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भाजपा का सियासी दांव, मुलायम को पद्म विभूषण, आखिर क्‍या है पार्टी की सियासी हसरत?

लखनऊ (Lucknow) । गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जिन 106 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों (Padma Awards) से सम्मानित किया गया उनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) भी हैं। केंद्र सरकार ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सर्वेसर्वा रहे स्व. मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण सम्मान देकर सियासी सूरमाओं को हतप्रभ कर दिया है। संकेतों और सरोकारों की सियासत करने वाली भाजपा ने यह सियासी दांव यूं ही नहीं चला। सियासी जानकार इसे मिशन-2024 के मद्देनज़र मुलायम की विरासत को हासिल करने की हसरत के रूप में देख रहे हैं।

मुलायम ने 1990 के दौर में अपनी सियासी जमीन भाजपा व संघ के कड़े विरोध के आधार पर बनाई। इसी के बलबूते वह मुस्लिमों के एक मात्र नेता के रूप में स्थापित हुए। भाजपा ने उन्हें सम्मान से नवाज़ कर वैसे तो सियासी परंपरा व अदावत से ऊपर उठकर काम किया है लेकिन जानकार इसे सियासी नजरिये से किया फैसला करार दे रहे हैं।


प्रदेश की राजनीति में 15 साल का सूखा झेलने वाली भाजपा ‘सबका साथ सबका विश्वास’ के मूल मंत्र के साथ 2017 में सियासत में उतरी थी। उसने इसके साथ एक और फार्मूला अपनाया, वह था गैर-यादव व गैर-जाटव वोट बैंक। इसके पीछे भाजपा का मानना था कि पिछले 15 वर्षों में सत्ता का स्वाद कुछ खास जातियों ने ही चखा। भाजपा को इसका लाभ भी मिला और वह अप्रत्याशित बहुमत के साथ 325 सीटें जीतकर सरकार बनाने में सफल रही।

वर्ष 2017 के विधानसभा और वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनावों के पहले भी मुलायम सिंह यादव मौका-बे-मौका यह कहते सुने गए कि भाजपा को जीतने से कोई रोक नहीं सकता लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव हों या फिर वर्ष 2022 का चुनाव तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा के लिए यादव वोट कमोबेश अछूता ही रहा। लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर भाजपा ने यादव वोट बैंक में थोड़ी बहुत सेंध लगाई, लेकिन वर्ष 2022 के चुनाव में अखिलेश से मिली चुनौती और मैनपुरी उप चुनाव ने साफ कर दिया कि यादव वोट बैंक सपा के साथ खड़ा है। भाजपा शिवपाल तो कभी अपर्णा यादव के जरिये पार्टी में मतभेद को अपने पक्ष में भुनाती रही है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिवपाल सिंह से अखिलेश के मतभेद का फायदा मिला। वर्ष 2019 के चुनाव में फिरोजाबाद जैसी सीट पर प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे की हार इसका साफ प्रमाण है। भाजपा कई बार संदेश भी देती रही है कि अखिलेश, मुलायम की विरासत को संभाल नहीं पा रहे।

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इस मुद्दे पर सधे कदम उठाता रहा है। मुलायम सिंह के भतीजे तेज प्रताप सिंह की शादी में पीएम मोदी का इटावा जाना या मुलायम के निधन पर अमित शाह का उन्हें श्रद्धांजलि देना या योगी मंत्रिमंडल के अधिकांश मंत्रियों का उनकी अंत्येष्टि में शामिल होना। पार्टी ने परंपरा से हटकर संदेश देने की कोशिश की कि मुलायम उनके लिए श्रद्धेय थे। यही नहीं 2017 को सीएम योगी के शपथ समारोह में पीएम मोदी और मुलायम की नजदीकियां जिसने भी देखी हों,उनके लिए यह फैसला समझना और आसान होगा। फिलहाल, भाजपा का यह दांव कितना कारगर होगा यह 2024 के नतीजे बताएंगे।

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