
देवघर । बाबा बैद्यनाथ का तिलक-अभिषेक करने (To perform Tilak-Abhishek of Baba Baidyanath) बुधवार को वसंत पंचमी के दिन (On the day of Vasant Panchami) दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु (More than Two Lakh Devotees) देवघर पहुंचे (Reached Deoghar) । वस्तुतः भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक झारखंड के देवघर में प्रत्येक वसंत पंचमी पर श्रद्धा और उत्सव का अनुपम दृश्य उपस्थित होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए हिमालय की तराई में स्थित नेपाल से लेकर बिहार के मिथिलांचल इलाके के लोग भगवान शंकर को अपना दामाद मानते हैं। शिवरात्रि पर शिव विवाह के उत्सव के पहले इन इलाकों के लाखों लोग वसंत पंचमी के दिन देवघर स्थित भगवान शंकर के अति प्राचीन ज्योर्तिलिंग पर जलार्पण करने और उनके तिलक का उत्सव मनाने पहुंचते हैं।
इस बार भी भगवान की ससुराल वाले इलाकों से लगभग दो लाख श्रद्धालु देवघर पहुंचे हैं। ज्यादातर श्रद्धालु बिहार के मिथिलांचल इलाके के तिरहुत, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, मधुबनी, सहरसा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मधेपुरा, मुंगेर, कोसी, नेपाल के तराई क्षेत्रों के हैं। इनकी परंपराएं कई मायनों में अनूठी हैं। चूंकि ये लोग खुद को भगवान शंकर की ससुराल का निवासी मानते हैं, इसलिए देवघर पहुंचकर किसी होटल या विश्रामगृह के बजाय खुले मैदान या सड़कों के किनारे ही रुकते हैं।
ऐसा इसलिए कि मिथिलांचल में यह धारणा प्रचलित है कि दामाद के घर पर प्रवास नहीं करना चाहिए। श्रद्धालुओं में ज्यादातर लोग बिहार के सुल्तानगंज स्थित गंगा से कांवर में जल उठाकर 108 किलोमीटर की लंबी यात्रा पैदल तय करते हुए यहां पहुंचे हैं। ये लोग वैवाहिक गीत नचारी गाकर भोलेनाथ को रिझा रहे हैं। बुधवार को जलार्पण के साथ उन्होंने बाबा को अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी अर्पित की है। बिहार के मिथिलांचल में इसी दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है। बुधवार की शाम श्रृंगार पूजा के पूर्व बाबा पर फुलेल लगाने के बाद लक्ष्मी नारायण मंदिर में महंत सरदार पंडा गुलाब नंद ओझा, मंदिर स्टेट पुजारी श्रीनाथ मिश्र बाबा के तिलक का अनुष्ठान संपन्न कराएंगे।
इसके 25 दिन बाद महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह संपन्न कराया जाएगा। देवघर के स्थानीय पत्रकार सुनील झा बताते हैं कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर से तीन प्राचीन मेले प्रमुख रूप से जुड़े हैं और लंबे समय से आयोजित होते चले आ रहे हैं। यह तीन मेले हैं भादो मेला, शिवरात्रि मेला और वसंत पंचमी का मेला। श्रद्धालु इस दिन बाबा को तिलक चढ़ाकर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को बारात लेकर आने का न्यौता देते हैं। यही परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
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