नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को भाजपा (BJP )नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका पर परीक्षण करने का निर्णय लिया है, जिसमें गलत अभियोजन के शिकार हुए लोगों को मुआवजा देने संबंधी दिशा-निर्देश (guidelines) बनाने की गुहार लगाई गई है।
याचिका में न्याय की हत्या को लेकर विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट (277th Report of the Law Commission) में की गई सिफारिशों का अनुपालन करने की भी गुहार लगाई गई है। Justice UU Lalit की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
साथ ही पीठ ने एक अन्य भाजपा नेता कपिल मिश्रा द्वारा दायर इस तरह की ही याचिका को उपाध्याय की याचिका के साथ जोड़ दिया है। कपिल मिश्रा ने शीर्ष अदालत से गुहार लगाई हैं कि सरकार को ऐसा तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया जाना चाहिए कि फर्जी शिकायत दर्ज करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और गलत अभियोजन का शिकार हुए लोगों को उचित मुआवजा दिया जाए।
दोनों ही याचिकाएं विष्णु तिवारी का मामला सामने आने के बाद दायर की गई है। 20 वर्ष जेल में बिताने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में विष्णु को बरी किया था। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि फिलहाल ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है कि गलत अभियोजन के कारण लंबे समय तक जेल में काटने वाले बेगुनाह लोगों को मुआवजे मिले।
बिना किसी गलती के जेल में बंद करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि फर्जी मुकदमों दर्ज होने से कई बार निर्दोष व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेते हैं। याचिका में कहा गया है कि नागरिकों के प्रति अपनी जवाबदेही से सरकार पीछे नहीं हट सकती। वहीं, कपिल मिश्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि फर्जी शिकायत कर कानून का दुरुपयोग हो रहा है। कानून के अभाव में फर्जी शिकायत करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
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