
किस-किस को कार्यकारिणी में लेंगे?
भाजपा (BJP)के नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा के सामने विडंबना है कि वे अपनी कार्यकारिणी (executive) में किस को लें और किस को न लें? कारण उनके आसपास घूमने वाले कई लोग ऐसे हैं, जो कार्यकारिणी में आना चाहते हैं। ये लोग वे लोग हैं जो दिन-रात उनके आसपास घूमते हंै और चाह रहे हैं, वे भी कार्यकारिणी में शामिल हों। इनमें विशाल यादव, सर्वजीतसिंह गौड़, रानू अग्रवाल, मुकेश मंगल जैसे नाम शामिल हैं। विडंबना यह है कि हर कोई इसमें चाह रहा है कि वो कार्यकारिणी में आ जाए, वहीं नगर कार्यकारिणी में शामिल होने वाले नाम अलग शामिल हैं। इनकी भी अलग फेहरिस्त है, जो विधायकों ने दी है कि उनके नाम जरूर शाामिल करें। सबसे ज्यादा मशक्कत महामंत्री के नामों को लेकर है। दो, तीन, चार, पांच नंबर से महामंत्री के नामों के लिए अलग मशक्कत है, वहीं एक महिला भी चाह रही है कि उसका नाम लिस्ट में आ जाए।
दुनिया से जाने वाले जाते है कहां?
कहते हैं ना जो इंसान दुनिया में नहीं होता है, उसे दुनिया भी भूल जाती है। ऐसा ही कुछ उमेश शर्मा के साथ हुआ है। भाजपा के प्रवक्ता रह चुके शर्मा के नाम की कभी तूती बोलती थी, लेकिन उन्हें ऐसा भुलाया गया है कि उनका कोई नामलेवा नहीं बचा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उनके पुत्र को कभी नौकरी देने की बात कही थी। उनके चाहने वालों ने उनकी आर्थिक मदद भी की। अब उमेश के मित्र नगर अध्यक्ष हैं, लेकिन उन्हें भी कोई नहीं पूछ रहा है। सही भी है, दुनिया से जाने वाले चले जाते हैं कहां, जहां उन्हें कोई याद नहीं करता।
सृजन अभियान ने आपस में ही लड़वा दिया
कांग्रेस का सृजन अभियान क्या चला उसने कांग्रेसियों को आपस में ही लड़वा दिया। कहा तो यह जा रहा था कि जिन 71 अध्यक्षों की स्थापना की जाएगी, उनकी नियुक्ति में बराबर पारदर्शिता रखी जाएगी। हुआ कुछ उलटा ही। जीतू पटवारी और हरीश चौधरी ने ऐसा दाव खेला कि विरोधी चारों खाने चित्त हो गए और सारे विरोधी एक तरफ रखे गए। अब विरोधी आपस में लड़ रहे हैं। यहां तक कि अधिकांश शहरों में तो यह हालत है कि अभी तक स्थिति सुधर नहीं पाई है और विरोधी आपस में ही लडऩे में लगे हुए हैं।
विधायक पुत्र का नया रूप सामने आया
विधायक पुत्र का नया हिन्दूवादी चेहरा सामने वाला है। अपनी हिन्दूवादी छवि को लेकर उन्होंने अपने क्षेत्र के बाजारों में नया निशाना साधा है और हर बार की तरह वर्ग विशेष भी इसके पीछे हैं। एकलव्यसिंह गौड़ के निशाने अब कपड़ा बेचने वाले वर्ग विशेष सेल्समैन हैं। सेल्समैन अगर बाजार में दिखे तो कपड़ा व्यापारियों की खैर नहीं। इसके बाद दुकानदार टेंशन में हैं कि सालों से उनके यहां ऐसे सेल्समैन काम कर रहे हैं। एकलव्य अगर अपनी घोषणा पर कायम रहते हैं तो ऐसे में धंधा करना मुश्किल होगा और अच्छे-भले बाजार का बंटाढार हो जाएगा। ऐसे में अब क्या करे? विधायक पुत्र के इस नए रूप को लेकर व्यापारी भी आश्चर्य में हैं।
ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे
फिल्म शोले का अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र पर फिल्माया गीत ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, इंदौर की शोले यानि कांगे्रस पर फिट नहीं बैठ पाया है। जय और वीरू की इस जोड़ी को लेेकर हर कोई सवाल उठा रहा है। मामला राजू भदौरिया और चिंटू चौकसे का हैं। यूं तो दोनों की जोड़ी एक जैसी है, लेकिन जैसे ही सृजन अभियान का एपिसोड हुआ, दोनों की जोड़ी तोडऩे की कोशिश हुई और कोशिश हुई कि कैसे भी हो, दोनों अलग-अलग हो जाएं। कहा गया कि चिंटू ने राजू को आगे किया और उन्हें अध्यक्ष बनने का लालच दिया, ताकि जब अध्यक्ष बनने की बात आए तो उन्हें पीछे कर चिंटू अपने आपको आगे कर दे और हुआ भी यही।
पुराने दिग्गज को चाहिए आईडीए
कांग्रेस के पुराने नेता संजय शुक्ला इंदौर विकास प्राधिकरण में अपने नाम को लेकर कोशिश कर रहे हैं। कैसे भी हो, शुक्ला का नाम यशवंत निवास की ऊपर वाली बिल्डिंग पर बैठने वालों में शामिल हो जाए। इसके लिए उन्होंने पूरा जोर लगा दिया है और जहां से उन्हें भाजपा में शामिल कराया था, वहां दस्तक दे दी है, वहीं वे लोग भी अपना नाम उस सूची में जुड़वाने में लगे हैं, जहां से सदस्य की कुर्सी का रास्ता जाता है, वहीं ऐसी कुर्सी की भी तलाश है, जो फायदे की साबित हो। इनमें भोपाल की ओर जाने वाली निगम-मंडल की कुर्सियां भी शामिल हैं।
वोट चोर विरोध यात्रा या वोट छोड़ गद्दी छोड़
कांग्रेसियों को अपने अभियान का नाम ही नहीं मालूम है। पिछले दिनों कंाग्रेस ने वोट चोर विरोध यात्रा के नाम से यात्रा निकाली, जबकि इस यात्रा का नाम वोट चोर गद््दी छोड़ है और सभी शहरों में इसी नाम से यात्रा निकाली जा रही है। सवाल उठता है कि बड़े-बड़े जिलों में इस यात्रा का नाम ही बदल दिया गया और किसी अध्यक्ष ने इस पर सवाल तक नहीं उठाया। इससे जाहिर होता है कि कांग्रेस में अभी भी सुधार की जरूर है, नहीं तो ऐसे में कांग्रेस कैसे मजबूत होगी? इंदौर से तो खुद प्रदेश अध्यक्ष ही है। ऐसे में वे भी ध्यान नहीं दे पाए और यात्रा वोट चोर विरोध यात्रा के नाम से निकल गई।
देखना यह है कि शंकर के गणों में से कौन आगे आता है? फिलहाल बंटी गोयल और विशाल गिदवानी में मुकाबला है तो कमल गोस्वामी, पवन शर्मा, सतीश शर्मा भी कतार में हैं। शंकर किसे आगे कर पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी।
-संजीव मालवीय
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