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आईटी पेशेवरों के नौकरी छोड़ते रहने की वजह समझिए

– आर.के. सिन्हा

अब देश की सभी प्रमुख आईटी कंपनियां अपने मार्च-जून के तिमाही के नतीजों का ऐलान करना शुरू कर देंगी। यह भी तय है कि करीब-करीब सभी के मुनाफे और कुल जमा कारोबार में निश्चित वृद्धि होगी। कोरोनाकाल के बाद सभी भारतीय आईटी कंपनियां अब अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रही हैं। उन्हें देश-विदेश से नए-नए आर्डर भी मिल रहे हैं। ये सभी भारतीय आईटी कम्पनियां कोरोनाकाल में आई सुस्ती की भरपाई करने में लगी हुई हैं। कोरोना के दौर में सभी क्षेत्रों में काम की रफ्तार प्रभावित हुई थी। अब कोरोना के भय को कारोबारी दुनिया पीछे छोड़ते हुए तेजी से आगे बढ़ रही है। अब ठोस संकेत मिल रहे हैं कि भारत की चार सबसे प्रमुख आईटी सेक्टर की कंपनियां क्रमश: टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक्नोलॉजी जब अपने नतीजे घोषित करेंगी तो वे यह भी बताएंगी उनके कितने पेशेवरों ने बीते मार्च-जून, 2022 के दौरान कंपनियों को छोड़ा।

यह जानकारी तो सभी कंपनियां अपने नतीजों की घोषणा करते हुए सामान्य रूप से बताती ही हैं। वे यह भी बताती हैं कि उनके साथ कितने नए पेशेवरों ने अपने को उनकी कंपनी से जोड़ा। पर इस बार माना जा रहा है कि देश की प्रमुख आईटी कंपनियों से औसत 17 से 27 फीसद पेशेवरों ने अन्य कंपनियों का रुख कर लिया है। जाहिर है कि अगर यही आकड़ा सामने भी आया तो ये काफी बड़ा आंकड़ा है। इसका बड़ा मतलब है कि आईटी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ते ही चले जा रहे हैं। उनके रोजगार की सुनामी सी आ गई है। जो नौजवान आईटी क्षेत्र से किसी तरह से जुड़े हुए हैं, उन्हें आज के दिन नौकरी की कोई कमी नहीं है। यही नहीं, उन्हें थोड़ा सा अनुभव लेने के बाद ही शानदार जॉब के अवसर तेजी से मिलते रहते हैं।

एक बात और जान लें कि अब पेशेवर छोटी-मोटी वेतन वृद्धि से संतुष्ट नहीं होते। वे अब अधिक से अधिक प्रगति चाहते हैं। फिर मौजूदा दौर के आईटी सेक्टर या अन्य क्षेत्रों के पेशेवरों को अपनी कंपनी से किसी तरह का कोई भावनात्मक संबंध भी नहीं होता। उन्हें जो कंपनी बेहतर सेलरी और सुविधाएं देने के लिए तैयार रहती हैं, वे उससे रिश्ता जोड़ लेते हैं। अब वह दौर नहीं रहा जब कोई मुलाजिम एक कंपनी में ही 30-40 साल तक रहने के बाद रिटायर हो जाता था। वे किसी कंपनी को तब ही छोड़ते थे जब उनके गले में फेयरवेल वाले दिन की चंदन की माला पहनाई जाती थी और ग्रेच्युटी का चेक दिया जाता था। यानी सब कुछ बदल रहा है। भारत का रोजगार के क्षेत्र में चेहरा बदलने में आईटी सेक्टर का सबसे अहम रोल रहा है। इसकी मार्फत भारत को हर साल अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा भी आसानी से मिल रही है। अब लगभग हरेक मिडिल क्लास भारतीय के परिवार का एक सदस्य सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से आईटी सेक्टर से जुड़ा जॉब कर रहा है।

बेशक, भारत का आईटी क्षेत्र यदि आज तेजी से छलांग लगा रहा है तो इसमें वर्तमान सरकार की भी अहम भूमिका रही है। अब सरकार का लक्ष्य है कि भारत के सेवा क्षेत्र के निर्यात को एक दशक के दौरान बढ़ाकर एक लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने में मदद करेगी। भारत चालू वर्ष के दौरान 400 अरब डॉलर के अपने व्यापारिक निर्यात लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अग्रसर है, जबकि सेवा निर्यात करीब 240 अरब डॉलर से 250 अरब डॉलर होने की संभावना है, जो वैसे तो काफी कम है, लेकिन इसमें तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है और यह व्यापारिक निर्यात की तेज रफ्तार पकड़ सकता है।

सबसे सुखद बात यह है कि आईटी कंपनियां ने अब टियर-2 और टियर-3 के शहरों की ओर भी अपना रुख करना चालू कर दिया है। वे इन शहरों में अपने बड़े कैंपस स्थापित कर रही हैं। जाहिर है, इससे लाखों नई नौकरियां पैदा होंगी। अब आईटी उद्योग को उन कस्बों की पहचान करनी चाहिए जहां वे जा सकें। केंद्र सरकार उन्हें सभी आवश्यक बुनियादी ढांचे तथा सुविधाएं प्रदान करने में मदद करने को तैयार है ही। आईटी उद्योग नई प्रौद्योगिकी और उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करके सेवा निर्यात में बड़ा योगदान दे सकता है, जो भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक बड़ी भूमिका में ला सकता है। अब आईटी कंपनियों को उच्च प्रौद्योगिकी वाले उत्पादों पर ध्यान देना चाहिए। आईटी उद्योग ने अपने दम पर शानदार विकास दर्ज तो किया ही है और कई शीर्ष कंपनियों ने ऐसे समय में वृद्धि हासिल की है जब भारत की कई पूर्ववर्ती सरकारों ने स्टार्टअप के लिए अनुकूल पारिस्थिति की तंत्र बनाने पर ध्यान नहीं दिया। अब की वर्तमान सरकार तो वह भी कर रही है, तब विकास क्यों नहीं होगा । आईटी सेक्टर का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि इसमें महिलाओं को भरपूर रोजगार मिल रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष के दौरान आईटी कंपनियों ने 44 फीसद महिला पेशेवरों को रखा था। यानी औरतों को स्वावलंबी बनाने में आईटी सेक्टर ने बेहतरीन योगदान दिया है। इस सेक्टर में लगातार पहली पीढ़ी के उदयमी आते रहे हैं। अब इन्फोसिस को ही लें। इसे एनआर नारायणमूर्ति ने 1981 में अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर स्थापित किया था। नारायण मूर्ति के साथ नंदन निलेकणी, एनएस राघवन, क्रिस गोपालकृष्णन, एसडी शिबुलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा थे। जब इन्फोसिस की शुरुआत हुई थी तब नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से दस हजार रुपये उधार लिए थे और कंपनी को शुरू किया था।

जरा सोचिए कि सिर्फ दस हजार रुपये से शुरू होने वाली इन्फोसिस एक लाख करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनी बन चुकी है। अब एचसीएल के संस्थापक शिव नाडार की ही बात कर लें। वे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे थे 1974 में। शिव नाडार की डीसीएम डाटा प्रोड्क्ट्स नाम की कंपनी में नौकरी लगी थी। तब से दिल्ली बहुत बदली और वे भी बदले। शिव इतने बदले कि वे हो गए भारत की कॉरपोरेट जगत के सबसे असरदार शख्सियतों में से एक। दिल्ली आए तो शिव नाडार के पास एक अटैची, कुछ सौ रुपये और एक अदद इंजीनियरिंग की डिग्री थी। उनके पास काम और काम के अलावा दूसरी किसी बात का वक्त नहीं था। नौकरी में मजा भी आ रहा था। यहां तक कि कंपनी के चेयरमेन लाला चरतराम भी उन्हें जानने लगे थे। पर वे कुछ अपना करना चाह रहे थे। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने 1976 में नौकरी छोड़ी और शुरू की एचसीएल इंटरप्राइजेज। वो आगे चलकर बनी एचसीएल टेक्नोलॉजी। यानी आईटी सेक्टर ने उन लोगों को भी बिजनेस करने के अवसर दिए जिनके परिवार में कभी किसी ने बिजनेस किया ही नहीं किया था। आईटी सेक्टर का सतत और तेज विकास भारत के लिए जरूरी है। यह सुखद है कि इस क्षेत्र में पेशेवर अपने बेहतर करियर, पैसा और उत्तरोत्तर विकास के लिए अपनी नौकरियां बदलते रहते हैं।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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