विदेश

न कोई घर न कोई देश….सात महीनों तक मलेशिया हवाई अड्डे पर रहा यह शख्‍स, अब इस मुल्क ने अपनाया

नई दिल्‍ली (New Delhi) । किसी देश का नागरिक (Citizen) होना हमारी पहचान का अहम हिस्सा होता है लेकिन क्या हो अगर किसी का कोई देश ही न हो? 41 साल के हसन अल कोंतार (hassan al kontar) एक ऐसे ही व्यक्ति हैं जो कुछ दिनों पहले तक स्टेटलेस (stateless) थे यानी वो किसी देश के नागरिक नहीं थे. किसी देश में अपना घर नहीं होने के कारण हसन सात महीनों तक मलेशिया (malaysia) के हवाई अड्डे पर भी रहे लेकिन अब उन्हें अपना कहने के लिए एक देश मिल गया है.

वर्षों तक भटकने के बाद बुधवार को सीरियाई शरणार्थी हसन को आखिरकार कनाडा की नागरिकता मिल गई है. अपनी खुशी जाहिर करते हुए हसन ने अलजजीरा से फोन पर कहा, ‘आज इतने वर्षों बाद ये जीत की घोषणा की तरह है. अब मैं स्टेटलेस नहीं रहा.’

बुधवार को उन्हें कनाडा का नागरिक होने की शपथ दिलाई गई. हसन ने कहा कि ये जीत उनकी वर्षों की लड़ाई का फल है. लेकिन इस लड़ाई में उन्होंने बहुत कुछ खो दिया.

वो कहते हैं, ‘इसके लिए मैंने एक बर्बाद होता देश (सीरिया) खोया. जब मेरे पिता को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब मैं उनके पास नहीं था और आखिरकार उनकी मौत हो गई. मैं जब हवाई अड्डे पर फंसा हुआ था और वही रह रहा था, जब मेरे भाई की शादी हुई, मैं जा न सका, स्काइप पर शादी देखी मैंने. मुझे जेल भेजा गया जहां मेरे साथ नस्लीय भेदभाव किया गया.’

मुश्किल रहा सफर
हसन युद्धग्रस्त सीरिया से भागकर संयुक्त अरब अमीरात आए थे जहां वो 11 साल रहे. लेकिन साल 2017 में उन्हें देश से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने सीरिया की नागरिकता को छोड़ दिया. उन्हें डर था कि अगर वो सीरियाई नागरिक बने रहते हैं तो यूएई की सरकार उन्हें सीरिया भेजने के लिए मजबूर कर देगी और उन्हें जबरदस्ती बशर अल असद की सरकार के लिए मिलिट्री सेवाएं देनी पड़ेंगी जो वो नहीं चाहते थे.

सीरियाई पासपोर्ट न होने की वजह से यूएई ने हसन को मलेशिया भेज दिया क्योंकि मलेशिया उन कुछेक देशों में से एक है जहां सीरिया के लोगों को एंट्री पर टूरिस्ट वीजा मिल जाता है. हसन का टूरिस्ट वीजा तीन महीने में ही खत्म हो गया. हसन ने मलेशिया में कुछ और समय रहने के लिए जुर्माना भरा. वो इक्वाडोर जाना चाहते थे लेकिन उन्हें विमान में चढ़ने की अनुमति नहीं मिली.

इसके बाद वो किसी तरह कंबोडिया चले गए लेकिन वहां से भी उन्हें वापस मलेशिया भेज दिया गया. हसन के पास कोई घर या देश नहीं था जो उन्हें वापस बुला सके. उनके पास जरूरी इमिग्रेशन पेपर नहीं थे इसलिए न तो वो मलेशिया को छोड़ सकते थे और न ही किसी दूसरे देश की यात्रा कर सकते थे. हसन ने इसके बाद कुआलालंपुर हवाई अड्डे पर ही रहना शुरू किया.

साल 2018 में सोशल मीडिया के जरिए चर्चा में आए थे हसन
इसी दौरान पहली बार साल 2018 में वो चर्चा में आए थे. उन्होंने हवाई अड्डे पर रहते हुए जीवन की मुश्किलों को रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर शेयर करना शुरू किया. उनकी सोशल मीडिया पोस्ट ने विश्व भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा और लोग उन जैसे शरणार्थियों के प्रति अपनी सहानुभूति जाहिर करने लगे.

लेकिन मलेशियाई अधिकारियों ने उन्हें सात महीने बाद हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर लिया और एक रिफ्यूजी सेंटर में भेज दिया. अधिकारियों का कहना था कि हसन को सीरिया वापस भेज दिया जाएगा. मलेशिया के रिफ्यूजी सेंटर्स की हालत किसी से छुपी नहीं है. मलेशिया के मानवाधिकार संगठन उन सेंटर्स को यातना शिविर मानते हैं.

हसन सेंटर में मुश्किल हालातों का सामना कर रहे थे, लेकिन इसी बीच कनाडा के कुछ वोलंटियर्स की नजर उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर गई. उन लोगों ने हसन की तरफ से कनाडा में एक रिफ्यूजी एप्लीकेशन दायर की. इसके बाद कनाडा की सरकार ने हसन को शरण के लिए मंजूरी दे दी, और वो नवंबर 2018 में कनाडा के वैंकूवर पहुंचे.

कनाडा पहुंचने के अनुभव पर क्या बोले हसन?
कनाडा पहुंचने के अपने अनुभव को शेयर करते हुए हसन कहते हैं, ‘जब मैं कनाडा पहुंचा और हवाई अड्डे से बाहर कदम रखा तो ताजी हवा ने मुझे छुआ. मैंने खुली हवा में सांस ली. मेरे लिए सड़क पर आजादी के साथ चलना और ताजी हवा को सूंघना कोई नई बात नहीं है लेकिन उस दिन मुझे इनसे आजादी की खुशबू आ रही थी.

हसन ने कनाडा में अपने जीवनयापन के लिए एक होटल में नौकरी शुरू की जहां वो लोगों को चाय, कॉफी सर्व करते थे. लेकिन अब उन्होंने लोगों की मदद के लिए रेडक्रॉस के साथ मिलकर काम करना शुरू किया है. वो कोविड-19 वैक्सीनेशन के काम में लगे हैं और बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद भी करते हैं.

इसी दौरान उन्होंने अपने अनुभवों पर एक किताब भी लिखी है जिसका नाम है, ‘Man At The Airport: How Social Media Saved My Life.’

हसन के अब दो ही सपने हैं- शरणार्थियों की मदद करना और 15 सालों बाद अपने परिवार से मिलना जो सीरिया से भागकर पिछले चार महीनों से मिस्र में रह रहा है.

सीरियाई युद्ध में विस्थापित हुए हैं लाखों लोग
2011 में जब तानाशाही सरकारों के खिलाफ पूरे मध्य-पूर्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिसे अरब स्प्रिंग कहा गया, उसी दौरान सीरियाई लोगों ने भी लोकतांत्रिक सुधारों की मांग करते हुए प्रदर्शन शुरू किया. लेकिन सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद ने नागरिकों के प्रदर्शन को हिंसक तरीके से कुचलना शुरू किया. जल्द ही विरोध प्रदर्शन गृहयुद्ध में तब्दील हो गया.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस गृहयुद्ध में 350,000 से अधिक लोग मारे गए हैं और एक करोड़ 30 लाख से अधिक सीरियाई विस्थापित हुए हैं. इन विस्थापितों में से 66 लाख से अधिक लोग देश छोड़कर जा चुके हैं. इनमें से अधिकतर शरणार्थी रिफ्यूजी कैंप्स में फंसे हैं.

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