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प्रधानमंत्री की सुरक्षा को गंभीरता से न लेना पड़ सकता है महंगा

– आर.के. सिन्हा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले को जिस तरह से पिछले दिनों पंजाब के फिरोजपुर के एक फ्लाईओवर के ऊपर बीस मिनट से ज्यादा रुके रहना पड़ा, उससे 1987 की एक घटना याद आ रही है। तमाम वैचारिक मतभेद के बावजूद, उस घटना की भारत के प्रतिपक्ष ने समवेत स्वर में घोर निन्दा की थी। दरअसल, तब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे और उन पर श्रीलंका की यात्रा के दौरान एक गॉर्ड ने हमले का प्रयास किया था। वे हमले में घायल हो गए थे। वे तब गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण कर रहे थे। उस घटना की सारे देश में और सभी दलों के द्वारा तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। लगता है , इन लगभग 55 साल के दौरान भारत बहुत बदल चुका है। राजनीति का स्तर गटर में जा चुका है। मोदी जी के काफिले को लेकर प्रतिपक्ष की ओछी टिप्पणियों ने राजनीतिक धैर्य के जिस असामान्य क्षरण का दृश्य खड़ा किया है, वह एक बड़ी चिन्ता का विषय है। इससे लगता है कि सामान्य लोक-व्यवहार राजनीति से बहुत छोटे हो गये हैं। दूसरी बात यह कि भारत के सबसे बड़े और आदरणीय नायकों में एक शहीद भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव की समाधि पर जाने को भी वोट बैंक की सियासत से जोड़कर देखने की नीचता की जा रही है।

हुसैनीवाला से 30 किलोमीटर पहले प्रधानमंत्री का काफिला एक फ्लाईओवर पर पहुंचा तो पाया गया कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क जाम कर रखी है। प्रधानमंत्री फ्लाईओवर पर 15 से 20 मिनट तक फंसे रहे। बेशक, यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक थी। प्रधानमंत्री मोदी हुसैनीवाला में ही तो जा रहे थे। क्या वहां पर जाने को भी चुनाव और वोट से जोड़ कर देखा जाए? जरा बता दीजिए कि वह कौन सा हिन्दुस्तानी होगा, जो फिरोजपुर जाने के बाद भी शहीद भगत सिंह की समाधि पर नहीं जाएगा। कुल मिलाकर माहौल अब बहुत विषाक्त हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के फिरोजपुर दौरे के समय जो कुछ हुआ, उसे पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिं चन्नी लगातार मामूली घटना बताते हुए उल्टे केंद्र सरकार और भाजपा को बात का बतंगड़ न बनाने की नसीहत देते रहे। वे रैली में भीड़ न होने का हवाला देकर खट्टे अंगूर का किस्सा भी दोहराते रहे। वैसे खुद उनकी पार्टी हाईकमान सोनिया गांधी ने चन्नी को आगाह करते हुए सुरक्षा में चूक के दोषियों पर कार्रवाई का निर्देश देकर चन्नी की दलीलों को कोरी बकवास साबित तो कर ही दिया है।

दरअसल, सोनिया गांधी जानती हैं कि अगर इस मसले पर पार्टी चन्नी के साथ खड़ी होती है तो यह बड़ी राजनीतिक भूल होगी। इसके दूरगामी परिणाम उसे सिर्फ सियासी अखाड़े में ही नहीं, बल्कि आम सार्वजनिक जीवन में भी भुगतने पड़ सकते हैं। चन्नी के कुछ अन्य साथियों और पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके सज्जन जाखड़ ने भी राज्य सरकार की निंदा की है कि राज्य में प्रधानमंत्री का काफिला रोका गया। अब केन्द्र सरकार और पंजाब सरकार ने घटना के कारणों का पता लगाने की लिए जांच कमेटियां नियुक्त कर दी हैं। इसलिए सच जल्दी ही सामने आ जाएगा,ऐसी उम्मीद तो कर ही सकते हैं।

इस बीच, सुरक्षा मामलों से लंबे समय तक जुड़े रहने और प्रधानमंत्री सहित कई अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा-व्यवस्था को नजदीक से देखने के मौके मिलने की पृष्ठभूमि में मुझे कई कथित सुरक्षा मामलों के जानकारों के ज्ञान पर तरस ही आ रहा है। वे प्रधानमंत्री मोदी के काफिले को रोके जाने को लेकर अनाप-शनाप बातें कर रहे हैं। पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर सारे देश को चिंतित होना चाहिए। आश्चर्य होता है कि इस विषय पर जिनको न के बराबर जानकारी है, वे भी बोले चले जा रहे हैं। ऐसे लोगों से भगवान देश को बचाये। प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में हुई चूक के आलोक में यह बताना जरूरी है कि अगर प्रधानमंत्री दिल्ली से बाहर जाते हैं तो उनकी सुरक्षा का दायित्व एसपीजी के साथ ही राज्य पुलिस पर भी होता है। ये दोनों मिलकर ही प्रधानामंत्री की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।

माना जा सकता है कि भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था दुनिया के किसी भी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष की तुलना में उन्नीस तो नहीं ही होती। प्रधानमंत्री जहां से निकलते हैं, उस रास्ते के चप्पे-चप्पे पर सेकंडों में बुरी नजर रखने वाले या वालों को ढेर करने वाले एसपीजी के कैट कमांडों तैयार होते हैं। ये पलक झपकते ही किसी आतंकी को धूल में मिलाने के लिए सक्षम हैं और तैयार भी रहते हैं। फिर भी, बड़ा सवाल यह है कि पंजाब पुलिस ने प्रधानमंत्री का रूट साफ करके क्यों नहीं रखा, ताकि वे अपने गंतव्य स्थल पर वक्त रहते और बिना किसी अवरोध या व्यवधान के चले जाते। यह काम तो राज्य पुलिस और उससे जुड़े दूसरे विभागों का था। इस सामान्य काम को करने में पंजाब पुलिस को दिक्कत कहां से आई? पंजाब सरकार से इस सवाल का जवाब सारा देश मांग रहा है। चन्नी जी के यह कहने भर से बात नहीं बनेगी कि पंजाब के लोग भी देश भक्त हैं। वे अकारण भावनाओं को भड़काने की चेष्टा कर रहे हैं।

चन्नी जी, यह मत भूलिए कि आप उस राज्य के मुख्यमंत्री हैं, जिसने 1980 और 1990 के दशकों में हजारों लोगों का खून बहता हुआ देखा है। पंजाब को अस्थिर करने की पड़ोसी पाकिस्तान से लेकर कनाडा में बैठे भारत विरोधी तत्व सदैव तैयार ही बैठे रहते हैं। उन्हें सजग और सतर्क रहना होगा। उन्हें पता ही होगा कि सिख गुरुओं के पंजाब को तबाह करने की बार-बार चेष्टा होती रही है। इसलिए वे इसपर सियासत करने की भूल न करें। जिस देश के दो प्रधानमंत्री और कई मुख्यमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तक आतंकवाद का शिकार हो गए हों, वहां पर प्रधानमंत्री के काफिले के 20 मिनट तक फंसे होने को गंभीरता से न लेना मूर्खता होगी। प्रधानमंत्री किसी दल का नहीं होता। वह सारे देश का होता है। अगर हम अपने प्रधानमंत्री के काफिले के रूट को भी आंदोलनकारियों से मुक्त नहीं रखेंगे तो फिर बड़ी दिक्कत हो जाएगी। फिर देश कैसे चलेगा, इस तरफ सबको सोचना होगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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