तय या लंबित मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में अपील की। सरकार का तर्क था कि याचिकाकर्ताओं के पास मामले को अदालत में लाने का अधिकार ही नहीं था और वक्फ बोर्ड का आदेश कानूनी रूप से गलत था।

डिवीजन बेंच का निर्णय: वक्फ बोर्ड का आदेश ‘अवैध’ और ‘देरी से पारित’
डिवीजन बेंच यानी खंडपीठ ने राज्य सरकार की दलील से सहमति जताते हुए कहा कि 1950 का दस्तावेज “वक्फ डीड” नहीं बल्कि “गिफ्ट डीड” था। अदालत ने कहा, “1950 की दान-पत्री का उद्देश्य ‘ईश्वर के नाम पर स्थायी समर्पण’ करना नहीं था, बल्कि यह केवल एक साधारण उपहार था। अतः यह जमीन किसी भी वक्फ अधिनियम (1954, 1984 या 1995) के तहत वक्फ नहीं मानी जा सकती।”

अदालत ने आगे कहा कि वक्फ बोर्ड द्वारा 2019 में जारी आदेश “बेहद विलंबित, कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन में” और “कानूनन अमान्य” हैं। पीठ ने कहा, “वक्फ बोर्ड द्वारा सितंबर और अक्टूबर 2019 में संपत्ति को वक्फ घोषित करने की कार्रवाई न केवल अनुचित देरी से की गई बल्कि यह वक्फ अधिनियमों के प्रावधानों के स्पष्ट उल्लंघन में है। यह आदेश कानून में प्रवर्तनीय नहीं हैं।”

“वक्फ डीड” और “गिफ्ट डीड” क्या है?
वक्फ डीड एक कानूनी दस्तावेज है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को इस्लामी कानून के तहत धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से दान कर देता है। इसे वक्फनामा भी कहते हैं। यह संपत्ति किसी व्यक्ति के निजी लाभ के लिए उपयोग नहीं की जा सकती। वहीं गिफ्ट डीड भी एक कानूनी दस्तावेज है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को स्वेच्छा से बिना किसी भुगतान के किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उपहार के रूप में ट्रांसफर करता है। मुख्य अंतर वक्फ डीड धार्मिक/दान उद्देश्य के लिए होती है और स्थायी होती है, जबकि गिफ्ट डीड व्यक्तिगत उपहार के लिए होती है और उद्देश्य में लचीलापन हो सकता है।

‘भूमि हथियाने की कोशिश’ बताया गया
अदालत ने अपने कड़े शब्दों में कहा कि वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि को वक्फ घोषित करने की प्रक्रिया “भूमि हथियाने की चाल” थी, जिसने सैकड़ों परिवारों की आजीविका पर असर डाला। अदालत ने कहा, “25 सितंबर 2019 की अधिसूचना, जिसके तहत उक्त भूमि को वक्फ घोषित किया गया, वह वक्फ अधिनियमों के प्रावधानों के विरुद्ध और ‘भूमि हथियाने की कोशिश’ के समान है। इससे सैकड़ों परिवारों की रोटी-रोजी प्रभावित हुई है।”

राज्य सरकार वक्फ बोर्ड के आदेश से बाध्य नहीं
अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार वक्फ बोर्ड के ऐसे आदेशों से बाध्य नहीं है। पीठ ने कहा, “हम यह घोषित करते हैं कि राज्य सरकार वक्फ बोर्ड की घोषणाओं से बंधी नहीं है, क्योंकि यह केवल एक दिखावा था ताकि संपत्ति को वक्फ बताकर कब्जा किया जा सके। राज्य सरकार को वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 97 के तहत आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार है।”

खंडपीठ का अंतिम फैसला
खंडपीठ ने आज राज्य सरकार के तर्कों से सहमति जताते हुए कहा, “मूल रिट याचिकाकर्ताओं के पास एकल पीठ के समक्ष रिट याचिका दायर करने का कोई कानूनी आधार नहीं था, जिसे स्पष्ट रूप से उनके द्वारा दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था।” इसके साथ ही कोर्ट ने एकल पीठ के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जाना चाहिए था और केरल वक्फ बोर्ड की इस संबंध में घोषणा राज्य को जांच आयोग गठित करने से नहीं रोकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि “वक्फ अधिनियम 1954 और 1995 के तहत अनिवार्य प्रक्रिया और प्रावधानों, विशेष रूप से सर्वेक्षण, अर्ध-न्यायिक जांच और राजपत्र में प्रकाशन की कमी के कारण, विषयगत संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता था और यह राज्य सरकार को जांच आयोग गठित करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने से रोक नहीं सकता।” इस फैसले ने मुनंबम में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को राहत प्रदान की है, जो लंबे समय से बेदखली के डर में जी रहे थे।

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