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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

October 29, 2025

निगम में राजनीति का नया दौर शुरू
नगर निगम (Municipal council) की वर्तमान परिषद के कार्यकाल में शह और मात का खेल तो आयुक्त और महापौर (Mayor) के बीच में पहले दिन से ही चल रहा है। अब यह खेल खुलकर सामने आ गया। अब निगम में राजनीति (Politics) के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं। सरकार द्वारा नगर निगम में आयुक्त के पद पर दिलीप कुमार यादव को भेजे जाने के बाद से निगम को जानने वालों को यह नजर आ रहा था कि अब एक बार फिर निगम में नेता नगरी का अधिकारियों के साथ संघर्ष शुरू होने वाला है। यह किसी को उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी यह संघर्ष शुरू होगा और एक ही झटके में चरम की तरफ बढ़ जाएगा। नगर निगम द्वारा वार्ड 74 में शुरू किए गए संपत्ति कर की चोरी को पकडऩे के अभियान में यह संघर्ष चरम की तरफ बढ़ गया। निगम अधिकारियों और नेता नगरी के खिलाफ एक-एक मुकदमा दर्ज हो गया और अधिकारियों के खिलाफ दूसरे मुकदमे में आरोपी नामजद नहीं हुए हैं। मुकदमा दर्ज कराने के लिए निगम के अधिकारियों को तो कम, लेकिन नेताओं को ज्यादा संघर्ष करना पड़ा। इसके बाद आयुक्त ने एक बार फिर कमर कस ली है कि इस अभियान को तो हम निरंतर जारी रखेंगे और नेता नगरी ने भी कमर कस ली है कि जहां अभियान चालू हुआ कि विवाद करेंगे और मुकदमा दर्ज कराएंगे। अहं के टकराव के कारण नगर निगम की इस परिषद के कार्यकाल का यह चौथा वर्ष नई राजनीतिक इबारत लिखने की तरफ आगे बढ़ रहा है। इन हालात में मजे में वह हैं, जिनके काम निगम में नहीं हो पा रहे हैं। अब यह तो सभी जानते हैं कि चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर नुकसान तो खरबूजे का ही होना है… निगम में जनप्रतिनिधि ही खरबूजा होता है, क्योंकि चुनाव लडऩे उन्हीं को जाना है…


जिराती को वनवास खत्म होने का इंतजार
एक दशक तक संगठन के विभिन्न पदों पर काबिज रहने के बाद जीतू जिराती सत्ता के पद का सुख पाने के लिए अपने वनवास के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। जिराती की आंखों में इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद की खाली कुर्सी चमक पैदा कर रही है। इस कुर्सी की राह में जिराती को सबसे बड़ी बाधा गौरव रणदिवे से नजर आ रही थी। अब गौरव के संगठन में चले जाने के बाद यह बाधा भी दूर हो गई है। अब जिराती को लगता है कि उनकी राह में कोई रोड़ा नहीं है। अब यह देखना है कि राजतिलक की उम्मीद इस बार भी मुकाम तक पहुंचती है या चर्चाओं में अटककर रुक जाती है…

मिश्रा ने किया अलग काम
बड़ा गणपति क्षेत्र के पार्षद मनोज मिश्रा ने दीपावली के त्योहार के मौके पर एक अलग काम कर दिखाया। उन्होंने शारदा कन्या विद्यालय के परिसर में लगने वाली पटाखा की दुकानों में दूसरे वर्ग को प्रशासन से अनुमति मिलने के बाद भी दुकान नहीं लगाने दी। उनका कहना था कि ऐसे में दुकान लगाकर लव जिहाद का आधार तैयार किया जाता है और फिर हमारी बहन-बेटियों को शिकार बनाया जाता है। यह काम करने के लिए मिश्रा को दीपावली के त्योहार की बेला में प्रशासन से खूब लडऩा भी पड़ा। विधायक पुत्र एकलव्यसिंह गौड़ द्वारा सीतलामाता बाजार को एक समुदाय के कर्मचारियों से मुक्त करवाने के बाद इस दिशा में यह दूसरा कदम है। इस कदम के माध्यम से मनोज मिश्रा एक नई कहानी लिखने में सफल हो गए।

तिकड़ी को मिली ताकत…
भाजपा की इंदौर शहर की राजनीति में गौरव रणदिवे, सावन सोनकर और एकलव्यसिंह गौड़ की तिकड़ी बनी हुई है… हाल ही में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल द्वारा प्रदेश इकाई का गठन कर दिया गया। इस इकाई के गठन में गौरव रणदिवे को प्रदेश महामंत्री का पद मिलने के साथ एक नई ताकत मिली। यह ताकत केवल गौरव की ताकत नहीं है, बल्कि उसके साथ में शहर की राजनीति में बनी यह तिकड़ी ताकतवर हो गई। इस ताकत को मिलने का जश्न भी तिकड़ी ने जमकर मनाया। क्षेत्र क्रमांक 5 में गौरव के समर्थकों ने जश्न मनाया तो भाजपा की अयोध्या में गौड़ परिवार ने दीपक जला दिए। गौरव ने भी नंदानगर में कैलाश विजयवर्गीय के निवास से लेकर मुख्यमंत्री के निवास तक आशीर्वाद लेने के लिए परिक्रमा लगा दी। नगर अध्यक्ष के पद से उतरते ही वापस से इतनी ताकत भाजपा में कम ही मिल पाती है। अब गौरव की टीम को इस बात का इंतजार है कि गौरव को ताकत मिलने से उनका कब और कैसा कल्याण होगा… हाल-फिलहाल तो गौरव को मिली ताकत का सब साथ देने में लगे हैं…

कांग्रेस में समस्या, संकट और चिंता
कांग्रेस द्वारा नियुक्त किए गए शहर और जिला अध्यक्षों का पहला आवासीय प्रशिक्षण पचमढ़ी में आयोजित होने जा रहा है। इस शिविर के लिए सभी अध्यक्षों को तैयारी कर लेने के लिए कहा गया है। इस समय कांग्रेस के इन नेताओं में समस्या, संकट और चिंता की स्थिति है। उन्हें ब्लॉक अध्यक्ष को नियुक्त करने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। बीएलए की नियुक्ति के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की कमी का संकट है। यह दोनों काम बराबर नहीं होने की स्थिति में ऊपर दिए जाने वाले जवाब की चिंता हो रही है। वैसे भी इन अध्यक्षों के कार्यकाल का ढाई महीना होने आ गया है। दिल्ली से पहले ही ऐलान किया जा चुका है कि 6 महीने बाद उनके कामकाज की समीक्षा की जाएगी और यदि काम बराबर नहीं मिला तो हो जाएगी छुट्टी…

चलते-चलते
भंवरकुआं थाने पर जब विवाद चल रहा था, तब खूब फोन लगाने के बाद भी महापौर परिषद के केवल दो सदस्य और भाजपा के 65 पार्षदों में से केवल 6 पार्षद वहां पहुंचे। अब पार्षद कह रहे हैं कि जब 3 साल हमारी बात नहीं सुनी तो अब हमारा साथ क्यों चाहिए..?
-डॉ. जितेन्द्र जाखेटिया

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