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चीन से महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट छीनकर भारत को सौंप रहा है नेपाल, समझें कितनी अहम परियोजना


नई दिल्ली। नेपाल सरकार ने पश्चिमी सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के विकास को लेकर भारत से बातचीत करने का फैसला किया है। बता दें कि इस प्रोजेक्ट को लेकर नेपाल इस से पहले चीन के साथ बातचीत कर रहा था। नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2012 और 2017 में इस हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को लेकर चीनी कंपनियों से समझौता किया था। लेकिन अब नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा ने जानकारी दी है कि सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को लेकर नेपाल भारत से बातचीत कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस से 1250 मेगावाट की बिजली पैदा की जा सकती है।

भारत से निर्णायक बातचीत की जरूरत, बोले देउबा
देउबा ने बताया है कि पीएम नरेंद्र मोदी 16 मई लुंबिनी आ रहे हैं और इसी दौरान उनसे पश्चिमी सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत की जाएगी। उन्होंने आगे बताया है कि चूंकि भारत नेपाल में चीनी कंपनियों द्वारा उत्पादित ऊर्जा खरीदने को लेकर अनिच्छुक है, ऐसे में हम भारतीय डेवलपर्स की भागीदारी के लिए पीएम मोदी से बात करेंगे।

बता दें कि नेपाल के सुदूरपश्चिम प्रदेश में सेती नदी पर बनने वाली प्रस्तावित 1250 मेगावाट की पश्चिमी सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को लेकर पिछले छह दशकों से बातचीत हो रही है। देउबा ने बताया है कि पश्चिमी सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के विकास के लिए एक विश्वसनीय भारतीय कंपनी के साथ निर्णायक बातचीत की जरूरत है। हमें सर्दियों में ऊर्जा सुरक्षा के लिए भंडारण-प्रकार के प्रोजेक्ट्स में निवेश करने की जरूरत है। बता दें कि नेपाल और भारत पंचेश्वर बहुउद्देशीय प्रोजेक्ट को भी विकसित करने के लिए बातचीत कर रहे हैं।


सेती प्रोजेक्ट को लेकर 1981 से चल रहा है काम
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिमी सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने का प्लान 1981 से जारी है। 1981 में एक फ्रांसीसी कंपनी सोग्रेह ने 37 मेगावाट के प्रोजेक्ट को लेकर स्टडी की गई थी लेकिन इस प्लान में बांध बनाने की बात नहीं थी। बाद में 1987 में उसी फ्रांसीसी कंपनी ने अपने प्लान में बदलाव किया और कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना 380 मेगावाट का भंडारण किया जा सकता है। लेकिन 1994 में इस प्रोजेक्ट के सर्वेक्षण के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी को लाइसेंस मिला। 1997 में इस कंपनी को लाइसेंस दिया गया। इस प्रोजेक्ट के तहत 90 फीसद बिजली भारत को बेचने का इरादा था। इतना सब कुछ होने के बाद भी प्रोजेक्ट पर काम नहीं शुरू हो सका।

दो चीनी कंपनियों ने खड़े किए हाथ
फिर चीनी कंपनी चाइना नेशनल मशीनरी एंड इक्विपमेंट इम्पोर्ट एंड एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन में इसमें निवेश करने की इच्छा जताई। 2009 में नेपाल के तत्काल पीएम माधव नेपाल चीन के दौरे पर गए तो समझौते पर साइन किए। चीनी फर्म ने इसमें नेपाली 15 अरब रुपये लगाने का फैसला किया। लेकिन बाद में इस कंपनी ने निवेश के लिए अनुकूल वातावरण नहीं होने का कारण बताकर प्रोजेक्ट को छोड़ने की बात कही। फिर हुआ ये कि नेपाल सरकार ने लाइसेंस रद्द कर दिया। 2017 में फिर दूसरी चीनी थ्री गोरजेस इंटरनेशनल कारपोरेशन कंपनी आई।

2018 में इस कंपनी ने भी भारी पुनर्वास और पुनर्वास लागत को कारण बताकर प्रोजेक्ट छोड़ने की बात कही। रिपोर्ट्स के मुताबिक नई दिल्ली ने नेपाल से दो टूक कहा हुआ है कि अगर काठमांडू भारत के पावर एक्सचेंज मार्केट में बिजली बेचने की योजना बना रहा है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि उन हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट्स में कोई चीनी घटक नहीं होगा। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यही कारण है कि नेपाल पश्चिमी सेती हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट को लेकर भारत के पास पहुंचा है।

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