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दिल्ली में हजारों बच्चों का वर्तमान कूड़े के ढेर में, कूड़े के पहाड़ से स्कूल तक का सफर अधर में


नई दिल्ली । दिल्ली में (In Delhi) हजारों बच्चों (Thousands of Children) का वर्तमान कूड़े के ढेर में (In Current Garbage Heap) पल रहा है (Growing up) और कूड़े के पहाड़ से स्कूल तक (From Garbage Mountain to School) का सफर (Journey) अधर में है (In Limbo) । कूड़े कचरे से अपने घर का पेट पालने वाले बच्चे, दर्शन के उपयोगितावादी सिद्धांत के सिद्ध तो लगते हैं मगर सरकार और प्रशासन की इस वर्ग के प्रति उदासीनता और बेरुखी, प्रगतिशील समाज को अंदर से खोखला करती जा रही है।


मसला नया नहीं है। पिछले दिनों दिल्ली के लैंडफिल साइट्स में आग लगने की कई घटनाएं फिर से सामने आईं। लगातार कई दिनों तक जलते हुए कूड़े से निकलने वाली जहरीली गैस के बीच न केवल वहां आस पास रहने वाले लोगों को परेशानी हुई, बल्कि वहां कूड़ा बीनने का काम करने वालों को पता नहीं कितने आयामों पर एक साथ चुनौती का सामना करना पड़ा। दरअसल इन कूड़े के पहाड़ों (लैंडफिल साइट्स) पर अधिकतर बच्चे ही हैं जो कूड़े में से प्लास्टिक, लोहा, दूसरे धातु और ऐसा कुछ भी चुनने का काम करते हैं, जिसका बाजार में कोई मूल्य हो। उनके और उनके परिवार के लिए ये आजीविका का साधन है।

दिल्ली में 3 बड़े कूड़े के ‘पहाड़’ हैं जिसमें ओखला, भलस्वा और गाजीपुर लैंडफिल साइट्स शामिल हैं। इन तीनों कूड़े के पहाड़ों के आसपास कुछ झुग्गी बस्तियां बनी हुई हैं। हर कूड़े के पहाड़ के पास 40-50 ऐसी झुग्गियां हैं जिनमें रहने वाले बच्चे अपने परिवार की आजीविका के लिए खेलने की उम्र में कचरे में से बिकाऊ बीनने का काम करते हैं। यहां तक कि कूड़े के पहाड़ में आग लगने के दौरान भी इन बच्चों ने अपना कूड़े का काम जारी रखा, यह जानते हुए भी कि वहां निकलने वाली गैस जहरीली और दमघोटू साबित हो सकती है।भूखे रहना या जहरीली गैस के बीच सांस लेने का चुनाव कितना मुश्किल रहा होगा, इसका अंदाजा किसी भी श्रेणी का पाठक वर्ग नहीं लगा सकता। कुछ अनुभव पढ़ने, सुनने, देखने मात्र से महसूस नहीं हो सकते। कहते हैं, सोना आग में तपकर ही कुंदन होता है। अब कुंदन का तो नहीं पता, मगर बच्चों का भविष्य इस आग में जरूर राख हो रहा है।

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ गरीबी उन्मूलन को लेकर कई सारे दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन पूरा दिन कूड़े के ढेर पर बिताने वाले ये बच्चे किताबों से बहुत दूर हो गए हैं। कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है। दिल्ली और केंद्र सरकार के पास आंकड़ों के अपने-अपने दावे हैं। दिल्ली सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022 के लिए बजट में 11 और सरकारी स्कूलों को खोलने का ऐलान किया है, साथ ही इस साल सबसे ज्यादा 16,278 करोड़ रुपये का बजट शिक्षा के लिए आवंटित किया गया है।

दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के अनुसार पिछले कुछ सालों में दिल्ली में शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ है, वहीं केंद्र सरकार के अनुसार जो गरीबी के कारण स्कूल तक पहुंच नहीं पाते थे, ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के तहत 6 साल से लेकर 14 साल के बच्चों का शिक्षा ग्रहण करना मौलिक अधिकार है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भी गरीब बच्चियों को शिक्षा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन सच तो यह है कि अब भी कूड़े के पहाड़ से स्कूल तक का सफर तय करने के लिए इन बच्चों को समाज के मदद की आवश्यकता है।

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