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न्यूजीलैंड ने गाय की डकार और गैस छोड़ने पर लगाया टैक्स, जानें क्यों उठाया ये कदम

डेस्क: न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश बनने जा रहा है जो अपने देश की 3.6 करोड़ गायों के गैस छोड़ने यानि डकार पर टैक्स लगाने वाला है. साथ ही भेड़ की मूत्र भी इस दायरे में प्रस्तावित है. इसका विरोध हो रहा है लेकिन सरकार ने साफ कर दिया है कि ये कदम पीछे नहीं खींचा जाएगा. आपने तरह तरह के अजीब टैक्सों को सुना होगा लेकिन ऐसे टैक्स के बारे में तो आज तक नहीं सुना होगा. तो अब जान लीजिए.

वैसे न्यूजीलैंड का कहना है कि ये टैक्स अपनी जगह सही और जायज हैं. इन्हें तो लगना ही होगा. वैसे आप जान लें कि न्यूजीलैंड फार्मिंग लॉबी और ये सेक्टर देश का सबसे ताकतवर सेक्टर है. किसानों का कहना है कि अगर ये टैक्स लगा तो वो देश में खाद्यान्न का उत्पादन कम कर देंगे. इस लॉबी का ये कहना है कि इससे न्यूजीलैंड के छोटे कस्बे खत्म हो जाएंगे और फॉर्म में पेड़ लगा दिये जाएंगे.

हालांकि ये लॉबी सरकार से बातचीत कर रही है. दरअसल न्यूजीलैंड की सरकार दो सालों से इस बात का इरादा जताती रही है कि फॉर्मिंग सेक्टर के चलते गैस उत्सर्जन में इजाफा हो रहा है. इसे कम करना होगा. विपक्ष भी सरकार के इस कदम का विरोध इस मायने में कर रहा है कि इसका असर फॉर्मिंग सेक्टर पर खराब तरीके से होगा और खाद्यान्न की कमी होने लगेगी.

सवाल – क्यों न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री कह रही हैं कि उन्होंने सही कदम उठाया है?

  • न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैकिंडा एर्देन का कहना है कि जो नई लेवी नीति लागू की जा रही है वो न्यूजीलैंड के एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए फायदेमंद ही रहेगी. इससे जो पैसा आएगा, उसको एग्रीकल्चर सेक्टर में नई तकनीक और रिसर्च में लगाया जाएगा साथ ही किसानों को प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी. वैसे न्यूजीलैंड की इकोनामी काफी हद तक अपने एग्रीकल्चर सेक्टर पर भी आधारित है. उसका देश की इकोनामी में बड़ा योगदान तो है लेकिन देश की आधी से ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों का ये सेक्टर उत्सर्जन भी करता है.

सवाल – न्यूजीलैंड की आबादी कितनी है और वहां कितने मवेशी हैं?

  • न्यूजीलैंड की आबादी केवल 50 लाख लोगों की है. लेकिन इस छोटे द्वीपीय देश में 01 करोड़ गाय, भैंस और दूध देने वाले मवेशी हैं तो 2.6 करोड़ भेड़ों को पाला जाता है. न्यूजीलैंड की भेड़ों का ऊन पूरी दुनिया में खासा लोकप्रिय और गर्म माना जाता है.

सवाल – ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए न्यूजीलैंड का लक्ष्य क्या है?

  • न्यूजीलैंड की सरकार 2030 तक मीथेन गैस के उत्सर्जन में 10 फीसदी की कमी लाना चाहती है जबकि वर्ष 2050 में कटौती लक्ष्य 47 फीसदी तक है. मीथेन, सबसे ख़तरनाक ग्रीनहाउस गैस है. जो कार्बन डाई ऑक्साइड से 25 गुना ज़्यादा गर्मी अपने अंदर क़ैद करती है.

सवाल – क्या न्यूजीलैंड की गायें ज्यादा डकार मारकर गैसों का उत्सर्जन करती हैं?

  • न्यूज़ीलैंड की गाय और भैंसों के साथ मीथेन गैस डकार निकालने की समस्या ज्यादा है. हालांकि इसको रोकने की कोशिश चल रही है. लेकिन ऐसा नहीं है कि दुनिया के दूसरे मवेशियों के साथ ऐसा नहीं होता.

सवाल – क्या गायों को हानिकारक डकार से रोकने के लिए कोई टीका या मेडिसिन भी है?

  • इन ख़ास गायों को कुछ टीके लगाए गए हैं. ताकि उनके पेट में मौजूद वो बैक्टीरिया नष्ट हो जाएं, जो मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं.

सवाल – क्या मवेशियों को चारा खिलाना भी इस समस्या में बढोतरी करता है?

  • दरअसल जानवर जब चारा खाते हैं तो उनके पेट में इसका फर्मेंटेशन होता है. इस प्रक्रिया में मीथेन गैस निकलती है. इस गैस के दबाव की वजह से ही जानवरों में डकार निकलती है, या हवा खुलती है. वैसे जानवरों का खान-पान बदल कर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 20-25 प्रतिशत की कमी की जा सकती है. गायों का खाना बदलकर दुनिया की कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 15 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है.

सवाल – आमतौर पर गाय और भैंस दिनभर में कितनी मीथेन गैस छोड़ती हैं?

  • जुगाली करने वाला एक जानवर दिन भर में औसतन 250-500 लीटर तक मीथेन गैस छोड़ता है. एक आकलन है कि जानवर डकार और हवा छोड़ते हुए इतनी मीथेन गैस छोड़ते हैं, जो 3.1 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर नुक़सान करती है.वैसे न्यूज़ीलैंड के एगरिसर्च के वैज्ञानिकों को ये उम्मीद है कि वो जानवरों के शरीर से निकलने वाली इस गैस का उत्सर्जन कम कर के जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद कर सकते हैं.

सवाल – क्या सभी मवेशी ऐसा ही करते हैं?

  • यूं तो पालतू जानवरों के पेट में बड़ी तादाद में कीटाणु पलते हैं. इनमें केवल तीन फ़ीसद ऐसे होते हैं, जो मीथेन गैस के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. ये बैक्टीरिया, जानवरों की आंत के पहले हिस्से में रहते हैं, जिन्हें रूमेन कहते हैं.

सवाल – क्या भारतीय गायें भी ऐसा करती हैं?

  • एशियन ऑस्ट्रेलियन जर्नल ऑफ़ एनिमल साइंसेज में 2014 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार 2010 तक गायों के कारण मीथेन उत्पादन की मात्रा लगातार बढ़ी है और दुनिया के अन्य हिस्सों में पाई जाने वाली गायों की तुलना में भारतीय गाय इसमें आगे हैं.2012 में हुई 19वें पशुधन गणना के अनुसार भारत में क़रीब 51 करोड़ गाय, भैंसे, बकरी, भेड़ें और घोड़े हैं.
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