ब्‍लॉगर

आखिर कब तक बोरवेल में दम टूटेगा बच्चों का

– योगेश कुमार गोयल

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मांडवी गांव में 55 फीट गहरे बोरवेल में फंसे आठ वर्षीय मासूम तन्मय साहू की मौत ने फिर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। 84 घंटों की जद्दोजहद के बावजूद उसे नहीं बचाया जा सका। हालांकि इसी साल 10 जून को छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में 80 फीट गहरे बोरवेल में गिरे 11 साल के राहुल को 104 घंटे के अब तक के सबसे लंबे रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था लेकिन 22 मई को पंजाब के होशियारपुर जिले के गढ़दीवाला के समीप बहरामपुर में 300 फीट गहरे बोरवेल में करीब 95 फुट नीचे फंसकर छह वर्षीय बच्चा ऋतिक मौत की नींद सो गया था।

हर साल बोरवेल में बच्चों के गिरने के अब कई मामले सामने आते हैं, जिनमें से अधिकांश की बोरवेल के भीतर ही दम घुटकर मौत हो जाती है। बोरवेल हादसे पिछले कुछ वर्षों से जागरुकता के प्रयासों के बावजूद निरन्तर सामने आ रहे हैं किन्तु इनसे सबक सीखने को कोई तैयार नहीं दिखता। ऐसे मामलों में अक्सर सेना-एनडीआरएफ की बड़ी विफलता पर भी सवाल उठने लगे हैं कि अंतरिक्ष तक में अपनी धाक जमाने में सफल हो रहे भारत के पास चीन तथा कुछ अन्य देशों जैसी वो स्वचालित तकनीक क्यों नहीं हैं, जिनका इस्तेमाल कर ऐसे मामलों में बच्चों को अपेक्षाकृत काफी जल्दी बोरवेल से बाहर निकालने में मदद मिल सके।


सवाल यह भी है कि आखिर बार-बार होते ऐसे दर्दनाक हादसों के बावजूद देश में बोरवेल और ट्यूबवेल के गड्ढे कब तक इसी प्रकार खुले छोड़े जाते रहेंगे और कब तब मासूम जानें इनमें फंसकर इसी तरह दम तोड़ती रहेंगी। आखिर कब तक मासूमों की जिंदगी से ऐसा खिलवाड़ होता रहेगा? कोई भी बड़ा हादसा होने के बाद प्रशासन द्वारा बोरवेल खुला छोड़ने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर सख्ती की बातें तो दोहरायी जाती हैं लेकिन बार-बार सामने आते ऐसे हादसे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सख्ती की ये सब बातें कोई घटना सामने आने पर लोगों के उपजे आक्रोश के शांत होने तक ही बरकरार रहती हैं। ऐसे हादसों के लिए बोरवेल खुला छोड़ने वाले खेत मालिक के साथ-साथ ग्राम पंचायत और स्थानीय प्रशासन भी बराबर के दोषी होते हैं।

यह विडंबना है कि सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद कभी ऐसे प्रयास नहीं किए गए, जिससे ऐसे मामलों पर अंकुश लग सके। मध्य प्रदेश के देवास जिले में खातेगांव कस्बे के उमरिया गांव में एक व्यक्ति को अपने खेत में सूखा बोरवेल खुला छोड़ देने के अपराध में जिला सत्र न्यायालय ने कुछ साल पहले दो वर्ष सश्रम कारावास तथा 20 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि लोग बोरवेल कराकर उन्हें इस प्रकार खुला छोड़ देते हैं, जिससे उनमें बच्चों के गिरने की घटनाएं हो जाती हैं और समाज में बढ़ रही लापरवाही के ऐसे मामलों में सजा देने से ही लोगों को सबक मिल सकेगा।

अगर मध्य प्रदेश में जिला अदालत के उसी फैसले की तरह ऐसे सभी मामलों में त्वरित न्याय प्रक्रिया के जरिये दोषियों को कड़ी सजा मिले, तभी लोग खुले बोरवेल बंद करने को लेकर सक्रिय होंगे अन्यथा बोरवेल इसी प्रकार मासूमों की जिंदगी छीनते रहेंगे और हम मासूम मौतों पर घडि़याली आंसू बहाने तक ही अपनी भूमिका का निर्वहन करते रहेंगे। हैरानी है कि देश में हर वर्ष औसतन 50 बच्चे बेकार पड़े खुले बोरवेल में गिर जाते हैं, जिनमें से बहुत से बच्चे जिंदगी की अंतिम सांसें लेते हैं। ऐसे हादसे हर बार किसी परिवार को जीवन भर का असहनीय दुख देने के साथ-साथ समाज को भी बुरी तरह झकझोर जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ऐसे हादसों पर संज्ञान लेते हुए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। 2013 में कई दिशा-निर्देशों में सुधार करते हुए नए दिशा-निर्देश जारी किए गए थे, जिनके अनुसार गांवों में बोरवेल की खुदाई सरपंच तथा कृषि विभाग के अधिकारियों की निगरानी में करानी अनिवार्य है जबकि शहरों में यह कार्य ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग तथा नगर निगम इंजीनियर की देखरेख में होना जरूरी है।अदालत के निर्देशानुसार बोरवेल खुदवाने के कम से कम 15 दिन पहले डी.एम., ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है। बोरवेल की खुदाई से पहले उस जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाया जाना और उसके खतरे के बारे में लोगों को सचेत किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा ऐसी जगह को कंटीले तारों से घेरने और उसके आसपास कंक्रीट की दीवार खड़ी करने के साथ गड्ढ़ों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढकना भी अनिवार्य है लेकिन इन दिशा-निर्देशों का कहीं पालन होता नहीं दिखता।

रेस्क्यू ऑपरेशन पर अथाह धन, समय और श्रम नष्ट होता है। प्रायः होता यही है कि तेजी से गिरते भू-जल स्तर के कारण नलकूपों को चालू रखने के लिए कई बार उन्हें एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करना पड़ता है और पानी कम होने पर जिस जगह से नलकूप हटाया जाता है, वहां लापरवाही के चलते बोरवेल खुला छोड़ दिया जाता है। और अनजाने में ही कोई ऐसी अप्रिय घटना घट जाती है, जो किसी परिवार को जिंदगी भर का असहनीय दर्द दे जाती है। समाज को जागरूक होने की जरूरत है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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