
नई दिल्ली। केंद्र सरकार (Central Government) ने एक दिसंबर से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र (Parliament Winter Session) में सरकारी कामकाज को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। सरकार ने इसके लिए कुल 10 विधेयकों को सूचीबद्ध (10 Bills listed.) किया है, जिनमें निजी कंपनियों के लिए असैन्य परमाणु क्षेत्र को खोलने के प्रावधान वाला एक विधेयक भी शामिल है। परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 भारत में परमाणु ऊर्जा के उपयोग और विनियमन को नियंत्रित करने के उद्देश्य लाया जा रहा है। इस सत्र के लिए उच्च शिक्षा आयोग विधेयक भी सरकार के एजेंडे में है। कुल 15 कार्य दिवस वाला यह सत्र 19 दिसंबर को समाप्त होगा।
संसद का शीतकालीन सत्र राजनीतिक गर्मी से भरपूर होगा, जिसमें विपक्ष बिहार के चुनाव नतीजों को लेकर एसआईआर को मुद्दा बनाएगा और चुनाव आयोग के कामकाज पर चर्चा को लेकर सरकार पर दबाब बनाएगा। हालांकि सरकार ने साफ किया है कि चुनाव आयोग स्वायत्त संवैधानिक संस्था है, जिसके कामकाज पर चर्चा नहीं की जा सकती है। चूंकि चार माह बाद पांच विधानसभाओं के चुनाव आने वाले हैं, उसका असर भी इस पर दिखेगा। हालांकि सरकार ने अपने कामकाज को सामने लाकर साफ कर दिया है कि वह सत्र को लेकर गंभीर है और उसके पास पर्याप्त कामकाज है।
लोकसभा बुलेटिन के अनुसार प्रस्तावित कानून विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वतंत्र और स्वशासी संस्थान बनने और पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए देश के एक उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग (संशोधन) विधेयक भी परिचय के लिए सूचीबद्ध है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए तेज और पारदर्शी भूमि अधिग्रहण सुनिश्चित करना है। कॉरपोरेट कानून (संशोधन) विधेयक, 2025 भी एजेंडे में शामिल है, जिसका उद्देश्य व्यवसाय करने में आसानी की सुविधा के लिए कंपनी अधिनियम, 2013 और एलएलपी (सीमित देयता भागीदारी) अधिनियम, 2008 में संशोधन करना है।
मध्यस्थता-सुलह अधिनियम में संशोधन की योजना
सरकार के एजेंडे में प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक (एसएमसी), 2025 है, जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992, डिपॉजिटरी अधिनियम, 1996 और प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956 के प्रावधानों को एक तर्कसंगत एकल प्रतिभूति बाजार संहिता में समेकित करने का प्रस्ताव करता है। सरकार मध्यस्थता और सुलह अधिनियम में संशोधन की भी योजना बना रही है। विधि मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कानून की धारा 34 में प्रस्तावित संशोधन और कंपनी निदेशकों पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के कारण सरकार को इस मुद्दे को एक समिति के पास भेजना पड़ा है।
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