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भारत के लिए इतिहास रचने वाले कोच ने कहा- 80 शतक भी नहीं ठोक पाते सचिन तेंदुलकर

नई दिल्ली: सचिन तेंदुलकर के बारे में कितना जानते हैं आप? जाहिर है आपका जवाब इस मामले में कम का तो नहीं होगा. क्योंकि क्रिकेट की एक पीढ़ी सचिन के करियर के साथ जवान हुई है. पर इतना कुछ जानने के बाद भी यकीन मानिए कि ये बात आप कतई नहीं जानते होंगे कि सचिन तेंदुलकर, जिनके नाम के आगे आज भले ही 100 इंटरनेशनल शतक हैं, उनके 80 शतक भी नहीं होते. जी नहीं, ये कहना हमारा नहीं है बल्कि ये तो उस कोच की जुबानी है, जिसने भारत के लिए इतिहास रचा है.

भारत के लिए इतिहास रचने वाला कोच यानी गैरी कर्स्टन. जिन्होंने साल 2011 में भारत का वनडे विश्व कप में इंतजार खत्म किया. उन्होंने भारत को तब 28 साल बाद दूसरी बार विश्वविजेता बनाया. लेकिन, वो साल भारत के विश्व चैंपियन बनने का जरूर था. पर टीम इंडिया से उनके लगाव का नहीं था. क्योंकि भारतीय टीम से कर्स्टन का जुड़ाव तो साल 2007 में ही हो चुका था.

कर्स्टन का खुलासा- सचिन के 80 शतक भी नहीं होते
गैरी कर्स्टन ने एडम कोलिंस के यूट्यूब शो द फाइनल वर्ड क्रिकेट पोडकास्ट में दिसंबर 2007 में टीम इंडिया के साथ जुड़े अपने कनेक्शन को याद किया. उन्होंने कहा कि खिलाड़ी नाखुश थे. टीम में भय का माहौल था. कर्स्टन ने खास तौर पर सचिन का जिक्र किया और कहा कि वो संन्यास लेने का मन बना रहे थे.


अब जरा सोचिए दिसंबर 2007 में सचिन संन्यास लिए होते तो क्या होता. इंटरनेशनल क्रिकेट में जिस 100 शतक को बनाने वाले वो अभी इकलौते बल्लेबाज हैं, उसके आस-पास भी नहीं होंते. और 100 शतक क्यों, सचिन के नाम के आगे तो 80 शतक भी नहीं होता. ये आंकड़ा देखिए. सचिन तेंदुलकर अगर 2007 में संन्यास लिए होते तो उनके केवल 78 शतक ही होते. इसमें 37 शतक उनके नाम टेस्ट में जबकि 41 वनडे में जमाए होते.

2007 के बाद सचिन 6 साल और खेले
सचिन तेंदुलकर के संन्यास का इरादा जानकर तब गैरी कर्स्टन भी हैरान हुए थे. हैरान क्रिकेट फैंस भी होते जब सचिन उस वक्त में क्रिकेट छोड़ते. लेकिन अच्छी बात ये हुई कि सचिन का खेल आगे भी बरकरार रहा. उन्होंने अगले 6 साल और क्रिकेट खेला और 2013 में रिटायरमेंट ली.

गैरी कर्स्टन ने धोनी को लेकर भी प्रतिक्रिया दी और कहा कि एक प्रतिभाशाली टीम बनाने के लिए उस वक्त धोनी जैसे कप्तान की जरूरत थी. उन्होंने कहा कि भारतीय क्रिकेट में सितारों की परंपरा रही है. इसमें कई बार क्रिकेटर भूल जाते हैं कि उन्हें परफॉर्म भी करना होता है. पर्सनल माइलस्टोन मायने नहीं रखता. धोनी के पास इसकी समझ थी. इसीलिए वो तेंदुलकर से अलग हैं.

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