विदेश व्‍यापार

रूस ने भारत के साथ रुपये में कारोबार करने की बातचीत रोकी, जानें वजह

नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) और रूस (Russia) ने आपसी कारोबार रुपए (trade in rupees) में करने पर बातचीत रोक दी है। दोनों के बीच इस सिलसिले में महीनों से बातचीत चल रही थी। इस रोक को भारतीय आयातकों (Indian importers) के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। भारत सरकार (Indian government) के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रूस का ये मानना है कि अगर इस तंत्र पर काम किया जाएगा तो रूस के लिए रुपए को दूसरी करेंसी में बदलने (convert rupee to another currency) की लागत बढ़ेगी।

एक खबर के मुताबिक पिछले दिनों शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में गोवा आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ (Russian Foreign Minister Sergei Lavrov) ने पत्रकारों को बताया कि रूस के भारतीय बैंकों में अरबों रुपए पड़े हैं, लेकिन रूस इन रुपयों का इस्तेमाल नहीं कर सकता।

एक खबर के मुताबिक पिछले साल रूस के यूक्रेन के हमले के बाद भारत ने रुपये में बिजनेस करने की बात की थी. लेकिन अभी तक रुपये में कोई सौदा नहीं हुआ है. ज्यादातर व्यापार डॉलर में ही होता है इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात की करेंसी दिरहम का इस्तेमाल भी बढ़ा है।


अब तक हुई बातचीत का नतीजा क्या ?
भारत सरकार के एक अन्य अधिकारी के अनुसार पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से रूस से भारत का आयात पांच अप्रैल तक बढ़कर 51.3 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल 10.6 अरब डॉलर था. तेल भारत के आयात का एक बड़ा हिस्सा है, जो इस अवधि में बारह गुना बढ़ गया है।

भारत सरकार के अधिकारी ने मीडिया को बताया कि रूस की तरफ से रुपए में व्यापार करने की आनाकानी के बाद दोनों देशों ने विकल्प तलाशना शुरू कर दिया है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं मिला है।

रुपये में पेमेंट लेने से क्यों हिचकिचा रहा है रूस?
हाल ही में स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम से रूसी बैंकों को बाहर कर दिया गया था, इसलिए डॉलर समेत कई करेंसी में रूसी कारोबार का ट्रांजेक्शन बंद हो गया था. अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत दूसरे पश्चिमी देशों ने भी रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध लगा दिया था इसके बाद रूस को अपने तेल के ग्राहकों की तलाश थी।

अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत दूसरे पश्चिमी देशों ने भी रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध लगा दिया था इसके बाद रूस को अपने तेल के ग्राहकों की तलाश थी. इस दौरान रूस ने अपने तेलों की कीमत सस्ती कर दी, भारत ने कम दाम को देखते हुए अपना आयात बढ़ाना शुरू कर दिया।

जैसे की सहमति बनी थी पेमेंट रुपये में ही करना था. लेकिन भारत के बढ़ते व्यापार घाटे की वजह से रुपया कमजोर पड़ने लगा, जिससे इसकी किसी दूसरी करेंसी में कन्वर्जन की लागत भी बढ़ गई है. इसका नतीजा ये हुआ कि रूस अब भारतीय रुपए में पेमेंट लेने में हिचकिचा रहा है।

वहीं रूस की मांग ये भी है कि अब भारत पेमेंट युआन या किसी दूसरी करेंसी में करे, लेकिन ये करेंसी भारत के लिए महंगी साबित होगी. बतातें चलें कि भारत का रुपया पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं है। वहीं अंतरराष्ट्रीय निर्यात में भारतीय रुपये की हिस्सेदारी सिर्फ दो फीसदी है।

क्या चीन ने बनाया रूस पर दबाव?
भारत न केवल रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि यह दूसरे रूसी उत्पाद भी खरीद रहा है. भारत जो कुछ भी रूस खरीद रहा है उसका बड़े पैमाने पर विस्तार कर रहा है. वहीं चीन रूस के कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मामलों की जानकारी रखने वाले जानकार विक्टर कटोना ने इंग्लिश वेबसाइट को बताया कि चीन एक तरफ जहां रूस के कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है, वहीं वो भारत का सबसे बड़ा आलोचक भी है. चीन को लंबे समय से चल रही भारत और रूस की व्यापार भागीदारी रास नहीं आ रही है. कटोना की मानें तो चीन ने रूस पर यकीनन ही कोई दबाव बनाया होगा।

विक्टर कटोना ने कहा कि रूस चीन के बजाय भारत को अपना कच्चा तेल बेचना पसंद करता है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि भारतीय कंपनियां खुद की शिपिंग और बीमा का इस्तेमाल करते हुए डिलिवरी के आधार पर भुगतान करती आई हैं. इससे रूस को पूरे लेनदेन में ज्यादा मुनाफा होता है।

कटोना ने कहा कि भारतीय खरीदार के विपरित चीनी खरीदार रूस से ही शिपिंग बेड़े की मांग करते हैं. यानी रूस को ज्यादा खर्च करना पड़ता है. कटोना ने ये भी कहा कि बड़ी रूसी कंपनियों की चीन में इक्विटी नहीं है, वहीं उनके पास भारतीय रिफाइनरी कंपनियों में स्वामित्व हिस्सेदारी है. ऐसे में ये भी मुमकिन है चीन रूस के साथ अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाना चाहता है।

भारत के लिए कितना बड़ा सिरदर्द बन सकता है रूस का ये फैसला
भारत पिछले साल फरवरी से ही रूस से रुपये में सेटलमेंट की संभावना की तलाश रहा है. रूस ने भी भारत को इसके लिए प्रोत्साहित किया. लेकिन रुपये के सेटलमेंट को लेकर कुछ भी क्लियर नहीं हो पाया था, लेकिन उम्मीद जरूर थी. अब लावरोफ के बयान ने भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

एजेंसी ने एक स्रोत के हवाले से बताया कि रूस रुपये में सेटलमेंट को बढ़ावा नहीं देना चाहता. ऐसे में भारत की रुपये में सेटलमेंट की सभी कोशिशें नाकामयाब होती नजर आ रही हैं. वहीं रूस ने बड़े हथियार और दूसरे सैनिक हथियारों की सप्लाई पर भी रोक लगा दी है. क्योंकि रूस को पेमेंट करने का भारत के पास जो मैकेनिज्म है, उस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है।

भारत को अभी रूस को हथियार और दूसरे सैनिक उपकरण की सप्लाई के बदले 2 अरब डॉलर देने हैं. लेकिन प्रतिबंध की वजह से ये पेमेंट पिछले एक साल से पूरा नहीं किया जा सका है।

भारत रूसी तेलों का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार
डेटा इंटेलिजेंस फर्म वॉर्टेक्सा लिमिटेड के मुताबिक इस साल अप्रैल में रूस से भारत का कच्चा तेल आयात बढ़ कर 16.80 लाख बैरल प्रति दिन हो गया. ये अप्रैल 2022 के मुकाबले छह गुना ज्यादा है।

पिछले साल फरवरी में छिड़े रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक भारत के आयात बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ एक फीसदी थी, लेकिन एक साल में यानी फरवरी 2023 में ये हिस्सेदारी बढ़ कर 35 फीसदी पर पहुँच गई।

इस साल मार्च में रूसी उप प्रधानमंत्री अलेक्जेडर नोवाक ने बताया कि उनके देश ने पिछले एक साल में भारत को अपनी तेल बिक्री 22 फीसदी बढ़ाई है. भारत, चीन और अमेरिका के बाद तेल का तीसरा बड़ा खरीदार है. भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीद कर कर अब तक 35 हजार करोड़ रुपये बचाए हैं।

साथ ही ओर ये पेट्रोलियम उत्पादों का बड़ा सप्लायर बन कर भी उभरा है. लेकिन रूस से मिल रहे संकेतों के बाद शायद भारत ये फायदा नहीं उठा पाएगा. इससे ये साफ होता है कि सस्ते रूसी तेल से भारतीय रिफाइनिंग कंपनियों को अबतक जो फायदा मिला है वो आगे नहीं मिलेगा.

खबर के मुताबिक रूसी सस्ते तेल की वजह से भारत के रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद तेजी से यूरोपीय बाजार में पहुँच रहे थे. लेकिन शायद ये स्थिति नहीं रह जाएगी. भारत को डर है कि ऐसा करने पर वह अमेरिकी प्रतिबंध का शिकार बन सकता है. दूसरी ओर रूस रुपये में पेमेंट लेने को भी तैयार नहीं है।

भारतीय बैंकों ने रूसी बैंकों में वोस्त्रो अकाउंट खोले हैं, ताकि रुपये में पेमेंट करके तेल खरीदा जा सके, लेकिन दिक्कत ये है कि भारत की तरफ से तेल खरीद में तेजी के बाद रूस के पास रुपयों का अंबार लगता जा रहा है. रुपये में सेटलमेंट से जुड़ी समस्याओं को देखते हुए अब वो इसमें पेमेंट नहीं लेना चाहता।

भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है.
पिछले तीन सालों में तेल की दुनिया में हुए दो अहम बदलाव देखने को मिले.

अमेरिका में तेल का उत्पादन बढ़ा. बड़े पैमाने पर तेल के आयात के बाद अमेरीका बड़े तेल आयातक से दुनिया का अहम तेल निर्यातक देश बन गया है. दूसरा तेल की कीमतों को स्थिर रखने के लिए रूस और सऊदी अरब के बीच का सहयोग बढ़ा.

अमेरिका, रूस और सऊदी अरब दुनिया के तीन सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं.

पहले नंबर पर अमेरिका है और दूसरे नंबर रूस-सऊदी के बीच प्रतिद्वंद्विता चलती रहती है।

बता दें कि साल 2022 मार्च तक 22.14 प्रतिशत के साथ इराक भारत को तेल आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश था. उसके बाद सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका, नाइजिरिया, कुवैत, मैकिस्को, ओमान, रूस, ब्राजिल का नंबर आता था. मौजूदा वक्त में रूस भारत को सबसे ज्यादा तेल की आपूर्ति कर रहा है।

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