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अब भारत में भी ग्रीन एनर्जी का बड़े स्‍तर पर हो सकेगा उत्‍पादन, सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम

नई दिल्‍ली. अब भारत में भी ग्रीन एनर्जी या स्‍वच्‍छ ऊर्जा (Green Energy) का बड़े स्‍तर पर उत्‍पादन हो सकेगा। इससे दूसरों देशों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी। केंद्र सरकार ने देश में आत्‍मनिर्भर अभियान (Atmanirbhar Bharat) के तहत ग्रीन एनर्जी इंडस्‍ट्री (Green Energy Industry) को बढ़ावा देने के लिए एडवांस केमिस्‍ट्री सेल (ACC) की उत्‍पादन यूनिटों की बेहद बड़े स्‍तर पर स्‍थापना के लिए वैश्विक रूप से बोलियां आमंत्रित की हैं। इन यूनिटों को अगले 2 साल में लगाए जाने की योजना है।

भारत की मौजूदा समय में एसीसी संबंधी सभी मांग आयात के माध्यम से पूरी की जा रही है। ऐसे में देश अभी लीथियम आयन सेल के लिए चीन और ताइवान पर निर्भर है। बोली वाले दस्‍तावेज के अनुसार सरकार अब चाहती है कि

सरकार अब चाहती है कि स्थानीय या विदेशी फर्म देश में लंबे समय के लिए स्‍वच्‍छ ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एसीसी उत्‍पादन इकाइयों की स्थापना की परियोजना को पूरा करें। सरकार उसी के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र की सुविधा प्रदान करेगी। इसमें कंपनी और केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के स्‍पेशल परपज व्‍हीकल (एसपीवी) के बीच त्रिपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर करना शामिल है। इन यूनिटों को लगाने के संबंध में अगले साल यानी जनवरी 2022 में बोलियां खोली जाएंगी।

न्‍यूनतम 5 GWh क्षमता की लगानी होगी यूनिट
बोली संबंधी दस्तावेज में कहा गया है कि प्रत्येक बोलीदाता को न्यूनतम 5 गीगा वाट घंटे (GWh) क्षमता की एसीसी निर्माण सुविधा स्थापित करने के लिए दो साल के अंदर न्यूनतम 25 फीसदी और पांच साल के अंदर न्यूनतम 60 फीसदी बढ़ोतरी के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। दस्तावेज में कहा गया है कि चयनित फर्म न्यूनतम 250 करोड़ रुपये प्रति GWh के निवेश के साथ परियोजना की स्थापना करेगी। इसमें जमीन की लागत शामिल नहीं होगी। इस परियोजना को प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना के तहत कवर किया जाएगा और मई में कैबिनेट के फैसले के अनुसार इन इकाइयों को स्थापित करने के लिए कुल 18,100 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। सब्सिडी देने का काम दो साल की अवधि के बाद शुरू होगा।



आखिर क्‍या है ये एसीसी
एसीसी नई पीढ़ी की टेक्‍नोलॉजी हैं, जो इलेक्ट्रिक एनर्जी या बिजली ऊर्जा को या तो इलेक्ट्रोकेमिकल एनर्जी या केमिकल एनर्जी के रूप में संग्रहित कर सकती हैं और आवश्यकता पड़ने पर इसे वापस इलेक्ट्रि‍क एनर्जी में परिवर्तित कर सकती हैं। दस्‍तावेज में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर निर्माता साल 2030 तक बैटरी की मांग में संभावित उछाल के संबंध में व्यावसायिक स्तर पर इन नई पीढ़ी की तकनीकों में निवेश कर रहे हैं। इन तकनीकों में एसीसी और इंटीग्रेटेड एडवांस्‍ड बैटीरी शामिल होंगी।

दस्‍तावेज में कहा गया है कि भारत सरकार इस प्रोजेक्‍ट के अनुसार एसीसी के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना चाहती है और एसीसी के स्वदेशी निर्माण का समर्थन करती है। इसका उद्देश्य स्वदेशी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सुविधाओं की चल रही चिंताओं को दूर करना है।

सरकार की है काफी बड़ी योजना
सरकार ने इस साल मई में 18,100 करोड़ रुपये के खर्च के साथ एसीसी के 50 गीगा वाट घंटे (GWh) और अच्‍छे एसीसी के 5 GWh की उत्‍पादन क्षमता हासिल करने के लिए नेशनल प्रोग्राम ऑन एसीसी बैटरी स्‍टोरेज नामक पीएलआई कार्यक्रम को मंजूरी दी है।

इस पीएलआई कार्यक्रम का उद्देश्य आयात पर निर्भरता को कम करना है। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों, उन्नत इलेक्ट्रिक ग्रिड और सौर ऊर्जा वाली छतों के क्षेत्र में आने वाले सालों में मजबूत वृद्धि देखे जाने की उम्मीद है। सरकार ने कहा है कि पारदर्शी प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिए एसीसी निर्माताओं का चयन किया जाएगा। मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सुविधा को दो साल के अंदर शुरू करना होगा और नकद सब्सिडी पांच साल की अवधि में बांटी जाएगी।

सरकार का कहना है कि इस परियोजना के जरिए एसीसी बैटरी स्टोरेज निर्माण परियोजनाओं में करीब 45,000 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष निवेश होगा। परियोजना पर एक कैबिनेट दस्‍तावेज में कहा गया है कि इससे रुपये की शुद्ध बचत होगी। इलेक्ट्रिक व्‍हीकल अपनाने के कारण इस कार्यक्रम की अवधि के दौरान तेल आयात बिल में कमी के कारण 2,00,000 करोड़ रुपये से 2,50,000 करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है। क्योंकि कार्यक्रम के तहत निर्मित एसीसी से इलेक्ट्रिक व्‍हीकल अपनाने में तेजी आने की उम्मीद है।

यह भी कहा गया है कि एसीसी के निर्माण से इलेक्ट्रिक व्‍हीकल की मांग में बढ़ोतरी होगी, जो बेहद कम प्रदूषणकारी साबित होते हैं। जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए भारत के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए एसीसी कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण योगदान होगा। हर साल लगभग 20,000 करोड़ रुपये के आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी।

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