ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

आंगन में जडें मजबूत करना चाहते हैं तुलसी
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में यह तो तय है कि तुलसी सिलावट को फिर सांवेर के मैदान में उतरना है। इसके पहले ही वे अपनी जड़ें जमाने में लग गए हैं। मामला इंदौर जनपद का हो या जिला पंचायत का तुलसी ने वह कर दिखाया है, जिससे उनको मजबूत होना है। तुलसी की राय सभी मामलों में अहम मानी जा रही है और जिस तरह से उन्होंने जिला पंचायत में दांव खेला हैं, उससे लग रहा है कि सांवेर के आंगन में अपनी जड़ें और मजबूत करना चाहते हैं। सतीश मालवीय की पत्नी के अध्यक्ष बनने के बाद दूसरे भाजपा नेताओं को उनकी हां में हां मिलाना पड़ी, जबकि एक गुट द्वारा भगवान परमार की पत्नी श्यामूबाई का नाम लगभग फाइनल कर दिया था। बताया तो यह जा रहा है कि तुलसी ने इसके लिए दिल्ली फोन घनघनाया और वहां से भोपाल फोन आया। बस फिर क्या था भोपाल से दिल्ली की लाइन मिली और सतीश की पत्नी रीना का नाम फाइनल।
जब मानना था तब नहीं माने, अब लगा रहे चक्कर
भाजपा के बागियों ने खूब मनमानी की और चुनाव लड़ बैठे। तब बड़े नेताओं ने खूब हाथ-पैर जोड़े, लेकिन नहीं माने। अब जब हार गए हैं तो वे भाजपा दफ्तार के चक्कर के काट रहेहैं कि फिर उनकी वापसी हो जाए, लेकिन संगठन ने अपना कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है और अभी तो किसी भी कीमत पर मानने को तैायार नहीं है। संगठन के नेताओं ने कह दिया है कि भोपाल वालों ने ही निष्कासन किया था और वे ही अब वापस ले सकते हैं। फिलहाल बागियों के सामने अब इंतजार करने के अलावा कुछ नहीं बचा है।


कांग्रेसियों के हाथ से छूट गई गांव की सत्ता की डोर
जिस तरह से इंदौर जनपद का पद कांग्रेस के हाथ से भाजपा ने छीन लिया, उससे कांग्रेस को गहरा झटका लगा है। हालांकि कांग्रेस संगठन इसका ठीकरा उन नेताओं के माथे फोड़ रहा है, जिन्होंने प्रत्याशी चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब प्रत्याशी हारने लगे तो नेता गायब हो गए और जनपद भी हाथ से चली गई। अब कांग्रेस के पास शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र में भी कुछ नहीं बचा है। हालांकि कांग्रेस को नगर पंचायतों के चुनाव से आस है और देखना है कि वे कितनी सीटों पर कब्जा जमा पाते हैं।
कहीं ये दीपू और अलीम की नूरा कुश्ती तो नहीं
कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष की दौड़ चल रही है, जिसमें चिंटू चौकसे, फौजिया शेख अलीम और विनीतिका दीपू यादव दौड़ रही हंै। इसमें चिंटू अकेले दौड़ते नजर आ रहे हैं तो फौजिया और विनीतिका की दौड़ किसी नूरा कुश्ती से कम नहीं लग रही है। कैसे भी हो चिंटू पीछे हो जाए, इसको लेकर प्रयास किए जा रहे हैं, क्योंकि चिंटू अगर नेता प्रतिपक्ष हो जाते हैं तो दो नंबर को ताकत मिल जाएगी और अलीम तथा दीपू पीछे रह जाएंगे। कुछ भी हो दोनों ही चिंटू को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने के चक्कर में नेताओं से मिल भी रहे हैं, फिर भी चिंटू को उन नेताओं का साथ मिल रहा है, जो निगम में कांग्रेस को मजबूत देखना चाहते हैं। उनका कहना है कि चिंटू अगर विपक्ष के नेता हो गए तो वे हर बात को मजबूती से उठा पाएंगे और कांग्रेस को ऑक्सीजन देने का काम भी करेंगे।
जीतू पटवारी ने धार्मिक अनुष्ठान तो पूरा कर लिया है, लेकिन इसके पीछे जो राजनीतिक चर्चा है, उसने पटवारी को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। कोई कह रहा है कि जीतू फिर से जनाधार इक_ा करने में लगे हैं। कोई कह रहा हैकि वे अब प्रदेश की राजनीति में जा रहे हैं, इसलिए वे अपने भाई भरत पटवारी को आगे कर रहे हैं।

-संजीव मालवीय

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