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वैज्ञानिकों ने खोजा, कार्बन डाइऑक्साइड को एथिलीन में बदलने का कारगार तरीका मिला


कैलीफोर्निया । कार्बन डाइऑक्साइड के मोर्चे पर वैज्ञानिकों को एक बड़ी उपलब्धि हाथ लगी है। अब वैज्ञानिक कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैस को एथिलीन में आसानी से बदल सकते हैं। इससे उद्योगों या देशों को यह फायदा होगा कि उनकी जीवाश्म संसाधनों पर निर्भरता कम हो जाएगी।

कैनिफोर्निया-लॉस एंजिलिस विश्वविद्यालय के सैमुली स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं की एक टीम ने कार्बन डाइऑक्साइड को एथिलीन में बदलने की तकनीक का प्रदर्शन किया है। अब इसकी मदद से दुनिया को परेशान करने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा का सदुपयोग कीमती पदार्थ एथिलीन को आसानी और कम कीमत पर बनाने में किया जाएगा।

नेचर कैटालिस्ट में प्रकाशित अध्ययन में इस बात का समर्थन किया गया है कि इस तकनीक से जीवाश्म इंधनों पर निर्भरता कम हो जाएगी। कैलीफोर्निया-लॉस एंजिलिस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग में नैनोस्केल के तांबे के तारों यानि कि कॉपर वायर्स का इस्तेमाल किया है, जिनकी खास आकार की सतह होती है।

तांबे के तार इस एक रसायनिक रिएक्शन के उत्प्रेरक की तरह काम कर पाए, जिसमें ग्रीन हाउस गैसें तो कम निकलती हैं लेकिन उससे एथिलीन पैदा होता है। इस रिएक्शन की कंप्यूटर गणनाओं ने बताया कि खास तरह का उत्प्रेरक हाइड्रोजन या मीथेन की जगह एथिलीन का उत्पादन बेहतर तरीके से करता है।

इस अध्ययन के सह वरिष्ठ लेखक और यूसीएलए में मटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रोफेसर यू हुआंग का कहना है कि धरती पर जीवाश्म ईंधन खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन भी कई तरह की चुनौतियां दे रहे हैं।

प्रोफेसर ने कहा कि ऐसा पदार्थ जो कारगर तरीके से ग्रीनहाउस गैसों को एक मूल्य बढ़ाने वाली ईंधन और रासायनिक फीडस्टॉक में बदल दे, ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होगी। ये एकीकृत प्रयोग और सैंद्धांतिक विश्लेषण कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग के लिए एक संधारणीय राह दिखाता है।

मौजूदा समय में एथिलीन का वैश्विक उत्पादन 158 मिलियन टन है। इसमें से ज्यादातर का इस्तेमाल पॉलीथीन बनाने में किया जाता है। एथिलीन हाइड्रोकार्बन जैसी प्राकृतिक गैस से बनाई जाती है। प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए एथिलीन का ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है।

बतादें कि इस अध्ययन के सह पत्र व्यवहारी लेखक विलियम ए गोडार्ड III और कैलेटक में केम्स्ट्री, मटेरियल साइंस एंड एप्लाइड फिजिक्स के प्रोफेसर चार्ल्स और मैरी फेर्केल कहते हैं कि इस प्रक्रिया को कैटेलाइज करने और कॉपर का इस्तेमाल करने का विचार काफी पुराना है लेकिन इस अध्ययन में अहम बाद इस प्रतिक्रिया की दर को इतनी गति देना था कि उससे औद्योगिक उत्पादन संभव हो सके।

उनका कहना है कि ये यह अध्ययन एक ऐसे ठोस मार्ग को दिखाता जिसमें एथिलीन उत्पादन को कार्बन डाइऑक्साइड का उपोयग कर ग्रीन इंडस्ट्री में बदलने की क्षमता है। इससे पहले कॉपर का इस्तेमाल कर कार्बन डाइऑक्साइड को एथिलीन में दो बार बदलने का प्रयास किया जा चुका है। पहली बार इसमें हाइड्रोजन और मीथेन का उत्पादन हुआ जो औद्योगिक उत्पादन के लिए काम के नहीं है। दूसरी बार में एथिलीन का उत्पादन तो हुआ लेकिन वो लंबे समय तक टिका नहीं। हालांकि अब तीसरी बार शोधकर्ताओं को इसमें सफलता मिली है।

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